‘आज के समय में अधिकतर लोगों को अल्पाधिक स्तर पर आध्यात्मिक कष्ट (टिप्पणी) होता है, साथ ही वातावरण में रज-तम का स्तर बहुत बढ जाने से व्यक्ति की देह, मन एवं बुद्धि पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण बतनता है । उसके कारण उसे विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों का सामना करना पडता है । धूप के उपचार करने से (शरीर पर धूप लेने से) व्यक्ति के इर्द-गिर्द बना कष्टदायक स्पंदनों का आवरण न्यून होने में सहायता मिलती है । धूप के उपचार करने से व्यक्ति पर आध्यात्मिकदृष्टि से होनेवाले परिणाम का अध्ययन करने हेतु ‘यू.ए.एस. (युनिवर्सल औरा स्कैनर)’ इस उपकरण की सहायता से परीक्षण किया गया । इन परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन, निष्कर्ष एवं अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया गया है –
१. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षण का विवेचन
इस परीक्षण में तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त १ व्यक्ति तथा आध्यात्मिक पीडारहित १ व्यक्ति सम्मिलित थे । धूप के उपचार करने से पूर्व तथा २० मिनटतक धूप के उपचार करने पर ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल औरा स्कैनर)’, इस उपकरण की सहायता से उनके परीक्षण किए गए । धूप के उपचार करने के उपरांत पर परीक्षण में सम्मिलित व्यक्तियों पर हुआ परिणाम आगे दिया गया है –
१ अ. धूप के उपचार करने के पश्चात परीक्षण में सम्मिलित व्यक्तियों पर सकारात्मक परिणाम होना : धूप के उपचार करने पर दोनों में समाहित नकारात्मक ऊर्जा घटकर सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हुई ।
२. निष्कर्ष
धूप के उपचार करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।
३. परीक्षण में किए गए निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
३ अ. धूप के उपचार करने से परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों को आध्यात्मिक लाभ होना : सूर्यदेव स्वास्थ्य प्रदान करते हैं । इसीलिए बताया गया है कि ‘आरोग्यं भास्करात् इच्छेत् ।’ अर्थात ‘सूर्यदेव से स्वास्थ्य मांगें ।’ शरीर को स्वस्थ रखने हेतु प्रतिदिन शरीर पर धूप पडना आवश्यक होता है । शरीर पर धूप लेते समय उसे ऋतुओं के अनुसार लेने के नियमों का पालन कर लें । प्रतिदिन उचित मात्रा में शरीर पर धूप लेने से शरीर में बढे दोष (रोगकारक द्रव्य) दूर होने में सहायता मिलती है । धूप के उपचार करने से व्यक्ति की देह, मन एवं बुद्धि पर बना कष्टदायक स्पंदनों का आवरण दूर होने में सहायता मिलती है । इसके कारण व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्ट न्यून होकर उसके स्वास्थ्य में सुधार आता है । परीक्षण में सम्मिलित साधकों ने केवल १ दिन २० मिनट तक धूप का उपचार करने से उनमें समाहित नकारात्मक ऊर्जा घटकर उनमें समाहित सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हुई । इससे ‘धूप के उपचार करना आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत लाभकारी है’, यह प्रमाणित होता है ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२९.१.२०२४)
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आध्यात्मिक कष्ट : आध्यात्मिक कष्ट होने का अर्थ व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना ! व्यक्ति में ३० प्रतिशत से अल्प नकारात्मक स्पंदन होने का अर्थ मंद आध्यात्मिक कष्ट, ३० से ४९ प्रतिशत होने का अर्थ मध्यम कष्ट तथा ५० प्रतिशत से अधिक स्तर के होने का अर्थ तीव्र कष्ट होना ! आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट आदि आध्यात्मिक कारणों से होता है । संत अथवा सूक्ष्म स्पंदनों को जानने की क्षमता रखनेवाले साधक ही आध्यात्मिक कष्ट का अनुमान लगा सकते हैं । सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |