‘गुइलेन बैरे सिंड्रोम’ (जी.बी.एस.) के लिए पंचगव्य-ओजोन चिकित्सा : एक प्रभावी विकल्प !

भारतीय परंपरा तथा आधुनिक विज्ञान का संगम !

आज के आधुनिक युग में चिकित्सा के क्षेत्र में भले ही बडी प्रगति हुई हो, तब भी कुछ दुर्लभ बीमारियों के लिए उपलब्ध विकल्प अभी भी सीमित हैं । ‘गुइलेन बैरे सिंड्रोम’ (जी.बी.एस.) भी ऐसी ही एक दुर्लभ; परंतु ‘न्यूरोलॉजिकल’ (तंत्रिका से संबंधित) गंभीर बीमारी है । इसके लिए प्रचलित उपचार-पद्धतियां महंगी तथा दीर्घकालीन होती हैं । उसके कारण रोगियों को अनेक बडी समस्याओं का सामना करना पडता है; परंतु ‘पंचगव्य चिकित्सा’ (दूध, दही, घी, गोमूत्र एवं गोमय का मिश्रण) तथा ‘ओजोन थेरपी’. ये दोनों इस बीमारी के लिए प्रभावशाली एवं प्राकृतिक उपचार सिद्ध हो सकते हैं । (इस थेरपी के द्वारा ओजोन का उपयोग शरीर में ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि कर कोशिकाओं को नवसंजीवनी दिलाने के लिए किया जाता है ।) विगत कुछ वर्षाें में पुणे के वैद्य दिलीप कुलकर्णी तथा अन्य कुछ आयुर्वेदाचार्याें ने पंचगव्य चिकित्सा एवं ओजोन का कैंसर, मधुमेह, चर्मरोग तथा तंत्रिका तंत्र की बीमारियों के उपचार के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया है । इस उपचार-पद्धति से रोगियों की औषधियों पर निर्भरता न्यून करना संभव हुआ है । ‘जी.बी.एस.’ एक जटिल एवं चुनौतीपूर्ण बीमारी है; परंतु पंचगव्य एवं ओजोन चिकित्सा उसपर आशादायक सिद्ध हो सकती है । भारतीय संस्कृति में समाहित गो-चिकित्सा एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी का उचित समन्वय किया गया, तो उससे इस बीमारी के लिए प्राकृतिक एवं प्रभावशाली उपचार उपलब्ध हो सकते हैं । इस लेख में हम इस विषय को समझने का प्रयास करेंगे ! 

(पूर्वार्ध)

१. ‘जी.बी.एस.’ क्या है ?

‘गुइलेन बैरे सिंड्रोम’ एक ‘ऑटोइम्यून’ बीमारी है, अर्थात ही यह बीमारी शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता से संबंधित होती है । सामान्यरूप से शरीर की रोगप्रतिरोधक कोशिकाएं हानिकारक जीवाणुओं पर आक्रमण करती हैं; परंतु ‘जी.बी.एस.’ में यही रोग प्रतिरोधक क्षमता अज्ञानवश स्वयं की तंत्रिका पर आक्रमण करती हैं, जिससे ज्ञानतंतुओं को हानि पहुचंकर मांसपेशियों की क्षमता अल्प हो जाती है ।

वैद्य दिलीप कुलकर्णी

२. ‘जी.बी.एस.’ के प्रमुख कारण एवं लक्षण

‘जी.बी.एस.’ की बीमारी का भले ही कोई विशिष्ट एक कारण न हो, तब भी ‘वालरल’ (संक्रमण) अथवा बैक्टेरियल संक्रमण, टीकाकारण के पश्चात की रोगप्रतिरोधक क्षमता में दोष उत्पन्न होना, ‘ऑटोइम्यून डिसऑर्डर’ एवं आनुवंशिक घटकों के कारण यह बीमारी हो सकती है ।

३. आयुर्वेद के अनुसार इस बीमारी के कारण

‘जी.बी.एस.’ वातदोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है’, ऐसा आयुर्वेद बताता है । वात तंत्रिका का प्रमुख नियंत्रक होता है तथा उसके असंतुलन के कारण शरीर में स्थित मांसपेशियां दुर्बल हो जाती हैं, रक्तप्रवाह में दोष उत्पन्न होता है, संवेदनाएं क्षीण होती हैं तथा उससे शरीर को हानि पहुंचती है ।

४. ‘जी.बी.एस.’ के प्रमुख लक्षण

अ. शरीर के निचले भाग में आरंभ होकर धीरे-धीरे ऊपर की दिशा में जानेवाली दुर्बलता

आ. मांसपेशियों की गतिविधियां प्रभावित होना तथा शारीरिक गतिविधियां धीमी होना

इ. छाती में स्थित भारीपन तथा रक्तचाप में उतार-चढाव आना

ई. रोगप्रतिरोधक क्षमता क्षीण होकर बार-बार बीमारियां होना

उ. सुन्नता आना, घुटने तथा हाथ-पैरों के नाकाम होने की संभावना

५. पंचगव्य चिकित्सा – भारतीय परंपरा में स्थित वैज्ञानिक उपचार

भारतीय संस्कृति में गाय को ‘माता’ माना गया है तथा उसके पंचगव्य में (दूध, दही, घी, गोमूत्र एवं गोमय में) असंख्य औषधीय गुणधर्म पाए जाते हैं । आयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता में सुधार आता है, कोशिकाओं का नवसृजन होता है तथा तंत्रिका को मजबूती मिलती है ।

