प्रयाग में होनेवाले कुंभ को १९ वीं शताब्दी में कुंभ पर्व का स्वरूप प्राप्त हुआ ! – इंद्रनील पोळ

पृथ्वी की चारों ओर से त्रिमितीय अंतरिक्ष में फैले क्षेत्र की यदि एक स्फियर (Sphere) के रूप में कल्पना की, तो उस अंतरिक्षीय क्षेत्र को खगोलीय भाषा में सैलेस्टियल स्फियर कहते हैं । पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा करते समय सूर्य जिस सैलेस्टियल स्फियर में जिस लंबवृत्ताकार मार्ग से जाते हुए दिखाई देता है, उसके ८ अंश उत्तर के अथवा दक्षिण के कुल मिलाकर जो क्षेत्र बनता है तथा उसमें समाहित नक्षत्र होता है हमारा राशिचक्र ! इस राशिचक्र को ३० अंश के कोण का १२ समान भागों में विभाजित करने से आती हैं हमारी राशियां मेष, वृषभ, कर्क, सिंह इत्यादि ! प्रत्येक राशि में विभाजित विभिन्न नक्षत्र कुल २७ नक्षत्र होते हैं, जो हैं अश्विनी, रोहिणी, कृत्तिका, आर्द्रा, पुनर्वसू इत्यादि ।

जैसे पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में १ वर्ष लगता है, उसी प्रकार से बृहस्पति ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने के लिए लगते हैं १२ वर्ष ! अर्थात ही सैलेस्टियल स्फियर में स्थित १२ राशियों में से प्रत्येक राशि में बृहस्पति सामान्यतः १२ वर्ष में एक बार प्रवेश करते हैं । भारत में होनेवाले कुंभ पर्व बृहस्पति की राशि तथा नक्षत्र प्रवेश पर आधारित हैं । कुंभ राशि में प्रवेश करते समय हरिद्वार को, मेष राशि में प्रवेश करते समय प्रयाग तथा सिंह राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन एवं नासिक (लगभग १ वर्ष के अंतर से); इसलिए उज्जैन एवं नासिक के कुंभ पर्व होते हैं सिंहस्थ कुंभ ! प्रयाग को होनेवाले कुंभ को वास्तव में पहले माघी मेला कहा जाता था तथा वह प्रतिवर्ष होता था । १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कभी उसे कुंभ पर्व का रूप मिला ।

नासिक के सिंहस्थ का नामकरण भी ऐसे ही कभी सिंहस्थ कुंभ होने की संभावना है । राणोजी शिंदे ने नासिक के अखाडों को उज्जैन में आमंत्रित कर १८ वीं शताब्दी में आरंभ किया । जैसे नासिक का सिंहस्थ कुंभ बना, वैसे ही उज्जैन का भी । आदि शंकराचार्यजी द्वारा ८ वीं शताब्दी में आरंभ किया गया आद्य कुंभ भी उस आशय से हरिद्वार का ही है । इन चारों कुंभ पर्वाें में करोडों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं । प्रतिकुंभ यह संख्या बढती ही जा रही है । वर्ष २०१३ में संपन्न कुंभ पर्व में लगभग १२ करोड श्रद्धालु आए थे । उनमें गरीब, शिक्षित, अशिक्षित, मध्यमवर्गीय, साधु, संत, संन्यासी, बैरागी, उदासी, गोसावी जैसे समाज के सभी स्तरों के धार्मिक लोग आते हैं । जैसे इसमें असंगठित धार्मिक श्रद्धालु होते हैं, वैसे ही संत-संन्यासियों के संगठित अखाडे भी होते हैं ।

भारत में साधु-संतों के १३ प्रमुख अखाडे हैं । उनमें शैव पंथ के महानिर्वाणी, अटल, निरंजनी, आनंद, जूना, आवाहन, अग्नि तथा निर्वाणी, दिगंबर एवं निर्मोही, ये अखाडे वैष्णव पंथ के हैं । वैष्णव एवं बडा पंचायती उदासीन, छोटा पंचायती उदासीन तथा निर्मल, ये सिख होते हैं । संगठित एवं लॉजिस्टिक परिप्रेक्ष्य में कुंभ पर्व के प्रति अधिक झुकाव इन अखाडों का होता है । इनके अतिरिक्त कुछ करोड लोग इस उपलक्ष्य में प्रयाग, हरिद्वार, नासिक अथवा उज्जैन जाते हैं । उन्हें शाही स्नान तथा अपने पाप धोने में रुचि होती है; परंतु इन अखाडों को इस पर्व से नई भरती करना संभव होता है, शक्ति प्रदर्शन करना संभव होता है तथा मार्केटिंग करना भी संभव होता है । एक परिप्रेक्ष्य में कुंभ पर्व इन अखाडों के लिए धार्मिक ट्रेड फेयर की भांति होते हैं । अंग्रेजों के भारत आने से पूर्व तो इन कुंभ पर्वाें का प्रबंधन तथा उनसे होनेवाली करवसूली ये अखाडे ही करते थे । इस दृष्टि से यह उनकी आय का साधन ही था ।

– श्री. इंद्रनील पोळ,जबलपुर, मध्य प्रदेश. (साभार : फेसबुक)