१. हस्तरेखा शास्त्र के कुछ मूलभूत सिद्धांत
१ अ. व्यक्ति के हाथों की रेखाएं होती हैं व्यक्ति के मस्तिष्क का आलेख : ‘व्यक्ति के हाथों की रेखाएं उसके मस्तिष्क का आलेख होती हैं । व्यक्ति के मन में यदि ६ माह से निरंतर एक ही विचार आता हो, तो हथेली के एक विशिष्ट क्षेत्र में उसकी रेखा तैयार होती है । ये रेखाएं तात्कालिक अथवा हाथों की मुख्य रेखाओं का विस्तार होती हैं । जीव के जन्म के ३ से ४ माह उपरांत उसके प्रारब्ध-कर्माें के अनुसार उसके हाथ पर मुख्य रेखाएं विकसित होती हैं । जीव के वर्तमान कर्माें के अनुसार इन रेखाओं का विकास होता है तथा वे प्रबल होती जाती हैं ।
१ आ. व्यक्ति के बाएं हाथ से उसके पूर्वजन्म के संस्कार, गुण-दोष, कौशल, साधना यात्रा, आध्यात्मिक स्थिति आदि के विषय में ज्ञात होना : व्यक्ति का बायां हाथ उसके अंतर्मन का प्रतिबिंब होता है । व्यक्ति के बाएं हाथ की रेखाओं से उसके पूर्वजन्म, संचित कर्म, लेन-देन हिसाब, पूर्वजन्मों के संस्कार, स्मृति, मनोवृत्ति, गुण-दोष, क्षमता, कौशल, साधना यात्रा, मृत्यु इत्यादि बातें ध्यान में आती हैं, साथ ही व्यक्ति के बाएं हाथ से ‘पूर्वजन्म में उसे ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश, इन त्रिमूर्तियों में से किस देवता से मार्गदर्शन मिल रहा था पूर्वजन्म में त्रिमूर्तियों में से किस देवता के गुण उसमें थे , उसकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी थी , षट्चक्रों में से यह ध्यान में आ सकता है कि उसकी साधना यात्रा किस चक्र तक संपन्न हुई थी ?’
१ इ. व्यक्ति के दाहिने हाथ से वह व्यक्ति ‘वर्तमान जन्म में अपने मन, बुद्धि, कौशल एवं क्षमता का कैसे उपयोग करता है ?’, यह समझ में आना : व्यक्ति का दाहिना हाथ उसके बाह्यमन से संबंधित है । इस हाथ से ‘संबंधित व्यक्ति वर्तमान जन्म में अपने मन, बुद्धि, कौशल एवं क्षमता का कैसे उपयोग करता है , उसके विचारों की दिशा कैसी है ?, वह स्वयं की दुर्बलता पर कैसे विजय प्राप्त करता है , कया वह उसके पूर्वजन्म की अपेक्षा वर्तमान जन्म में अच्छा कार्य कर रहा है ?, कया उसकी प्रगति उचित दिशा में हो रही है ’ आदि के विषय में समझ में आ सकता है ।
१ ई. व्यक्ति के क्रियमाण-कर्म के अनुसार उसके हाथ की रेखाओं में परिवर्तन होना : व्यक्ति ने यदि उचित मार्ग से साधना की, तो उसका प्रारब्ध सहनीय हो सकता है । व्यक्ति को उचित साधनामार्ग एवं मार्गदर्शन मिला, साथ ही उसने लगन से साधना के प्रयास किए, तो उसे मोक्ष प्राप्त हो सकता है । प्रत्येक जीव स्वयं के क्रियमाण का उपयोग कर सकता है । जीव के प्रयास एवं विचारों के अनुसार उसके हाथ की रेखाओं में परिवर्तन होने लगते हैं । व्यक्ति के वर्तमान के अच्छे अथवा बुरे कर्माें के अनुसार उसके हाथ की रेखाएं प्रबल अथवा दुर्बल होती हैं ।
१ उ. ईश्वर की कृपा हुई, तो ६ माह से लेकर २ वर्ष की अवधि में व्यक्ति के हाथ की रेखाओं में अच्छे परिवर्तन आते हैं ।
२. हाथ की महत्त्वपूर्ण रेखाएं तथा उनकी विशेषताएं
