सनातन के आश्रमों में ‘संगणकों की देखभाल तथा मरम्मत’, इन सेवाओं के लिए साधकों, हितचिंतकों तथा धर्मप्रेमियों के सहयोग की आवश्यकता !

‘सनातन संस्था के राष्ट्र-धर्म के कार्य के अंतर्गत विभिन्न सेवाओं के लिए आधुनिक संगणक प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है । यह सेवा करने की क्षमता रखनेवाले साधकों की तुरंत आवश्यकता है । सनातन के पाठकों, हितचिंतकों तथा धर्मप्रेमियों को भी इस सेवा में अपना योगदान देने का स्वर्णिम अवसर है ।

हो रहे किसी कष्ट के लिए प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति से एक बार उपचार ढूंढने के उपरांत प्रतिदिन उपचार न ढूंढकर १५ दिन उपरांत ही पुनः उपचार खोजें और तब तक वही उपचार करते रहें !

वर्तमान में साधक स्वयं को हो रहा कष्ट दूर करने हेतु प्रतिदिन प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति के अनुसार उपचार खोजते हैं तथा उसके अनुसार नामजप करते हैं ।

प्रयाग में होनेवाले कुंभ को १९ वीं शताब्दी में कुंभ पर्व का स्वरूप प्राप्त हुआ ! – इंद्रनील पोळ

भारत में होनेवाले कुंभ पर्व बृहस्पति की राशि तथा नक्षत्र प्रवेश पर आधारित हैं । कुंभ राशि में प्रवेश करते समय हरिद्वार को, मेष राशि में प्रवेश करते समय प्रयाग तथा सिंह राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन एवं नासिक (लगभग १ वर्ष के अंतर से); इसलिए उज्जैन एवं नासिक के कुंभ पर्व होते हैं सिंहस्थ कुंभ ! प्रयाग को होनेवाले कुंभ को वास्तव में पहले माघी मेला कहा जाता था तथा वह प्रतिवर्ष होता था । १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कभी उसे कुंभ पर्व का रूप मिला ।

पेशवाई : नागा साधुओं के क्षात्रतेज की अलौकिक परंपरा !

प्रयागराज के कुंभ पर्व के उपलक्ष्य में वर्तमान में विभिन्न अखाडों की ओर से निकाली जानेवाली ‘पेशवाई’ के उपलक्ष्य में …

साधु-संतों और मनीषियों का संसार

साधु-संतों का अपना निराला विश्व है । बाहर से सामान्य दिखनेवाले इन साधुओं के भी कई नाम एवं प्रकार होते हैं । कुछ साधु अपने हठयोग के लिए जाने जाते हैं, कुछ अपने संप्रदाय के नाम से । साधु-संत अपनी काया को कष्ट देकर ईश्वर की साधना में दिन-रात लगे रहते हैं ।

मानव जीवन में वास्तुशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र का महत्त्व !

वास्तु एवं ग्रह व्यक्ति के प्रारब्ध के साथ जुडे होते हैं । व्यक्ति को उसके प्रारब्ध के अनुसार वास्तु (घर) मिलता है, साथ ही व्यक्ति की जन्मकुंडली में समाहित ग्रहयोग उसके प्रारब्ध के अनुसार होते हैं ।

कर्नाटक के श्री. सांतप्पा गौडा, श्रीमती कमलम्मा एवं श्रीमती शशिकला किणी संतपद पर विराजमान !

इस अवसर पर पू. रमानंद गौडा ने मार्गदर्शन करते हुए कहा, ‘‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने कर्नाटक के सभी साधकों को केवल आनंद ही नहीं, अपितु चैतन्य प्रदान करनेवाला शुभ समाचार दिया है ।