‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
‘भारत के प्रत्येक घर में भगवान के सामने दीप प्रज्वलित करने के उपरांत ‘शुभं करोति’सहित श्रीरामरक्षास्तोत्र एवं हनुमान चालीसा / मारुतिस्तोत्र का पाठ करने की प्रथा है । बुधकौशिक ऋषि ने श्रीरामरक्षास्तोत्र की रचना की है । आत्मज्ञान संपन्न ऋषि-मुनियों एवं साधुसंतों को परावाणी से साहित्य सूझता है । इस स्थिति में ईश्वर के साथ उनका संपूर्ण अद्वैत होने से तथा ईश्वर ही इन सभी के कर्तार् हैं, इस अनुभूति के कारण ‘शिवजी ने स्वप्नावस्था में उन्हें रामरक्षा बताई’, ऐसा बुधकौशिक ऋषिे द्वारा लिखा हुआ मिलता है ।
‘ईश्वरप्राप्ति के कर्मयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग, ज्ञानयोग आदि साधनामार्ग हैं । दैनिक व्यवहार में व्यस्त रहनेवालेसामान्य सांसारिक लोगों के लिए आचरण करने में सुलभ, शुचिर्भूतता, स्थलकाल आदि बंधनविरहित तथा भगवान के साथ निरंतर आंतरिक सान्निध्य बनाए रख पाए अर्थात साधना अखंड जारी रहे, ऐसा एकमात्र साधनामार्ग है नामयोग !’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – ‘नामजप का महत्त्व एवं लाभ’)
‘श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करना तथा श्रीराम का नामजप करना तथा करनेवाले पर उसका क्या परिणाम होता है ?’, इसका विज्ञान द्वारा अध्ययन करने हेतु ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा से परीक्षण किए गए । इन परीक्षणों के लिए ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण का उपयोग किया गया । परीक्षणों से प्राप्त परिणामों का विवेचन तथा उसका अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया गया है –
१. परीक्षण में प्राप्त परिणामों का विवेचन
इस प्रयोग में तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त १ व्यक्ति तथा आध्यात्मिक कष्टरहित १ व्यक्ति सम्मिलित हुए । पहले प्रयोग में श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने से पूर्व तथा पाठ करने के उपरांत, साथ ही दूसरे प्रयोग में श्रीराम का नामजप करने से पूर्व तथा नामजप करने के उपरांत ‘यू.ए.एस.’ उपकरण के द्वारा इन दोनों के परीक्षण किए गए । इन दोनों में से प्रत्येक को श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने मेंी १५ मिनट लगे । उन्होंने १५ मिनट श्रीराम का नामजप किया । इन परीक्षणों से प्राप्त परिणाम आगे दिए गए हैं –
उक्त सारणी से निम्न सूत्र ध्यान में आते हैं –
अ. श्रीरामरक्षास्तोत्र के पाठ के उपरांत तीव्र आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त व्यक्ति में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर उसमें सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई । उसके द्वारा श्रीराम का नामजप करने के उपरांत उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा बहुत अल्प होकर उसमें सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई । श्रीरामरक्षास्तोत्र की तुलना में श्रीराम के नामजप के कारण उसमें अधिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई ।
आ. आध्यात्मिक पीडाविरहित व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी । उसके द्वारा श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ, साथ ही श्रीराम का नामजप करने पर उसमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में वृद्धि हुई; परंतु यह वृद्धि श्रीरामरक्षास्तोत्र की तुलना में श्रीराम के नामजप के कारण अधिक मात्रा में हुई ।
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२. परीक्षण से प्राप्त परिणामों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
२ अ. श्रीरामरक्षास्तोत्र का महत्त्व : ‘अध्यात्मवाङ्मय में मंत्रयोग का बडा महत्त्व है । श्रीरामरक्षास्तोत्र एक मंत्र ही है । रामरक्षा के आरंभ में ‘अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य’, ऐसा कहा गया है । मंत्र का अर्थ है इष्ट साधक तथा अनिष्ट निवारक वर्णसमूह ! मंत्र का अर्थ है एक नाद (ध्वनि), एक अक्षर, एक शब्द अथवा शब्दों का समूह । जिस समय एक विशिष्ट लय में तथा सुर में कोई मंत्र जपा जाता है, उस समय उस जप से एक विशिष्ट शक्ति उत्पन्न होती है । इसलिए रामरक्षा को एक विशिष्ट लय में बोलना आवश्यक है ।
‘स्तोत्र’ शब्द की व्याख्या है ‘स्तूयते अनेन इति’ अर्थात जिस माध्यम से देवता का स्तवन किया जाता है, वह स्तोत्र’ । स्तोत्र में देवता की स्तुति के साथ स्तोत्र का पाठ करनेवाले के आसपास सुरक्षा-कवच बनाने की शक्ति भी होती है ।
स्तोत्रों में दी गई फलश्रुति के पीछे रचयिता का संकल्प होने से उसका पाठ करनेवाले को फलश्रुति के कारण फल मिलता है ।’
(संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ – ‘श्रीरामरक्षास्तोत्र एवं हनुमान चालीसा’)
२ आ. श्रीराम का नामजप : ‘कलियुग में नामजप ही सर्वोत्तम साधना है तथा नामजप का और कोई विकल्प नहीं है’, ऐसा अनेक संतों ने बताया है । जाप का अर्थ है – कोई अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य पुनः-पुनः बोलते रहना !
‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ में समाहित शब्दों का अर्थ निम्नानुसार है –
श्रीराम : यह श्रीराम का आवाहन है ।
जय राम : यह स्तुतिवाचक है ।
जय जय राम : यह ‘नमः’ की भांति शरणागति का दर्शक है ।’
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – ‘श्रीराम’)
श्रीरामरक्षास्तोत्र के पाठ के कारण स्तोत्रपाठ करनेवाले के आसपास विशिष्ट शक्ति का (चैतन्य का) सुरक्षा-कवच निर्मित होता है । श्रीराम का नामजप करने से नामजप करनेवाले को श्रीरामतत्त्व का लाभ मिलता है । परीक्षण में सम्मिलित दोनों को श्रीरामरक्षास्तोत्र के पाठ का, साथ ही श्रीराम का नामजप करने के उपरांत आध्यात्मिक स्तर के लाभ मिले । यहां विशेष ध्यान में लेने योग्य सूत्र यह है कि इन दोनों पर स्तोत्र के पाठ की अपेक्षा नामजप का परिणाम अधिक मात्रा में हुआ । इससे निरंतर नामजप करने का महत्त्व ध्यान में आता है ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१९.१.२०१४)
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