२ अ. हृदय रेखा : इस रेखा से व्यक्ति का स्वभाव, मनोवृत्ति, संवेदनशीलता, भावनाशीलता, इच्छा, आकांक्षा, आसक्ति आदि का बोध होता है । ‘ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश, इन त्रिमूर्तियों में से उस व्यक्ति पर किस देवता की कृपा है ’, यह समझ में आता है । व्यक्ति का जीवन ‘धर्म’, ‘कर्म’ अथवा ‘मोक्ष’, इनमें से किसके लिए व्यतीत होनेवाला है ?’, यह समझ में आता है । व्यक्ति के जीवनसाथी का बाह्यरूप तथा उनके मध्य प्रेम संबंधों की जानकारी मिलती है । इस रेखा के आरंभ एवं अंत से ‘उस व्यक्ति का झुकाव बुद्धिमत्ता, न्याय, प्रसिद्धि, अर्थार्जन, इच्छा, संघर्ष अथवा महत्त्वाकांक्षा, इनमें से किस ओर है ?’, इसका बोध होता है । व्यक्ति के हृदय से संबंधित रोग अथवा क्या उसकी मृत्यु हृदय विकार से होगी ’, यह ज्ञात होता है ।
टिप्पणी : इस रेखा की गुणवत्ता अनेक घटकों पर निर्भर होती है । गुणवत्ता अधिक हो, तो लाभ होता है; परंतु यदि रेखा में त्रुटि हो, तो असंतोष, कष्ट तथा रोग बढते हैं ।
२ आ. मस्तक रेखा : मस्तक रेखा से व्यक्ति की सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार करने की क्षमता ध्यान में आती है ।
२ आ १. मस्तक रेखा का अच्छा होना : व्यक्ति के हाथ में मस्तक रेखा अच्छी (अर्थात अखंडित एवं स्पष्टतापूर्ण हो) हो, तो उससे व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, विचार प्रक्रिया, सृजनशीलता (creativity), कौशल, विद्या, ज्ञान, कृति में समाहित परिपूर्णता, अर्थाजन के स्रोत्र आदि का बोध होता है ।
२ आ २. मस्तक रेखा अच्छी न होना : व्यक्ति के हाथ पर मस्तक रेखा अच्छी न हो (अर्थात खंडित अथवा अस्पष्ट हो), तो व्यक्ति के जीवन में भावनात्मक उतार-चढाव, मानसिक आघात, मानसिक बीमारियां, कष्ट, चिंता, उद्वेग, क्रोध इत्यादि अंतर्भूत होते हैं ।
२ इ. जीवन रेखा (आयु की रेखा)
२ इ १. जीवन रेखा अच्छी होना : व्यक्ति के हाथ पर जीवनरेखा अच्छी हो, तो वह व्यक्ति का स्वास्थ्य, आयु, जीवन में होनेवाले सकारात्मक अथवा नकारात्मक बडे प्रसंग, प्राणों के लिए संकटकारी प्रसंग अथवा दुर्घटना, व्यावहारिक अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन को नया मोड देनेवाले प्रसंग इत्यादि दर्शाती है ।
२ इ २. जीवन रेखा अच्छी न होना : व्यक्ति के हाथ पर जीवन रेखा अच्छी न हो, तो वह दुर्घटना, गंभीर बीमारी, आत्महत्या के प्रयास, जीवन में होनेवाले नकारात्मक प्रसंगों का प्रभाव, पूर्वजों के कष्ट, दुर्घटना में मृत्यु, जीवन के उतार-चढाव इत्यादि दर्शाती है ।
२ ई. भाग्य रेखा (अध्यात्म रेखा) : यह रेखा व्यक्ति के पूर्वजन्म के सत्कर्म तथा उसके वर्तमान जन्म पर दैवी कृपा का हो रहा परिणाम दर्शाती है । इस रेखा से निम्न जानकारी मिलती है –
अ. क्या व्यक्ति का जन्म अच्छे परिवार में हुआ है क्या अपने अभिभावकों के लिए वह भाग्यशाली है ?
आ. क्या व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा है ? उसपर दैवी कृपा क्या उसके वर्तमान जन्म के अच्छे कर्माें के कारण है अथवा पिछले जन्म के सत्कर्माें के कारण है ?
