पिछले एक वर्ष में सनातन की विभिन्न भाषाओं में ३४ नए ग्रंथों का प्रकाशन तथा २५४ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

‘अखिल मानवजाति के उद्धार हेतु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्वज फहराने के लिए अहर्निष कार्यरत महान विभूति हैं – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ! ‘हिन्दू राष्ट्र’ धर्म के अधिष्ठान पर ही स्थापित होनेवाला है; इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सर्वत्र धर्मप्रसार का कार्य होना अत्यंत आवश्यक है । धर्मप्रसार का कार्य होने में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति एवं क्रियाशक्ति, इनमें से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य संपन्न होने के सबसे प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए घोर आपातकाल आरंभ होने से पूर्व ही ‘ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार करना’ आज के समय की श्रेष्ठ साधना है !’, ये सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के उद्गार हैं । इस प्रकार ग्रंथ-निर्मिति का कार्य तीव्र गति से होने के लिए एक प्रकार से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी का अव्यक्त संकल्प ही है । इसी संकल्प की फलोत्पत्ति के रूप में पिछले कुछ वर्षाें में सनातन का ग्रंथकार्य अनेक गुना बढा है ।

१. मार्च २०२२ से फरवरी २०२३ तक विभिन्न भाषाओं में कुल मिलाकर ३४ नए ग्रंथ प्रकाशित !

२. मार्च २०२२ से फरवरी २०२३ तक विभिन्न भाषाओं के कुल मिलाकर २५४ ग्रंथों-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

३. ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ को पाठकों से प्राप्त प्रचुर प्रत्युत्तर !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के अव्यक्त संकल्प के प्रभाव से सितंबर २०२१ से सनातन संस्था का राष्ट्रव्यापी ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ उपक्रम आरंभ हुआ । इस अभियान के माध्यम से समाज के अंतिम घटक तक ग्रंथों का प्रसार हो रहा है तथा समाज से इस अभियान को अभूतपूर्व प्रत्युत्तर भी प्राप्त हो रहा है । इस अभियान के अंतर्गत केवल ६ माह में ही मराठी, हिन्दी, कन्नड, गुजराती एवं अंग्रेजी, इन ५ भाषाओं के ३,२७,३६३ ग्रंथों की बिक्री हुई है ! ‘कोरोना’ जैसी महामारी के समय में अकेलापन, निराशा इत्यादि दूर कर उन्हें साधना की ओर मोडने में इन ग्रंथों का बडा योगदान है ।

४. पिछले पूरे वर्ष में विभिन्न भाषाओं के ४ लाख से भी अधिक ग्रंथ-लघुग्रंथों की बिक्री !

पू. संदीप आळशी

ग्रंथ-प्रदर्शनियां एवं बिक्री केंद्र, ‘ऑनलाइन’ पद्धति से ग्रंथों की बिक्री आदि माध्यमों से सनातन के ग्रंथ समाज तक पहुंच रहे हैं । वर्ष २०२२-२३ में विभिन्न भाषाओं के कुल ४ लाख १४ सहस्र २९१ ग्रंथ-लघुग्रंथों की बिक्री हुई है । केवल एक ही वर्ष में इतने बडे स्तर पर हुई ग्रंथ बिक्री से समाज में सनातन के ग्रंथों की बढती लोकप्रियता ध्यान में आती है ।

५. ई-बुक

आधुनिक पीढी के पाठकों के लिए सनातन के ग्रंथ ‘ई-बुक’ स्वरूप में भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं । फरवरी २०२३ तक मराठी, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं के ९ ग्रंथ उपलब्ध कराए गए हैं तथा बहुत शीघ्र अन्य ग्रंथ भी उपलब्ध किए जाएंगे ।

६. विदेशों के हिन्दुओं एवं अहिन्दुओं के ध्यान में आया सनातन के ग्रंथों का महत्त्व !

६ अ. इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, पाकिस्तान, सउदी अरब, इंडोनेशिया, नेपाल इत्यादि देशों से भी ‘ई-मेल’ द्वारा सनातन के ग्रंथों की मांग मिल रही है ।

६ आ. विदेशों के कुछ जालस्थलों ने सनातन के ग्रंथों के पृष्ठों का विदेशी भाषाओं में भाषांतर कर रखा है । इन पृष्ठों को प्रतिमाह १ लाख से अधिक जिज्ञासु भेंट करते हैं । विभिन्न जालस्थल सनातन के ग्रंथों में दिए गए आध्यात्मिक उपचार, औषधि रहित चिकित्सा पद्धति आदि जानकारी समाजहित में प्रकाशित करते हैं ।

६ इ. सनातन के ग्रंथ देखकर न्यूयॉर्क, अमेरिका के श्री. दीपक घोष ने कहा, ‘सनातन के ग्रंथों में समाहित ज्ञान के द्वारा संपूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म की सुगंध फैलाने के आपके प्रयास प्रशंसनीय हैं, इसके लिए आपका अभिनंदन !’

७. शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए ग्रंथ कार्य में सम्मिलित हों !

ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति एवं क्रियाशक्ति इनमें से ज्ञानशक्ति के स्तर की सेवा करने के कारण आध्यात्मिक उन्नति सर्वाधिक गति से हो सकती है; इसीलिए ग्रंथ सेवा का महत्त्व अनन्य है ।

वर्ष १९९५ से लेकर फरवरी २०२३ तक ३६० ग्रंथ-लघुग्रंथों की मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड, तमिल, तेलुगु, मलयालम, बांग्ला, ओडिया, असमिया, गुरुमुखी, सर्बियन, जर्मन, स्पैनिश, फ्रांसीसी एवं नेपाली, इन १७ भाषाओं में ९२ लाख ८१ सहस्र प्रतियां प्रकाशित हुई हैं । लगभग ५ सहस्र से अधिक ग्रंथों की निर्मिति की प्रक्रिया तीव्र गति से होने के लिए अनेक लोगों की सहायता की आवश्यकता है । आपकी रुचि एवं क्षमता के अनुसार आप ग्रंथ-निर्मिति के कार्य में सम्मिलित हो सकते हैं । इसके साथ ही ग्रंथों का प्रसार करना, ग्रंथों के लिए अर्पण अथवा विज्ञापन देना, प्राप्त करना, ग्रंथों का वितरण करना आदि सेवाओं में भी आप सम्मिलित हो सकते हैं । सभी से विनम्र निवेदन है कि आप इस स्वर्णिम अवसर का अधिकाधिक लाभ उठाएं !

– (पू.) श्री. संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के संकलनकर्ता (५.३.२०२३) 


त्योहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र

हिन्दू धर्म के त्योहार, उत्सव एवं व्रतों के विषय में धर्मशास्त्र सिखानेवाले सनातन के ग्रंथ !

सनातन के इस ग्रंथ में पढें…

  • त्योहार धर्मशास्त्र के अनुसार ही क्यों मनाएं ?
  • वर्षा ऋतु में त्योहार अधिक क्यों होते हैं ?
  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही वर्षारंभ क्यों है ?
  • नववर्षारंभ कैसे मनाएं ?
  • नववर्षारंभ पर नीम-पत्तियों का प्रसाद क्यों खाएं ?
  • दशहरा, दीपावली, मकर संक्रांति आदि त्योहारों का क्या महत्त्व है ?

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