एक विख्यात योग प्रशिक्षक ने एक व्याख्यान में उनके अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य बताते हुए उनकी स्वयं की दिनचर्या बताई, जो संपूर्ण रूप से आयुर्वेद में बताए नियमों के अनुसार थी । आयुर्वेद तो सहस्रों वर्ष से चला आ रहा है; परंतु उसके सिद्धांत आज भी अचूकता से लागू होते हैं; इसीलिए आयुर्वेद चिरंतन है । इस लेख में हम समझ लेंगे कि ‘हमारी दिनचर्या आयुर्वेद के अनुसार कैसी होनी चाहिए ? तथा वह वैसे क्यों होनी चाहिए ?’ वर्तमान के भागदौडभरे जीवन में हमें आदर्श दिनचर्या का १०० प्रतिशत पालन करना एक दिन में संभव होगा ही, ऐसा नहीं है; परंतु प्रत्येक व्यक्ति को इस आदर्श जीवनशैली का अधिक से अधिक पालन करने का प्रयास करना चाहिए ।
१. सवेरे जल्दी उठना
‘ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः । (अष्टाङ्गहृदय, सूत्रस्थान, अध्याय २, श्लोक १)’, अर्थात ‘स्वस्थ व्यक्ति को अपनी स्वास्थ्यरक्षा के लिए ब्राह्म मुहूर्त पर उठना चाहिए ।’ छोटे बच्चे, बीमार व्यक्ति, वयोवृद्ध व्यक्ति अथवा जो देर को रात सोते हैं; वे इसके लिए अपवाद हैं । इस श्लोक में ‘निरोगी व्यक्ति’ शब्द का जानबूझकर प्रयोग किया है । प्रतिदिन ब्राह्म मुहूर्त पर उठना चाहिए; परंतु उसके लिए रात को शीघ्र सोना पडेगा तथा न्यूनतम ७ घंटे की नींद होना आवश्यक है । उसके कारण स्वयं के स्वास्थ्य की रक्षा होती है । प्रातः जल्दी उठने से मलप्रवृत्ति साफ होती है । प्रतिदिन देर से जागनेवाले व्यक्तियों को बवासीर का कष्ट होता ही है । उसके कारण पेट साफ नहीं होता; इसलिए चाय पीना, तंबाकू का सेवन करना, ऐसा किए बिना शौच नहीं होता । पेट साफ न हो, तो उससे अनेक बीमारियों को आमंत्रण मिलता है । मुंह में दुर्गंध आना, अन्न का पाचन ठीक से न होना, भूख न लगना, आलस्य आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं; इसलिए रात को जल्दी सोना तथा प्रातः जल्दी उठने की सामान्य कृति हमारे स्वास्थ्य की अधिकांश समस्याओं को न्यून (कम) करती हैं ।
२. सवेरे जागने पर पहले शौच के लिए जाएं
सवेरे जागने पर शौच होना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है । कुछ लोग शौच के लिए जाने पर समाचारपत्र पढना, मोबाइल देखना आदि कृतियां करते हैं, जो बहुत ही अनुचित हैं । मल-मूत्र विसर्जन करते समय मन को विचलित करनेवाली बातें हुईं, तो उससे शौच को साफ नहीं होगा । उसके परिणामस्वरूप ऐसा व्यक्ति शौचालय में अधिक समय व्यतीत करता है; इसलिए ऐसी चूकें टालनी चाहिए । जिन्हें शौच की संवेदना नहीं होती, वे बलपूर्वक जोर लगाकर शौच करने का प्रयास न करें । शौच की संवेदना होने के पश्चात ही शौच के लिए जाएं ।
३. दांत मांजना तथा गंडूष (कुल्ला) करना
दांत मांजने के लिए आजकल सर्वत्र ‘टूथपेस्ट’ का ही उपयोग किया जाता है । हमारे यहां वनस्पतियों के कोमल तिनके चबाना, दंतमंजन का उपयोग करना बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है; परंतु पाश्चात्यों ने भारतीय लोगों को टूथपेस्ट की आदत डाली । भले ही यह काल के अनुसार आया परिवर्तन हो; तब भी हमें दांत मांजने के लिए बीच-बीच में दंतमंजन का भी उपयोग करना चाहिए । दंतमंजन में प्रयुक्त कसैली, तीखी तथा कडवे स्वादवाली वनस्पतियां दांतों एवं मसूडों का स्वास्थ्य अच्छा रखती हैं ।
उसके उपरांत गंडूष अर्थात कुल्ला करना आवश्यक है, चाहे वो पानी से हो; औषधि काढे से की जानेवाली हो अथवा तेल से हो । उससे दांत, मसूडे तथा गले का स्वास्थ्य अच्छा रहने के लिए तेल (तिल अथवा नारियल के तेल) से कुल्ला करना चाहिए । कुल्ला करने के पश्चात उस तेल को थूंक दें तथा कुल्ला करें । इसी क्रिया को ‘ऑइल पुलिंग’ कहते हैं ।
४. प्रतिदिन अभ्यंग करना महत्त्वपूर्ण !
