आगामी महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की विशेषता !

‘विश्व के सभी महाविद्यालयों में तथा विश्वविद्यालयों में माया संबंधी विषयों की शिक्षा दी जाती है । इसके विपरीत महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में १४ विद्याओं और ६४ कलाओं के माध्यम से ‘माया से मुक्ति कैसे प्राप्त करें’, इसकी शिक्षा दी जाएगी ।’

आपातकाल में बचने के लिए साधना करें !

मेरे भक्त का नाश नहीं होता । भक्त को, साधना करनेवाले को भगवान ही बचाते हैं, यह ध्यान में रख अभी से तीव्र साधन करें, तभी भगवान आपातकाल में बचाएंगे ।’

कहां राष्ट्र-प्रमुख और कहां ऋषि-मुनि !

‘स्वतंत्रता से लेकर अभी तक के कितने राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के नाम लोगों को ज्ञात हैं ? इसके विपरीत ऋषि-मुनियों के नाम सहस्त्रों वर्षों से ज्ञात हैं ।’

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ के विषय में उचित दृष्टिकोण !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में मैं सहायता करूंगा’, ऐसा दृष्टिकोण न रखें ; अपितु यह मेरा ही कार्य है , ऐसा दृष्टिकोण रखें ! ऐसा दृष्टिकोण रखने पर कार्य अच्छे से होता है और स्वयं की भी (आध्यात्मिक) प्रगति होती है ।’

अद्वितीय ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक !

सनातन प्रभात के ३० प्रतिशत लेख साधना से संबंधित होते हैं । इससे पाठकों का अध्यात्म से परिचय होता है तथा कुछ लोग साधना करना आरंभ कर जीवन सार्थक करते हैं ।

युवा पीढियों पर तामसिक संस्कार होने का कारण !

‘सात्त्विक चित्रकार देवता के सात्त्विक चित्र बनाते हैं इसके विपरीत एम. एफ. हुसेन जैसे तामसिक चित्रकार देवता के नग्न, तामसिक चित्र बनाते हैं । इसमें आश्चर्य इतना ही है कि मृतवत हिन्दुओं ने इसके विषय में अनेक वर्षों तक कुछ नहीं किया । इस कारण आगामी पीढियों पर उस प्रकार के संस्कार हुए !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘समाज में कार्यालय में और अन्यत्र अहंकार, झूठ बोलना, भ्रष्टाचार इत्यादि का अनुकरण किया जाता है; जबकि सनातन के आश्रमों में अच्छे गुणों का अनुकरण किया जाता है !’

विज्ञान एवं अध्यात्म के अनुसार सगुण-निर्गुण !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से मुझे अंतर से विज्ञान एवं अध्यात्म, साथ ही उनके संदर्भ में सगुण एवं निर्गुण के विषय में कुछ सूत्र सूझे । वे इन दोनों संकल्पनाओं को सुस्पष्ट करते हैं, इसकी मुझे अनुभूति हुई ।

शब्द रहित एवं शब्द सहित संवाद से ‘श्री गुरु का मनोगत’ जान लेनेवालीं तथा ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को अपेक्षित कृति करनेवालीं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी !

‘सप्तर्षियों ने जीवनाडीपट्टिका में बताया, ‘जब श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी परात्पर गुरु डॉक्टरजी से साधकों की साधना के विषय में बात करती हैं, उस समय गुरुदेवजी कभी-कभी हाथ हिलाकर अथवा मुख पर निहित भाव से उन्हें उत्तर देते हैं ।’

‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी ईश्वर स्वरूप तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी परमेश्वर स्वरूप हैं’, इसकी साधिका को हुई प्रतीति !

मुझे सदैव ही अपना नाम ‘परमेश्वर की आरती’, ऐसा लिखने की आदत है । मुझे मन से भी ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी परमेश्वर हैं तथा मैं उस परमेश्वर की हूं’, ऐसा ही लगता रहता है