‘बिजली के दीप से युक्त प्लास्टिक का दीप’ तथा ‘मोम की ज्योति’ लगाने से वातावरण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना; परंतु इसके विपरीत ‘तिल का तेल तथा रुई की बाती डालकर प्रज्वलित किए गए मिट्टी के पारंपरिक दीप’ के प्रभाव से वातावरण में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘पीआईपी (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरंस फोटोग्राफी)’ प्रणाली की सहायता से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

‘अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलानेवाला त्योहार है ‘दीपावली’ ! दीपावली के समय घर-घर में दीप जलाने की परंपरा त्रेतायुग से आरंभ हुई । लंकापति रावण पर विजय प्राप्त कर प्रभु श्रीराम जब अयोध्या लौटे, उस समय प्रजा ने दीपोत्सव मनाकर उनका स्वागत किया । आज के इस रज-तम प्रधान काल में हाट में बिजली के दीपों से युक्त प्लास्टिक से बने ‘चीनी’ बनावटवाले दीपों की प्रचुरता दिखाई देती है, साथ ही मोम के दीप प्रज्वलित करने की मानसिकता भी दिखाई देती है; परंतु प्राचीन काल के लोग तिल के तेल में हाथ से बनाई गई रुई की बाती डालकर पारंपरिक दीप जलाते हैं । ‘बिजली के दीपों से युक्त प्लास्टिक से बना ‘चीनी’ दीप तथा तिल के तेल में रुई की बाती लगा पारंपरिक मिट्टी का दीप जलाने के उपरांत उनमें से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदनों का वातावरण पर क्या परिणाम होता है’, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने के लिए ५.१०.२०१७ को रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘पीआईपी (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरंस फोटोग्राफी)’ प्रणाली का उपयोग किया गया । इस प्रणाली की सहायता से वस्तु एवं व्यक्ति के ऊर्जाक्षेत्र का (‘औरा’ का) अध्ययन किया जाता है । इस परीक्षण में प्राप्त निरीक्षण तथा उनका विवरण आगे दिया गया है –

१. वैज्ञानिक परीक्षण में समाहित घटकों की जानकारी

१ अ. बिजली के दीप से युक्त प्लास्टिक का ‘चीनी’ दीप : यह प्लास्टिक का दीप है तथा उसमें बिजली से प्रज्वलित होनेवाला बिजली का दीप है । ये दीप दिखने में आकर्षक होते हैं तथा उनका उत्पादन मुख्यत: चीन में किया जाता है ।

१ आ. मोम का दीप : यह दीप के आकार में मोम से बनाई गई मोमबत्ती है ।

१ इ. पारंपरिक मिट्टी का दीप : यह हाट में मिलनेवाला मिट्टी का सामान्य दीप है । उसमें तिल का तेल तथा रुई की बाती डालकर उसे प्रज्वलित किया जाता है ।

श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे

२. परीक्षण में किए जानेवाले निरीक्षणों का विवेचन

इस परीक्षण में एक टेबल पर छोटा श्वेत रंग का लकडी का टुकडा रख (उसके आगे दीप रखने से पूर्व) वहां के वातावरण का ‘पीआईपी’ प्रौद्योगिकी द्वारा छायाचित्र खींचा गया । यह ‘मूलभूत प्रविष्टि’ है । उसके पश्चात बिजली के दीप से युक्त प्लास्टिक का ‘चीनी’ बनावटवाला दीप, मोम का दीप तथा तिल के तेल तथा रुई की बाती से युक्त पारंपरिक मिट्टी का दीप; इन तीनों दीपों को प्रज्वलित कर उन्हें एक-एक कर चौपाई पर (लकडी के टुकडे के सामने) रख उनके ‘पीआईपी’ छायाचित्र खींचे गए । इन छायाचित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करने के उपरांत ‘इन तीनों प्रकार के दीपों से प्रक्षेपित स्पंदनों का वातावरण पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका परीक्षण किया गया ।

निम्नांकित सारणी में ‘मूलभूत प्रविष्टियों’ के प्रभामंडल के (परीक्षण में समाहित घटकों को परीक्षण के लिए रखने से पूर्व के वातावरण के प्रभामंडल में स्थित) तथा परीक्षण में समाहित घटकों के प्रभामंडल में निहित स्पंदन दर्शानेवाले रंगों का स्तर दिया है । आगे दिए विवेचन में परीक्षण में समाहित घटकों के प्रभामंडलों की तुलना ‘मूल प्रविष्टियों’ के प्रभामंडल से की गई है ।

२ अ. बिजली के दीप से युक्त प्लास्टिक के ‘चीनी’ दीप के कारण वातावरण के सकारात्मक स्पंदनों का स्तर, साथ ही चैतन्य के स्पंदनों का स्तर घट जाना तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर बहुत बढ जाना : बिजली के चीनी दीप के प्रभामंडल के संदर्भ में निम्न सूत्र ध्यान में आए –