इ. व्यक्ति के जीवन का क्या ध्येय है क्या वह उसे इस जीवन में साध्य कर पाएगा ? क्या उसे अध्यात्म में रुचि है ? क्या उसे गुरु का मार्गदर्शन मिलेगा ? इत्यादि
ई. भाग्य रेखा से व्यक्ति के षट्चक्रों की जागृति, ज्ञान की गहराई, विवेक शक्ति, मनुष्यजाति के कल्याण के लिए उसका योगदान आदि का बोध होता है ।
इन जन्म में आध्यात्मिक उन्नति साध्य करने के लिए किए प्रयास भाग्यरेखा को प्रभावित कर उसमें सुधार होने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं । इसका अर्थ उसके इस जन्म की साधना तथा सत्कर्माें के कारण भाग्य रेखा में परिवर्तन होकर पूर्वजन्म के बुरे कर्माें का परिमार्जन होता है ।
२ उ. सूर्य रेखा
अ. इस रेखा से व्यक्ति को मिलनेवाली प्रसिद्धि, सफलता, इच्छापूर्ति, नेतृत्वगुण, प्रशासनिक योजनाओं के लाभ, प्रशासनिक अधिकार, राजनीतिक जीवन, प्रशासनिक क्षेत्र के व्यवसाय तथा प्रशासनिक संस्थाओं से मिलनेवाले लाभों की जानकारी मिलती है ।
आ. सूर्य रेखा से व्यक्ति की असफलता तथा अहंकार का भी बोध होता है ।
२ ऊ. बुध रेखा (स्वास्थ्य रेखा)
१. यह रेखा मुख्यत: संवाद-कुशलता, आर्थिक लेन-देन, व्यवसाय, व्यवस्थापन, किसी बात को क्रियान्वित करना, कठोर परिश्रम करने की तैयारी तथा अंतर्ज्ञान की क्षमता से संबंधित है ।
२. यह रेखा जब अखंडित एवं सीधी होती है, तो ऐसा व्यक्ति स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होता है तथा वह स्वस्थ जीवन की इच्छा रखनेवाला होता है ।
२ ए. विवाह रेखा
१. इस रेखा से साहचर्य, तत्कालीन आकर्षण, प्रेम, मानसिक संबंध तथा विवाह की जानकारी मिलती है ।
२. इस रेखा से समझ में आ सकता है कि ‘व्यक्ति की कितनी संतानें होंगी ?’
२ ऐ. संस्कार रेखा
हाथ पर स्थित शुक्र के उभार (टीले) के समानांतर रेखाओं को ‘संस्कार रेखाएं’ कहते हैं । इनसे ‘व्यक्ति के संस्कार कितने दृढ हैं ?’, यह ध्यान में आता है, साथ ही इन रेखाओं से व्यक्ति के लेन-देन का हिसाब समझ में आता है ।
३. हाथ की उंगलियों की गाठों का अर्थ तथा उनका महत्त्व
गांठ का अर्थ है कांड अथवा भाग ! हाथ की प्रत्येक उंगली की ३ गांठें अर्थात ३ भाग होते हैं । हस्तरेखा शास्त्र की दृष्टि से उनका महत्त्व आगे दिया गया है ।
३ अ. उंगलियों की सबसे ऊपर की गांठें : ये व्यक्ति में व्याप्त व्यवस्थापन-कौशल, नेतृत्वगुण, महत्वाकांक्षा एवं आक्रामकता दर्शाती हैं ।
३ आ. उंगलियों के मध्य की गांठें : ये गांठें किसी विचार को क्रियान्वित करने की क्षमता दर्शाती हैं ।
३ इ. उंगलियों की निचली गांठें : ये व्यक्ति की कठोर परिश्रम करने की क्षमता दर्शाती हैं ।
४. ‘हाथ की मुख्य एवं छोटी रेखाएं बढना, अस्पष्ट होना अथवा नष्ट होने का अर्थ
४ अ. हाथ की रेखाओं में वृद्धि होना : यह व्यक्ति की गुणविशेषताओं का उचित दिशा में वृद्धि होने का दर्शक है ।
४ आ. कुछ रेखाएं अस्पष्ट अथवा नष्ट होना : ऐसा होना अशुभ घटनाएं दर्शाता है अथवा जीवन की उस अवधि का लेन-देन का हिसाब समाप्त होना दर्शाता है । इसे समझना इतना सहज नहीं होता तथा उसके लिए अन्य रेखाओं का भी अध्ययन करना पडता है ।
४ इ. हाथ पर छोटी रेखाएं उभरना अथवा उनका लुप्त होना : व्यक्ति के मन में जैसे किसी विषय के विचार उत्पन्न होते हैं, वैसे ही हाथ पर छोटी रेखाएं उत्पन्न होती हैं अथवा लुप्त हो जाती हैं । ऐसी रेखाएं सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकती हैं, साथ ही वो जीवन के उतार-चढावों पर परिणाम डालती हैं । छोटी रेखाएं लुप्त होने का अर्थ है कोई कार्य अथवा विचार पूर्ण होना अथवा वह उससे संबंधित प्रारब्ध समाप्त होने का संकेत देती हैं । ॐ
– हस्तरेखा विशेषज्ञ सुनीता शुक्ला, ऋषिकेश, उत्तराखंड. (१७.४.२०२४)