‘शिष्य के उद्धार के लिए गुरु शिष्य को उनकी आवश्यकता के अनुसार गुरुमंत्र के रूप में किसी देवता का नामजप करने के लिए कहते हैं । यह नामजप उस साधक की आध्यात्मिक उन्नति के लिए पोषक/पूरक रहता है । साथ ही उस नामजप के पीछे गुरुदेवजी का संकल्प भी कार्यरत रहता है । गुरुमंत्र का ऐसा अनन्य साधारण महत्त्व होते हुए भी शिष्य गुरुमंत्र की ओर अनदेखा कर गुरुदेवजी का नाम लेते हुए दिखाई देते हैं । इससे उस शिष्य की प्रगति होने की गति धीमी हो जाती है, साथ ही वे गुरुदेवजी के सगुण रूप में अटकते हैं । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उस गुरुमंत्र के लिए ही किया गया संकल्प व्यर्थ हो जाता है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी (१०.९.२०२१)