६. ‘जी.बी.एस.’ के लिए  पंचगव्य एवं ओजोन थेरपी का संयोग

अ. गाय के दूध एवं घी का नियमित सेवन तंत्रिका के लिए लाभकारी है ।

आ. गोमूत्र का नियमित सेवन करने से विषैले घटक बाहर निकाले जाते हैं तथा उससे रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है ।

इ. ओजोनयुक्त पंचगव्य औषधि शरीर में दोषों का संतुलन बनाए रखकर तंत्रिका को सुदृढ बनाती है ।

७. ओजोन चिकित्सा – आधुनिक विज्ञान का चमत्कार

ओजोन (O3) ऑक्सीजन की तुलना में अधिक सक्रिय वायु है तथा उसमें जीवाणुनाशक एवं विषाणुनाशक गुणधर्म होते हैं । आधुनिक चिकित्साशास्त्र के अनुसार ओजोन चिकित्सा के कारण शरीर में स्थित जीवाणुओं को मारने में सहायता मिलती है तथा उससे रक्ताभिसरण में सुधार आता है ।

८. ओजोन चिकित्सा के लाभ

अ. तंत्रिका में पुनर्सृजन तथा सुधार लाता है ।

आ. शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढाता है । उसके कारण कोशिकाओं को अधिक ऊर्जा मिलती है ।

इ. रोग के विषाणु (वायरस), बैक्टेरिया तथा विषाणुओं पर प्रभावशाली सिद्ध होता है ।

इ. रक्त का शुद्धीकरण कर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाता है ।

९. ‘जी.बी.एस.’ पर पंचगव्य-ओजोन चिकित्सा : एक प्रभावी विकल्प !

अ. पारंपरिक उपचारों की तुलना में सरल, सस्ता और प्राकृतिक विकल्प ।

आ. शरीर की अपनी प्रतिरक्षा क्षमता को सशक्त करता है ।

इ. महंगी स्टेरॉइड्स और ‘इम्युनोग्लोब्युलिन’ की तुलना में इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं । इसके अतिरिक्त, इसके शीघ्र परिणाम दिखने की संभावना अधिक है ।

१०. भारतीय परंपरा एवं आधुनिक विज्ञान का संगम !

‘जी.बी.एस.’ एक न्यूरोलॉजिकल विकार है तथा उसके लिए अभी भी संपूर्ण उपचार-पद्धति उपलब्ध नहीं है । पारंपरिक उपचार भले ही महंगे तथा दीर्घकालीन हों, तब भी पंचगव्य चिकित्सा एवं ओजोन थेरपी का उचित उपयोग करने से इस बीमारी को अधिक प्रभावीरूप से नियंत्रित किया जा सकता है । आयुर्वेद एवं निसर्गोपचार भारतीय विज्ञान मनुष्यजाति के लिए अमूल्य योगदान हैं । गाय के पंचगव्य में विद्यमान औषधीय गुणधर्म तंत्रिका का पोषण कर शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं । इसके साथ ही ओजोन थेरपी शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढाकर कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर विषाणुओं पर प्रभावी कार्य कर मांसपेशियों को पुनर्बल प्रदान करता है ।

प्राचीन भारत ने सदैव ही ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ (सभी को उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त हो) का मंत्र संजोया है । वर्तमान समय में आयुर्वेद तथा आधुनिक शोध का उचित समन्वय किया गया, तो उससे गंभीर बीमारियों पर प्रभावी, सुरक्षित तथा प्राकृति उपचार विकसित किया जा सकता है । गो-चिकित्सा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संतुलन बनाने से भारत विश्व के सामने स्वास्थ्य के विषय में एक नया आदर्श स्थापित कर सकता है ! आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ भारतीय परंपरा की चिकित्सा-पद्धतियों का गहन अध्ययन तथा उससे संबंधित प्रयोग करने से ‘जी.बी.एस.’, साथ ही अन्य असाध्य बीमारियों के लिए आशादायक परिणाम मिल सकते हैं  । इसीलिए इन उपचार-पद्धतियों का व्यापक प्रचार तथा उस पर शोध होना आवश्यक है, जिससे अधिक से अधिक रोगियों को उसका लाभ मिल पाएगा । ‘जो पारंपरिक है, वही वैज्ञानिक है ! केवल उसकी खोज करने की आवश्यकता है ।!’

– वैद्य दिलीप कुलकर्णी, पंचगव्य-ओजोन चिकित्सा शोधकर्ता तथा आयुर्वेदाचार्य कोथरूड, पुणे, महाराष्ट्र. (७.३.२०२५)           (क्रमशः)