इसीलिए मंदिरों का सरकारीकरण नहीं होना चाहिए !

सरकारीकरण के कारण मंदिर में भगवान की सेवा भावपूर्ण नहीं होती तथा जैसा सरकार में किया जाता है, वैसा ही भ्रष्टाचार मंदिर में भी किया जाता है । इससे भगवान मंदिर से चले जाएंगे और भक्तों को मंदिर में जाने का लाभ नहीं मिलेगा।

भारत और हिन्दू धर्म की पराकोटि की हानि करनेवाले अभी तक के शासनकर्ता !

जिसकी शिक्षा हेतु पूरे विश्व के लोग भारत में आते हैं, ऐसा एक ही विषय है और वह है, मानव का चिरंतन कल्याण करनेवाला अध्यात्मशास्त्र तथा साधना । ऐसा होते हुए भी भारत के अभी तक के किसी भी शासनकर्ता को उसका महत्व समझ में नहीं आया

फल की अपेक्षा न रख पराकाष्ठा के प्रयास करें !

‘क्रियमाण कर्म का पूरा उपयोग कर पराकाष्ठा के प्रयास करें; परंतु फल प्रारब्ध पर अथवा ईश्वर पर छोडें!’

कहां वैज्ञानिक और कहां ऋषि- मुनि !

‘कहां अन्य ग्रह पर जानेवाले यान का आविष्कार करने पर विज्ञान की सराहना करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी, और कहां सूक्ष्म देह से विश्व ही नहीं, सप्तलोक एवं सप्तपाताल में भी एक क्षण में जा पानेवाले ऋषि-मुनि!’

अध्यात्म की श्रेष्ठता !

‘अध्यात्मशास्त्र में १४ विद्या और ६४ कला, अर्थात संसार के सभी विषय समाहित हैं। आधुनिक विज्ञान को इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। इसके विपरीत अध्यात्मशास्त्र इनकी परिपूर्ण जानकारी देता है ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

बुद्धिप्रमाणवादी कहते हैं, ‘सूक्ष्म जगत, भूत आदि कुछ नहीं होता; क्योंकि उनमें सूक्ष्म संबंधी जानने की इच्छा ही नहीं होती तथा उनमें सूक्ष्म जगत अनुभव करने के लिए आवश्यक साधना करने की क्षमता भी नहीं होती !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले 

इंदौर (मध्य प्रदेश) में प.पू. भक्तराज महाराजजी का गुरुपूर्णिमा उत्सव भावपूर्ण एवं उत्साहपूर्ण वातावरण में संपन्न !

सनातन संस्था के श्रद्धास्रोत एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी का गुरुपूर्णिमा उत्सव २ एवं ३ जुलाई को यहां के भक्तवात्सल्य आश्रम के निकट स्थित नवनीत गार्डन में भावपूर्ण एवं उत्साहपूर्ण वातावरण में मनाया गया ।

परिपूर्ण सेवा करनेवाले एवं पितृवत प्रेम करनेवाले श्री.अरविंद सहस्रबुद्धे एवं चिकाटी से व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवालीं श्रीमती वैशाली मुंगळे संतपद पर विराजमान !

पू. सहस्रबुद्धेजी के जीवन में साधना के कारण हुए परिवर्तन, उनके द्वारा स्थिरता से सर्व कठिन प्रसंगों का सामना करना, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति उनकी श्रद्धा आदि प्रसंग सुनकर उपस्थित लोगों का भाव जागृत हुआ ।