साधना के प्राथमिक चरण में अध्यात्म की सैद्धांतिक जानकारी देनेवाले तथा उसके अगले चरण में प्रत्यक्ष साधना सिखानेवाले सनातन के ग्रंथ !

साधना किए हुए व्यक्ति के द्वारा लिखे ग्रंथ पढना उचित रहेगा । बिना साधना किए केवल पांडित्य के आधार पर लिखे गए ग्रंथों के कारण ग्रंथ के लेखक तथा पाठक इन दोनों के ही जीवन व्यर्थ हो जाते हैं ।

सनातन का लघुग्रंथ : आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

साधक कष्टों में भी नामजप, भावजागृति के प्रयास अथवा सेवारत रहने का प्रयास करें । इसके कारण दुख भी प्रतीत नहीं होगा तथा साधना भी होगी ।

कुशलता से अनेक सेवाएं करनेवाले मथुरा के हिन्दू जनजागृति समिति के ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. श्रीराम लुकतुके !

‘श्री. श्रीराम लुकतुके अनेक गुणों से संपन्न एक व्यक्तित्व है । उनके साथ सेवा करते समय प्रतीत हुई उनकी गुणविशेषताएं यहां दे रहा हूं ।

तर्पण एवं पितृतर्पण का उद्देश्य और महत्त्व !

किसी भी श्राद्धविधि में ‘तर्पण’ दिया जाता है । ‘तर्पण’ का अर्थ, उसका महत्त्व एवं प्रकार, उसका उद्देश्य, साथ ही उसे करने की पद्धति के विषय में जानकारी इस लेख में दिया है ।

श्राद्ध में भोजन कैसे परोसें ?

पितृपात्र के लिए (पितरों के पत्तल के लिए) उलटी दिशा में (घडी की सुइयों की विपरीत दिशा में) भस्म की रेखा (पिशंगी) बनाएं । श्राद्धीय ब्राह्मणों की थाली में लवण (नमक) न परोसें ।

श्राद्ध कौन करें एवं कौन न करें ?

मृत व्यक्ति के श्राद्ध कुटुंब में कौन कर सकता है एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण इस लेख में देखेंगे । इससे यह स्पष्ट होगा कि हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो प्रत्येक व्यक्ति का उसकी मृत्यु के उपरांत भी ध्यान रखता है ।

नांदीश्राद्ध (वृद्धिश्राद्ध) क्या है ? यह क्यों करते हैं ?

प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में विघ्ननिवारणार्थ श्री गणपति पूजन करते हैं । उसी प्रकार पितर एवं पितर देवताओं का (नांदीमुख इत्यादि देवताओं का) नांदीश्राद्ध करते हैं ।

साधको, सकारात्मकता के महत्त्व को समझो तथा उसके लिए प्रयास कर सभी प्रकार की समस्याओं पर विजय प्राप्त करने हेतु सक्षम बनो !

सकारात्मक व्यक्ति का मन आनंदित एवं उत्साहित होने के कारण उसका शरीर उसे उतनी ही सकारात्मकता से उसका साथ देता है । किसी भी प्रकार के संकटों अथवा शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से वह व्यक्ति बडी सहजता से बाहर निकल जाता है