विश्व अग्निहोत्र दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम संपन्न

अग्निहोत्र का महत्त्व जानकर, प्रतिदिन यह सरल यज्ञ करने हेतु समिति द्वारा विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में हमें प्रतिदिन अग्निहोत्र क्यों करना चाहिए, अग्निहोत्र किस प्रकार से करते हैं, वातावरण पर अग्निहोत्र का क्या प्रभाव पडता है, आदि विषयों की शास्त्रीय जानकारी दी गई ।

पिछले एक वर्ष में सनातन की विभिन्न भाषाओं में ३४ नए ग्रंथों का प्रकाशन तथा २५४ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए घोर आपातकाल आरंभ होने से पूर्व ही ‘ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार करना’ आज के समय की श्रेष्ठ साधना है !’, ये सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के उद्गार हैं ।

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ को चित्रण के लिए आवश्यक सामग्री !

जो पाठक, शुभचिंतक एवं धर्मप्रेमी यह बल्ब अर्पण के रूप में दे सकते हैं अथवा खरीदने के लिए धनरूप में यथाशक्ति सहायता करने के इच्छुक हैं, वे निम्नांकित क्रमांक पर संपर्क करें ।

साधको, विभिन्न घटनाओं के विषय में मिलनेवाली पूर्वसूचनाएं तथा दिखाई देनेवाले दृश्यों के संदर्भ में निम्नांकित दृष्टिकोण ध्यान में लेकर साधना की दृष्टि से उनका लाभ उठाएं !

‘कुछ साधकों को जागृतावस्था में विभिन्न दृश्य दिखाई देते हैं तथा पूर्वसूचनाएं मिलती हैं । उनमें कुछ दृश्य अच्छे, तो कुछ अनिष्ट गतिविधियों से संबंधित होते हैं । इसमें साधक ‘अनिष्ट शक्तियां ऐसे दृश्य दिखा रही हैं अथवा पूर्वसूचनाएं दे रही हैं’, यह विचार कर उसकी अनदेखी न करें ।

सप्तर्षियों की आज्ञा से साधक सचल- दूरभाष पर बोलते समय ‘नमस्कार’ कहने की अपेक्षा ‘हरि ॐ’ कहकर वार्तालाप आरंभ करें !

(श्रीसत्शक्ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ‘सचल-दूरभाष से बोलते समय साधक ‘नमस्कार’ शब्द से संभाषण आरंभ करते हैं । आगे से सप्तर्षियों की आज्ञा के अनुसार सचल-दूरभाष से बोलते समय सर्व साधक ‘हरि ॐ’ कहकर आपस में बोलना आरंभ करें ।

सिखाने की अपेक्षा सीखने की वृत्ति रखने से अधिक लाभ होता है !

‘ईश्वर सर्वज्ञानी हैं । हमें उनके साथ एकरूप होना है । इसलिए हमारा निरंतर सीखने की स्थिति में रहना आवश्यक है । किसी भी क्षेत्र में ज्ञान अर्जित करना, यह कभी भी समाप्त न होनेवाली प्रक्रिया है । अध्यात्म तो अनंत का शास्त्र है ।