भक्ति हो वा ज्ञान, ईश्वर है अधिष्ठान
ईश्वरपर श्रद्धा और विश्वास रखकर भक्त अपनी आध्यात्मिक प्रगति का भार ईश्वरपर सौंपता है ।
ईश्वरपर श्रद्धा और विश्वास रखकर भक्त अपनी आध्यात्मिक प्रगति का भार ईश्वरपर सौंपता है ।
मन में संघर्ष होते समय आए स्वप्न में, स्वयं की देह मृतावस्था में दिखाई देना, उस देह में प्रवेश करना संभव न होना तथा उस स्थिति में सेवा एवं नामजप करने का प्रयास करने पर वह करना भी संभव न हो पाना
शिष्य के उद्धार के लिए गुरु शिष्य को उनकी आवश्यकता के अनुसार गुरुमंत्र के रूप में किसी देवता का नामजप करने के लिए कहते हैं ।
वर्तमान में अधिकांश साधकों के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्ट बढ गए हैं । कष्टों की प्रतिदिन बढनेवाली यह मात्रा आपत्काल निकट आने को दर्शा रही है ।
‘घर में हमारे साथ साक्षात भगवान हैं’, इस दृढ श्रद्धा से साधना करनी चाहिए !
स्वयं को अज्ञानी माननेवाले ज्ञानवंत को ही भगवान की कृपा से ज्ञान का कृपा प्रसाद मिलता है !
‘कोई ऐसा भी हो सकता है, जिनके विषय में सभी को घर जैसी आत्मीयता एवं आधार प्रतीत होता है तथा जो साधकों की व्यष्टि तथा समष्टि साधना की ही नहीं, पारिवारिक समस्याएं भी सुलझा सके, ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी इतनी अद्वितीय हैं !
अभी पृथ्वी पर तीन अवतार हैं, इसलिए देवादिकों की दृष्टि पृथ्वी की ओर होना
सनातन संस्था के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी की (प.पू. बाबा की) धर्मपत्नी तथा पू. नंदू कसरेकरजी की माताजी प.पू. जीजी (प.पू. [श्रीमती] सुशीला कसरेकरजी) (आयु ८६ वर्ष) ने १८ सितंबर को दोपहर २ बजे नाशिक में उनके कनिष्ठ पुत्र श्री. रवींद्र कसरेकर के आवास पर देहत्याग किया ।
आयु के १७ वें वर्ष में विवाह होने के उपरांत उन्होंने जीवनभर प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) जैसे उच्च कोटि के संत की गृहस्थी संभालने का कठिन शिवधनुष्य उठाया । प.पू. जीजी की साधना अत्यंत कठिन थी ।