भगवान श्रीकृष्ण की अष्टनायिकाएं

भगवान श्रीकृष्‍ण की अष्‍टनायिकाएं तथा उनके बच्चे तो एक फलाफूला गोकुल था । भगवान श्रीकृष्‍ण तथा उनकी अष्टनायिकाओं को कुल ८० पुत्र तथा ६ पुत्रिया थीं ।

परिपूर्ण सेवा लगन से करनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. श्रीराम लुकतुके ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

समिति के साधकों के लिए आयोजित कार्यक्रम में श्री. लुकतुके ने समिति के कार्य से संबंधित अनुभव विशद किए । तदनंतर सद्गुरु पिंगळेजी ने यह आनंद-समाचार सभी को सुनाया ।

लगन से सेवा करनेवाली मथुरा सेवाकेंद्र की सनातन की साधिका कु. मनीषा माहुर (आयु २९ वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

‘समष्टि में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जैसी बनने का लक्ष्य रखकर प्रयास करनेवाली कु. मनीषा माहुर !

कोटि-कोटि प्रणाम !

५ अगस्त को हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु चारुदत्त पिंगळेजी का ५७ वां जन्मदिन

त्यागी वृत्ति से युक्त केरल की स्व. (श्रीमती) सौदामिनी कैमल (आयु ८२ वर्ष) संतपद पर विराजमान !

पिछले १ वर्ष से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था । वे अंत तक अखंड नामजप करती थीं । पू. कैमल दादी को केरल के साधक प्रेम से ‘अम्मा’ कहकर बुलाते थे ।

गुरुपूर्णिमा निमित्त सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणिया श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का शुभ संदेश !

गुरु को व्यापक धर्मकार्य प्रिय है । वह लगन से करना सच्ची ‘गुरुभक्ति’ है । यह कार्य करते समय कोई भी संदेह न रखना सच्ची गुरुनिष्ठा है एवं ‘यह धर्मकार्य परिपूर्ण करने से मेरी आत्मोन्नति निश्चित ही होगी’, यही ‘गुरु के प्रति’ श्रद्धा है ! इसीलिए गुरुपूर्णिमा से श्री गुरु के प्रति निष्ठा, श्रद्धा एवं भक्ति बढाएं ।

दिव्य कार्य करें दिव्य विभूति । आइए देखें वे क्षणमोती !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने प्रत्येक कार्य पहले स्वयं किया तथा उनकी बारीकियों का अध्ययन किया है । कार्य सूत्रबद्ध होने के लिए कार्यपद्धतियां बनाईं तथा तत्पश्चात ही वह साधकों को सिखाया । इसलिए अनेक साधक विविध क्षेत्रों में कार्य करने हेतु तैयार हो गए हैं । दिव्य कार्य दिव्य विभूतियों के हाथों से ही होता है । इस दिव्य कार्य के छायाचित्र स्वरूप में कुछ क्षणमोती यहां दिए हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा अध्यात्म-क्षेत्र में किया गया कार्य !

अध्यात्मप्रसार के कार्य की व्यापकता बढने के उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २३.३.१९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । सनातन संस्था का उद्देश्य है वैज्ञानिक परिभाषा में हिन्दू धर्म के अध्यात्मशास्त्र का प्रसार कर धर्मशिक्षा देना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग की निर्मिति

कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि जिस किसी भी मार्ग से साधना करें, तब भी ईश्वरप्राप्ति हेतु गुरुकृपा के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है । शीघ्र गुरुप्राप्ति हेतु तथा गुरुकृपा निरंतर होने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘गुरुकृपायोग’ नामक सरल साधनामार्ग बताया है ।