१. साधना करने हेतु सर्वप्रथम अध्यात्म की सैद्धांतिक जानकारी होना आवश्यक
‘अध्यात्म से संबंधित अनेक ग्रंथों को देखकर लगता है, ‘संबंधित लेखक केवल सैद्धांतिक जानकारी के आधार पर ग्रंथ लिखने की अपेक्षा प्रत्यक्ष क्रिया के स्तर पर अर्थात साधना से संबंधित ग्रंथ क्यों नहीं लिखते ?’, मेरे मन में सदैव यह प्रश्न उठता था । उसके उपरांत भगवान ने मुझे अध्यात्म से संबंधित सैद्धांतिक ग्रंथों के महत्त्व का ध्यान देनेवाले निम्न विचार सुझाए –
अ. किसी विषय की जानकारी हो, तभी उस विषय में जिज्ञासा उत्पन्न होती है तथा उसके उपरांत उस विषय में रुचि उत्पन्न होती है । यह जानकारी उससे संबंधित ग्रंथवाचन अथवा अन्यों से मिली जानकारी के आधार पर ही होती है, उदा. किसी को अक्षरों का परिचय हो, तभी जाकर वह चिकित्सक, अधिवक्ता, अभियंता इत्यादि बन सकता है । इसके अनुसार अध्यात्म की जानकारी मिलने पर ही वह मन से साधना कर सकता है ।
आ. ईश्वर के संदर्भ में सैद्धांतिक जानकारी हो, तभी जिज्ञासु के मन में ईश्वर को जानने हेतु साधना संबंधित विचार आते हैं । उन्हें यदि साधना की जानकारी न हो, तब भी ग्रंथों के कारण यह सैद्धांतिक जानकारी मिलने पर आगे जाकर वे साधना आरंभ करते हैं ।
इ. भारत में पीढी दर पीढी चल रही पूजा अर्चना, प्रवचन, कथा-कीर्तन जैसे विभिन्न माध्यमों से अनेक लोगों को अध्यात्म का प्राथमिक परिचय होता रहता है; परंतु इन विषयों के साथ संपर्क में न रहनेवाले, साथ ही विदेश के लोगों को अध्यात्म के विषय में किसी प्रकार की जानकारी न होने के कारण साधना की ओर उनके मुडने की संभावना अल्प होती है । उनके लिए अध्यात्म से संबंधित ग्रंथ ही मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं ।
ई. किसी ने पिछले जन्म में साधना की हो, तभी वह इस जन्म में साधना कर सकता है । जिसने इससे पूर्व कभी भी साधना नहीं की है, उसे अध्यात्म का अध्ययन करना आवश्यक है । उसके लिए अध्यात्म से संबंधित सैद्धांतिक ग्रंथ उपयुक्त सिद्ध होते हैं ।
उ. अध्यात्म की उचित जानकारी न होते हुए भी किसी ने अनेक वर्षाें तक अनुचित पद्धति से साधना, जैसे अनुचित नामजप करना आदि किया हो, तो उसकी आध्यात्मिक प्रगति नहीं होगी । इसके लिए भी अध्यात्म का अध्ययन करना आवश्यक है ।
अध्यात्म से संबंधित ग्रंथ लेखकों से अनुरोध !यद्यपि ‘वेद, पुराण, भगवद्गीता जैसे ग्रंथ तथा ज्ञानेश्वरी, दासबोध, एकनाथी भागवत जैसे ग्रंथ भले ही अध्यात्म की दार्शनिक जानकारी देते हों, किंतु मुख्य रूप से ‘साधना कैसे करनी चाहिए ?’, यही रेखांकित करते हैं । उसके कारण उक्त लेख पढने के उपरांत उससे संबंधित ग्रंथ लिखनेवाले लेखकों से अपने ग्रंथ के अंत में पाठकों के लिए ऐसा लेखन प्रकाशित करने का अनुरोध करते हैं, ‘यह सैद्धांतिक जानकारी अत्यंत पठनीय है, तब भी सच्चे साधक को इस जानकारी के अनुसार वास्तविक कर्म को ही महत्त्व देना चाहिए । इसी से आपकी वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति होगी ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले |
२. अध्यात्म के संदर्भ में साधक-लेखक के ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए !
साधना किए हुए व्यक्ति के द्वारा लिखे ग्रंथ पढना उचित रहेगा । बिना साधना किए केवल पांडित्य के आधार पर लिखे गए ग्रंथों के कारण ग्रंथ के लेखक तथा पाठक इन दोनों के ही जीवन व्यर्थ हो जाते हैं ।
३. अध्यात्म की सैद्धांतिक जानकारी की अपेक्षा प्रत्यक्ष साधना करना ही महत्त्वपूर्ण !
अध्यात्म की सैद्धांतिक जानकारी का उक्त महत्त्व देखा जाए, तो इसका अर्थ यह नहीं कि ‘पूरा जीवन अध्यात्म का अध्ययन करना चाहिए’ ! इस जानकारी का केवल २ प्रतिशत महत्त्व होता है तथा प्रत्यक्षरूप से साधना करने की कृति का महत्त्व ९८ प्रतिशत होता है, उदा. पूरा जीवन यदि दासबोध का अध्ययन किया जाए, तब भी उसे क्रियान्वित करना आवश्यक है । ‘यह प्रत्यक्ष क्रिया अर्थात साधना कैसे करनी चाहिए ?, सनातन के अनेक ग्रंथों में यह दिया गया है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले