साधकों में व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति गंभीरता बढाने के लिए उत्तरदायी साधक सभी साधकों के व्यष्टि लेखन का ब्योरा लें !
‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।
‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।
देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना एवं कर्नाटक शैली की गायिका पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन् से भेंट की । इस भेंट में श्रीमती गीता चन्द्रन् द्वारा वर्णित उनकी नृत्यसाधना की यात्रा यहां दी गई है ।
‘आश्रम में रहनेवाले, साथ ही प्रसार में सेवा करनेवाले साधक विभिन्न सेवाएं करते हैं । साधकों ने उन्हें मिली प्रत्येक सेवा यदि कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग इन योगमार्गाें के अनुसार की, तो वह परिपूर्ण एवं भावपूर्ण होगी ।’
गुरुदेवजी के बताए अनुसार मैंने २ माह तक रसोईघर में सेवा की । मुझे उस सेवा से बहुत आनंद मिलने लगा । उस आनंद में मैं पहले जो संगीत साधना करती थी, वही भूल गई ।
‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के माध्यम से विगत अनेक वर्षाें से समाजप्रबोधन किया जा रहा है । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकोंद्वारा ‘राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे प्रहार, संतों का मार्गदर्शन, साधकों को हुई अनुभूतियां, सूक्ष्म ज्ञान’ आदि के संबंध में विविध लेखों के माध्यम से समाज के व्यक्तियों का मार्गदर्शन किया जाता है एवं उन्हें साधनाप्रवण किया जाता है ।
२६.१०.२०२२ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की साधिका संगीत विशारद एवं संगीत समन्वयक सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत) ने देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना एवं कर्नाटक की गायिका पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन से भेंटवार्ता की ।
‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के माध्यम से विगत अनेक वर्षों से समाजप्रबोधन किया जा रहा है । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकोंद्वारा ‘राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे प्रहार, संतों का मार्गदर्शन, साधकों को हुई अनुभूतियां, सूक्ष्म ज्ञान’ आदि के संबंध में विविध लेखों के माध्यम से समाज के व्यक्तियों का मार्गदर्शन किया जाता है एवं उन्हें साधनाप्रवण किया जाता है ।
‘नवंबर २०२१ में मेरी सहसाधिका दीपावली के निमित्त घर गई थी । उस समय हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ से संबंधित ‘नियोजन, संकलन, संरचना करने तथा पाक्षिक छपाई के लिए भेजने’ की सेवाएं करते समय मुझे हुई अनुभूतियां यहां प्रस्तुत हैं ।
‘अनेक साधकों को तीव्र अथवा मध्यम स्तर का आध्यात्मिक कष्ट है । ‘व्यष्टि अथवा समष्टि साधना में चूकें होने पर कुछ साधकों के मन में ‘मुझे हो रहे आध्यात्मिक कष्ट के कारण यह चूक हुई’, यह विचार आ रहा है, ऐसा ध्यान में आया है ।
जब साधना आरंभ की, उस समय मुझे परात्पर गुरुदेवजी का प्रत्यक्ष सान्निध्य मिला । ‘उस समय उन्होंने मुझे कैसे तैयार किया ?’, उसके कुछ चुनिंदा प्रसंग यहां बताती हूं ।