हमने इससे पूर्व भी शरीर को तेल लगाने का महत्त्व समझ लिया है । अभ्यंग करने से शरीर की थकान चली जाती है, वात न्यून होता है, आयु बढती है, त्वचा कोमल होती है तथा शरीर बलवान बनता है । हमारे यहां दीपावली के समय अथवा ठंड के मौसम में अभ्यंग किया जाता है । अन्य समय पर कोई अभ्यंग करता हुआ दिखाई नहीं देता; परंतु आयुर्वेद ने आदर्श दिनचर्या में इसे अंतर्भूत किया है । इसका अर्थ प्रतिदिन अभ्यंग करना अपेक्षित है । प्रतिदिन संभव नहीं हुआ, तो सप्ताह में न्यूनतम २ बार पूरे शरीर को अभ्यंग होना अपेक्षित है । उसके लिए हम तिल के तेल का उपयोग कर सकते हैं । पूरे शरीर का अभ्यंग करना संभव न हो, तो सिर एवं पैर को अवश्य तेल लगाएं । जिन्हें कफ का कष्ट है अथवा अपचन है, ऐसे लोग अभ्यंग न करें ।
५. प्रतिदिन व्यायाम करना
व्यायाम के लाभ से तो सभी अवगत हैं । व्यायाम से शरीर हलका हो जाता है । दिनभर हम जो काम करते हैं, उसके लिए बल व्यायाम से मिलता है । व्यायाम से शरीर सुडौल तथा सशक्त बनता है । व्यायाम अपनी शक्ति के आधी मात्रा में करें । अर्थात जब मुंह से सांस लेने की आवश्यकता पडे, तब रुकें । अतिव्यायाम करना टालें ।
६. शरीर को उबटन लगाकर स्नान करना
इसे आयुर्वेद में ‘उद्वर्तन’ कहते हैं । शरीर को प्रतिदिन उबटन लगाने से कफ कम होता है । अतिरिक्त चर्बी घटती है, त्वचा स्वच्छ होती है । उबटन लगाने के पश्चात गरम (गुनगुने) पानी से स्नान करें । कंधे से नीचे तक गरम पानी से नहाएं, सिर तथा मुंह धोते समय गुनगुने अथवा ठंडे पानी से धोएं । आंखें एवं केश के लिए गरम पानी अहितकारी है । जिन्हें सर्दी लग गई है, अपचन अथवा अतिसार हुआ है, ऐसे लोग तथा सामान्य लोग भोजन के उपरांत स्नान न करें ।
७. स्नान के उपरांत भोजन करें
रात को लिए आहार का पूरा पाचन होने के उपरांत ही अपनी प्रकृति के अनुसार उचित तथा आवश्यक मात्रा में भोजन करें ।
– वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर, पुणे (२९.१.२०२४)