डॉक्टर, मुझे पंचकर्म करना है !

शुद्ध आयुर्वेद की प्रैक्टिस (व्यवसाय) करनेवाले वैद्यों को रोगियों से आनेवाली मांग कि ‘डॉक्टर, मुझे पंचकर्म करना है’,  कोई नई नहीं है । चिकित्सालय में ‘हमें केवल पंचकर्म ही करना है’, यह इच्छा रखनेवाले अनेक रोगी आते रहते हैं । वैसा करने में कोई आपत्ति भी नहीं है । ‘पंचकर्म  ही रिलैक्सेशन थेरपी (विश्राम का तंत्र) है’, यह अवधारणा रखनेवाले अनेक लोग हैं; परंतु वास्तव में देखा जाए, तो पंचकर्म का चिकित्सकीय दृष्टिकोण भी उतना ही अधिक है ।

१. ‘स्पा’ एवं पंचकर्म में अंतर

पंचकर्म में मूलरूप से उद्देश्य होता है – दोष शोधन अथवा शरीर में बढे अथवा अनुचित स्थानों पर स्थित दोषों को बाहर निकालना । पंचकर्म बीमारी के अनुसार तथा ऋतु के अनुसार किया जा सकता है । तो दोष क्या होता है ? तथा किस ऋतु में कौनसा पंचकर्म करना चाहिए ?’, इसकी जानकारी वैद्य दे सकते हैं । जब आप वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य एवं रक्तमोक्षण, ये चिकित्साएं लेते हैं, उस समय उन्हें चिकित्सकीय दृष्टिकोण होने से पथ्य का पालन करना महत्त्वपूर्ण होता है । उस समय इस पथ्य का ठीक से पालन नहीं किया गया, तो कष्ट हो सकता है । ‘स्पा’ (संपूर्ण शरीर को तेल लगाने की प्रक्रिया) तथा प्रत्यक्ष चिकित्सकीय शिक्षा लेकर शुद्ध आयुर्वेद प्रैक्टिस के अनुभवप्राप्त वैद्य से पंचकर्म करवा लेने में बहुत अंतर है ।

मूलतः ‘स्पा थेरपी’ पंचकर्म क्रियाएं नहीं हैं; परंतु आयुर्वेद के विचार का उपयोग कर ‘स्पा’ जैसे उपक्रम किए जा सकते हैं अर्थात आयुर्वेद की व्यापकता बहुत अधिक है । समाज में ऐसी भी एक अवधारणा दिखाई देती है कि (मर्दन करना), स्टीम (भाप लेना) तथा पोट्टली स्वेदन ही पंचकर्म होता है । इन सभी को पंचकर्म से पूर्व अथवा स्वतंत्र उपक्रम के रूप में किया जाता है, जिसका अच्छा लाभ दिखाई देता है; परंतु रोगी के शरीर में स्थित बीमारी की प्रबलता, पंचकर्म से क्या साध्य करना है ? तथा उसके अनुसार क्या करना चाहिए, यह वैद्य ही अच्छे ढंग से बता सकते हैं । ‘आम्लपित्त के लिए केवल पंचकर्म कीजिए, औषधि की आवश्यकता नहीं है अथवा जोडों के दर्द के लिए केवल मसाज तथा कोई स्वेदन का प्रकार कर लीजिए । हम अमुक प्रतिष्ठान में बनी गोलियां ले रहे हैं’, यह पूर्ण आयुर्वेद उपचार नहीं है ।

वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये

२. औषधि एवं पंचकर्म, इन दोनों को एकत्रित करना महत्त्वपूर्ण !

यह बताने का उद्देश्य यह है कि अनेक बार केवल पंचकर्म करने के पश्चात रोगी ‘हमें आयुर्वेद के उपचार का तात्कालिक ही लाभ हुआ’ अथवा ‘हमने अमुक वैद्य के पास अमुक बीमारी के लिए पंचकर्म किया; परंतु उसका कुछ परिणाम नहीं मिला’, ऐसा बताते हैं । वास्तव में देखा जाए, तो औषधि एवं पंचकर्म, ये दोनों हाथ में हाथ डालकर चलनेवाले विषय हैं, जिसके कारण चिकित्सा पूर्ण होती है । प्रत्येक रोगी को पंचकर्म करना ही पडेगा, ऐसा भी नहीं है। इसका जानकार आपका वैद्य होता है ।

३. चिकित्सकीय मार्गदर्शन लेकर ही पंचकर्म करना आवश्यक !

पंचकर्म चिकित्सा लेने पर दोष बाहर निकलने के कारण आनेवाली अशक्तता उचित है । उसका कुछ समय के लिए आना तथा उसके उपरांत शरीर में हल्कापन, बीमारी का नाश तथा स्वास्थ्यलाभ अपेक्षित है । कोई शास्त्रशुद्ध शिक्षाप्राप्त व्यक्ति आपको यह सूक्ष्मता बता पाएगा । इस लेख का उद्देश्य इतना ही है कि रोगियों को/लोगों को शुद्ध आयुर्वेदीय चिकित्सा के उद्देश्य से पंचकर्म करना हो, तो शिक्षित वैद्य से उचित चिकित्सकीय मार्गदर्शन लेने के उपरांत ही करें ।

– वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये, यशप्रभा आयुर्वेद, पुणे