१. प्रभामंडल में ५४ प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन तथा ४६ प्रतिशत नकारात्मक स्पंदन थे, इसका अर्थ ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की (६१ प्रतिशत की) तुलना में बिजली के चीनी दीप के प्रभामंडल में कुल सकारात्मक स्पंदन ७ प्रतिशत घट गए ।

२. प्रभामंडल में चैतन्य का पीला रंग भी ८ प्रतिशत तक घट गया ।

३. प्रभामंडल में नकारात्मक स्पंदन दर्शानेवाला भगवा रंग १२ प्रतिशत बढा ।

संक्षेप में कहा जाए, तो ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की तुलना में बिजली के दीप सहिते प्लास्टिक के ‘चीनी’ दीप के कारण वातावरण के सकारात्मक स्पंदनों का स्तर, साथ ही चैतन्य के स्पंदनों का स्तर घट गया तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर बहुत बढ गया ।

२ आ. मोम के दीप के प्रभाव से वातावरण के सकारात्मक स्पंदनों का स्तर, साथ ही चैतन्य के स्पंदनों का स्तर घट जाना तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर बहुत बढ जाना : मोम के दीप के प्रभामंडल के संदर्भ में निम्नांकित सूत्र ध्यान में आए –

१. प्रभामंडल में ५६ प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन तथा ४४ प्रतिशत नकारात्मक स्पंदन थे, इसका अर्थ है ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की (६१ प्रतिशत की) तुलना में मोम के दीप के प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदन ५ प्रतिशत घट गए ।

२. प्रभामंडल में चैतन्य का पीला रंग भी ५ प्रतिशत घट गया ।

३. प्रभामंडल में नकारात्मक स्पंदन दर्शानेवाला भगवा रंग १० प्रतिशत बढ गया ।

संक्षेप में कहा जाए, तो ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की तुलना में मोम के दीप के कारण वातावरण में समाहित सकारात्मक स्पंदनों का स्तर, साथ ही चैतन्य के स्पंदनों का स्तर घट गया तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर बहुत बढ गया ।

२ इ. पारंपरिक मिट्टी के दीप के प्रभाव से वातावरण में चैतन्य के स्पंदनों का स्तर बहुत बढना तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर घट जाना : पारंपरिक मिट्टी के दीप के प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदनों के संदर्भ में निम्नांकित सूत्र ध्यान में आए –

१. प्रभामंडल में ७२ प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन तथा २८ प्रतिशत नकारात्मक स्पंदन थे, इसका अर्थ ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की तुलना में पारंपरिक मिट्टी के दीप में समाहित सकारात्मक स्पंदन ११ प्रतिशत  बढ गए ।

२. चैतन्य का पीला रंग ३४ प्रतिशत था,  इसका अर्थ ‘मूलभूत प्रविष्टि’ में समाहित चैतन्य दर्शानेवाले पीले रंग की (२१ प्रतिशत की) तुलना में वह बहुत बढा ।

३. प्रभामंडल में चैतन्य के पीले रंग की अपेक्षा उच्च स्तर के सकारात्मक स्पंदन (शुद्धता एवं पवित्रता) दर्शानेवाला नीला सा श्वेत रंग भी (६ प्रतिशत) थोडा बढ गया ।

संक्षेप में कहा जाए, तो ‘मूलभूत प्रविष्टि’ की तुलना में पारंपरिक मिट्टी के दीप के प्रभाव से वातावरण में समाहित सकारात्मक स्पंदनों का स्तर, साथ ही चैतन्य का स्तर बहुत बढा तथा नकारात्मक स्पंदनों का स्तर घट गया ।

३. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण

३ अ. बिजली के दीप से युक्त दीप तथा मोम के दीप में मनुष्य निर्मित तमोगुणी घटकों के कारण उनसे नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना, उसके विपरीत तिल के तेल तथा रुई की बाती से युक्त मिट्टी का दीप; इन प्राकृतिक सत्त्वगुणी घटकों के कारण उनसे सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना : बिजली की ऊर्जा, प्लास्टिक एवं मोम ये घटक मनुष्य निर्मित हैं, जबकि मिट्टी, तिल का तेल एवं रुई, ये घटक प्राकृतिक हैं । सामान्य रूप से देखा जाए, तो प्राकृतिक घटक सत्त्वगुण प्रधान होते हैं, जबकि अप्राकृतिक (कृत्रिम) घटक तमोगुण प्रधान होते हैं । जिस घटक में जो गुण प्रधानता से होता है, उस घटक से उस प्रकार के स्पंदन वातावरण में प्रक्षेपित होते हैं । सात्त्विक घटकों के कारण मिट्टी के दीप से अधिक मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । इसके विपरीत मनुष्य-निर्मित घटकों के कारण बिजली के दीप तथा मोम के दीप से अधिक मात्रा में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए ।

संक्षेप में कहा जाए, तो बिजली के दीप से युक्त दीप तथा मोम के दीप का उपयोग टालकर तिल के तेल तथा हाथ से बनाई गई रुई की बाती डालकर मिट्टी के दीप प्रज्वलित करना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभकारी है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२१.१०.२०१९)

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