श्री गणेश चतुर्थी के निमित्त (७.९.२०२४ ) ..
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
श्री गणपति में शक्ति, बुद्धि एवं संपत्ति, ये तीन सात्त्विक गुण हैं । वे भक्तों पर अनुकंपा करनेवाले हैं । श्री गणपति विद्या, बुद्धि एवं सिद्धि के देवता हैं । वे दुखहरण करनेवाले हैं; इसीलिए प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में श्री गणेश की पूजा की जाती है । विद्यारंभ में तथा ग्रंथारंभ में भी श्री गणेश का स्तवन करते हैं ।
संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वरी लिखते समय आरंभ में –
‘ॐ नमो जी आद्या । वेद प्रतिपाद्या ।। जय जय स्वयंवेद्या । आत्मरूपा ।। १ ।।
इस श्लोक से श्री गणेश को प्रथम वंदन किया है ।
श्री महादेव ने कार्तिकस्वामी एवं श्री गणपति, इन दोनों को ‘सर्व तीर्थाें में स्नान कर शुद्ध होकर आने के लिए कहा । उस समय श्री गणेश ने यह विचार किया कि श्री महादेव एवं माता पार्वती संपूर्ण विश्व के आदि कारण हैं । ‘जगतः पितरौ वन्दे परमेश्वरी ।’ अर्थात सौभाग्यवश ये मुझे माता-पिता के रूप में प्राप्त हुए हैं । पुत्र के लिए सर्व तीर्थाें की अपेक्षा माता-पिता सबसे श्रेष्ठ तीर्थ हैं । ऐसा मानकर गणेशजी ने श्री महादेव-पार्वती की परिक्रमा कर उन्हें नमस्कार किया । उस समय माता-पिता ने, ‘माता-पिता की अर्चना जितनी योग्यता किसी तीर्थस्नान, यज्ञ, मंत्र, तप, जप इत्यादि साधनों में नहीं है’, ऐसा सुनिश्चित कर गणेशजी को वर प्रदान किया । ‘तुम्हारी ज्ञानदृष्टि के कारण तुम श्रेष्ठ हो गए हो । इसके आगे किसी भी लौकिक, यज्ञयाग पूजा, वेदारंभ इत्यादि सर्व कार्याें के आरंभ में आप ही की अग्रपूजा होगी ।’ तो कोई देवता अथवा मनुष्य ‘सर्वप्रथम’ श्री गणेश की पूजा करेंगे, इनका इंद्रादि देवता भी पूजन करेंगे तथा उनका सर्व मंगल होगा । फल की लालसा से जो ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र अथवा अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना करेंगे; परंतु आपकी पूजा नहीं करेंगे, उनके मार्ग में आप विघ्न अथवा बाधा उत्पन्न करेंगे ।
श्री गणपति के व्यापक ज्ञान के कारण उन्हें अग्रपूजा का सम्मान प्राप्त हुआ । तब से लेकर लौकिक, वैदिक, विद्यारंभ, वैवाहिक कार्यारंभ आदि अवसरों पर उनका स्मरण करने की प्रथा अनादि काल से चली आ रही है । संत नामदेव, संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर, संत एकनाथ, समर्थ रामदासस्वामीजी, जगद्गुरु संत तुकाराम, चिंतामणि महाराज, मोरया गोसावी; केवल इतना ही नहीं नरेंद्र नाम के कवि ने भी अपनी ‘रुक्मिणी स्वयंवर’ की रचना में श्री गणेश को नमन किया है ।
– श्रीमती मृणालिनी मुकुंद ठकार, पुणे. (साभार : ‘आनंदी ज्योतिष’)