‘भगवान भाव के भूखे होते हैं’, इस वचन के अनुसार मंदिर में देवता के दर्शन करते समय दर्शन कर रहे व्यक्ति का भगवान के प्रति भाव के अनुसार उसे चैतन्य ग्रहण होता है !

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’, उपकरण के द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

‘हिन्दू संस्कृति में मंदिरों का तथा मंदिर जाकर देवता के दर्शन करने का बडा महत्त्व है । मंदिरों को चैतन्यदायी ऊर्जा का स्रोत माना गया है । मंदिर में भगवान के दर्शन हेतु जानेवाले श्रद्धालुओं पर वहां व्याप्त चैतन्य का परिणाम होता है । मंदिर में भगवान के दर्शन करने पर हमारे मन को प्रसन्नता प्रतीत होती है तथा उत्साह लगता है ।

‘व्यक्ति के द्वारा मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने से पूर्व तथा करने के उपरांत उसकी सूक्ष्म ऊर्जा पर (‘ऑरा’ पर) क्या परिणाम होता है ?’, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’, उपकरण का उपयोग किया गया । इस उपकरण की सहायता से व्यक्ति, वस्तु एवं वास्तु में विद्यमान सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा की गणना की जा सकती है ।

यू.ए.एस. उपकण द्वारा परीक्षण करते समय, श्री. आशीष सावंत

१. परीक्षण में किए गए निरीक्षण

इस प्रयोग में ३ व्यक्तियों द्वारा मंदिर जाकर दर्शन करने से पूर्व तथा दर्शन करने के उपरांत ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर’, के द्वारा उनके परीक्षण किए गए । इन परीक्षणों में किए गए निरीक्षण आगे दिए गए हैं –

टिप्पणी – परीक्षण में सम्मिलित सभी व्यक्तियों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए । इसका कारण यह है कि वर्तमान समय अत्यंत रज-तमप्रधान होने से उससे व्यक्ति का मन, बुद्धि एवं शरीर पर रज-तमात्मक (कष्टकारी) स्पंदनों का आवरण आ जाता है । इन कष्टकारी स्पंदनों से रक्षा होने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन स्वयं के आस-पास स्थित आवरण को कुछ अंतराल पश्चात निकालना आवश्यक है । आवरण निकालने हेतु हम विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर सकते हैं, उदा. विभूति लगाना, स्वयं पर गोमूत्र छिडकना, स्तोत्र बोलना अथवा सुनना, नामजप करना इत्यादि ।

२. मंदिर में देवता के दर्शन करने के उपरांत परीक्षण में सम्मिलित व्यक्तियों की सूक्ष्म ऊर्जा पर हुए परिणाम

अ. पहले व्यक्ति में स्थित नकारात्मक ऊर्जा अल्प होकर उसमें सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई ।

आ. दूसरे व्यक्ति में स्थित नकारात्मक ऊर्जा बहुत अल्प होकर उसमें स्थित सकारात्मक ऊर्जा बहुत बढी ।

इ. तीसरे तथा चौथे व्यक्तियों में नकारात्मक ऊर्जा अल्प होकर उनमें स्थित सकारात्मक ऊर्जा बढी ।

निष्कर्ष : देवता के दर्शन करने पर परीक्षण में सम्मिलित सभी की सूक्ष्म ऊर्जा पर सकारात्मक परिणाम हुए; परंतु उनका अनुपात भिन्न-भिन्न है ।

३. परीक्षण में किए निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण

श्री. गिरीश पंडित पाटील

३ अ. मंदिर जाकर देवता के दर्शन करते समय भगवान के प्रति व्यक्ति के भाव के अनुसार उसे आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होना : परीक्षण में सम्मिलित व्यक्तियों द्वारा देवता के दर्शन करने पर उनकी सूक्ष्म ऊर्जा पर सकारात्मक परिणाम हुए; परंतु उनका अनुपात भिन्न है । अन्य व्यक्तियों की तुलना में दूसरे व्यक्ति पर सर्वाधिक सकारात्मक परिणाम दिखाई दिया । उसका कारण यह है कि दर्शन करते समय भगवान के प्रति व्यक्ति का जैसा भाव होता है, वह उसी स्तर पर भगवान का चैतन्य ग्रहण कर पाता है । ग्रहण किए गए इस चैतन्य को बनाए रखना भी आवश्यक है । इसके लिए भगवान के दर्शन करने के उपरांत कुछ समय तक मंदिर में बैठकर अंतर्मुख होकर देवता का नामजप करें, जिससे चैतन्य अधिक समय तक बना रहेगा ।

संक्षेप में कहा जाए, तो ‘दर्शन करने मंदिर जाने पर व्यक्ति जिस भाव एवं श्रद्धा से भगवान के दर्शन करता है, उसके अनुसार आध्यात्मिक स्तर पर उसे लाभ मिलता है’, यह बात ध्यान में आती है ।’

– श्री. गिरीश पंडित पाटील, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२६.३.२०२४)

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श्रद्धालुओ, मंदिर में भगवान के दर्शन करते समय अंतर्मुख होकर दर्शन करें !

ग्रंथ का मुखपृष्ठ

‘वर्तमान समय में मंदिर परिसर में ऐसा दिखाई देता है कि दर्शन करने आनेवाले अधिकतर लोग सकाम उद्देश्य से मंदिर जाते हैं । वहां जाते समय उनकी वेशभूषा एवं केशभूषा भी असात्त्विक होती है । मंदिर जाने पर यदि दर्शन के लिए तांता लगा हो, तो लोग माया से संबंधित विषयों पर बातचीत करते हुए, मोबाइल पर ऊंची आवाज में बोलते हुए तथा उसपर आनेवाले संदेश देखते हुए दिखाई देते हैं । ऐसे आचरण के कारण मंदिर की पवित्रता भंग होती है, किसी को भी इसका भान नहीं होता । दर्शन करते समय मन में माया के विचार चलते रहते हैं । ‘क्या ऐसा करने से भगवान का चैतन्य ग्रहण हो पाएगा ?’, इसपर सभी को विचार करना आवश्यक है । मंदिर एवं देवता चैतन्य के स्रोत हैं; इसलिए अपनी वृत्ति अंतर्मुख रखकर भगवान का नामजप करते हुए दर्शन करना, दर्शन करने के उपरांत गप्पे मारना टालकर नामजप करते हुए भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहना इत्यादि कृतियां की गईं, तो भगवान का चैतन्य अधिक मात्रा में ग्रहण होकर वह बना रहता है । इससे मंदिर की पवित्रता भी बनी रहती है । इसे ध्यान में लेकर मंदिर में भगवान के दर्शन करते समय अंतर्मुख रहने का प्रयास करें ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे (२८.३.२०२४)

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