कोलेस्ट्रॉल (रक्त का एक घटक) न्यून करने की औषधियों से होनेवाले गंभीर त्वचारोग !

इन रसायनिक औषधियों के कारण न जाने कितने लोग अनेक रोगों से ग्रस्त होते हैं, स्थितियां बिगड़ती रहती हैं, नई नई औषधियां बढ़ती जाती हैं; पर किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता कि कहीं यह समस्या किसी औषधि के कारण तो नहीं है ।

महाविद्यालयों में देशभक्त निर्माण करने के लिए कार्यरत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद !

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अवाविप) ७५ वें वर्ष में पदार्पण किया है । इस उपलक्ष्य में हमारे प्रतिनिधि ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. याज्ञवल्क्य शुक्ला से संवाद किया, यहां उसका वृत्तांत दे रहे हैं —

देश के सुशासन के लिए समान नागरिक संहिता आवश्यक !

जहां धर्म अथवा श्रद्धा कुछ भी हो, तब भी सबके लिए एक समान कानून लागू होगा । उसमें लिखा है, ‘संपूर्ण भारत में राज्य नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता निश्चित करने का प्रयत्न करेगा ।

पैकेट बंद अन्न, अन्न है ही नहीं …!

जिसका विज्ञापन करना पडे, वह अन्न है ही नहीं । क्या रोटी, चावल, दाल, देसी घी, भाजी-तरकारी आदि का विज्ञापन करना पडता है ? प्रकृति से प्राप्त व सहस्रों वर्षाें से मनुष्य जो ग्रहण करते हैं, वही है खरा अन्न

नवग्रहों की उपासना करने का उद्देश्य एवं उनका महत्त्व !

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह-दोष निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना बताई जाती है । इस लेख द्वारा उपासना का उद्देश्य व उसका महत्त्व समझ लेंगे ।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अनुल्लेखित स्थानबद्धता (नजरबंद) की संकल्पना !

इस प्रकार भारतमाता के अस्तित्व पर संकट बने धर्मांधों, नक्सलियों एवं देशद्रोहियों का फालतू लाड-प्यार बंद करने के लिए प्रभावी हिन्दू-संगठन खडा कर केंद्र सरकार का साथ देना हमारा धर्मकर्तव्य है ।’

प्राचीन भारत की आदर्श शिक्षाप्रणाली !

भारत की प्राचीन शिक्षाप्रणाली की विशेषता यह थी कि बालक का ६ – ७ वर्ष की अवस्था में उपनयन संस्कार कर दिया जाता था । यज्ञोपवीत हो जाने पर बालक २५ वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण करता था ।

प्राचीन भारत में गुरुकुलों द्वारा चलाई जानेवाली शिक्षा व्यवस्था किस प्रकार होती थी ?

विद्यार्थी गुरुकुलों में १२ से १६ वर्ष रहते थे, इस कारण उनमें परिवार जैसा ही संबंध बन जाता था । शिक्षक स्वयं त्यागी, सदाचारी, विद्वान और निरहंकारी होते थे । शिष्य आचार्य को पितासमान मानते थे । शिष्य का कर्तव्य होता था कि वह गुरु के प्रति द्रोह न करे ।

नारियों के लिए पाठशालाएं तथा सहशिक्षा की व्यवस्था

वेदों में उल्लेखित कुछ मंत्र इस बात को रेखांकित करते हैं कि कुमारियों के लिए शिक्षा अपरिहार्य एवं महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी । स्त्रियों को लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार की शिक्षाएं दी जाती थीं । गोभिल गृहसूत्र में कहा गया है कि अशिक्षित पत्नी यज्ञ करने में समर्थ नहीं होती थी ।

व्रतविधियों के चार मास

चातुर्मास को उपासना एवं साधना हेतु पुण्यकारक एवं फलदायी काल माना जाता है । आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक अथवा आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चार महीने के काल को चातुर्मास कहते हैं ।