कोटि-कोटि प्रणाम !
१८ सितंबर : सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजीे का ५८ वां जन्मदिन
१८ सितंबर : सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजीे का ५८ वां जन्मदिन
साधना किए हुए व्यक्ति के द्वारा लिखे ग्रंथ पढना उचित रहेगा । बिना साधना किए केवल पांडित्य के आधार पर लिखे गए ग्रंथों के कारण ग्रंथ के लेखक तथा पाठक इन दोनों के ही जीवन व्यर्थ हो जाते हैं ।
साधक कष्टों में भी नामजप, भावजागृति के प्रयास अथवा सेवारत रहने का प्रयास करें । इसके कारण दुख भी प्रतीत नहीं होगा तथा साधना भी होगी ।
‘श्री. श्रीराम लुकतुके अनेक गुणों से संपन्न एक व्यक्तित्व है । उनके साथ सेवा करते समय प्रतीत हुई उनकी गुणविशेषताएं यहां दे रहा हूं ।
किसी भी श्राद्धविधि में ‘तर्पण’ दिया जाता है । ‘तर्पण’ का अर्थ, उसका महत्त्व एवं प्रकार, उसका उद्देश्य, साथ ही उसे करने की पद्धति के विषय में जानकारी इस लेख में दिया है ।
पितृपात्र के लिए (पितरों के पत्तल के लिए) उलटी दिशा में (घडी की सुइयों की विपरीत दिशा में) भस्म की रेखा (पिशंगी) बनाएं । श्राद्धीय ब्राह्मणों की थाली में लवण (नमक) न परोसें ।
मृत व्यक्ति के श्राद्ध कुटुंब में कौन कर सकता है एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण इस लेख में देखेंगे । इससे यह स्पष्ट होगा कि हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो प्रत्येक व्यक्ति का उसकी मृत्यु के उपरांत भी ध्यान रखता है ।
प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में विघ्ननिवारणार्थ श्री गणपति पूजन करते हैं । उसी प्रकार पितर एवं पितर देवताओं का (नांदीमुख इत्यादि देवताओं का) नांदीश्राद्ध करते हैं ।
सकारात्मक व्यक्ति का मन आनंदित एवं उत्साहित होने के कारण उसका शरीर उसे उतनी ही सकारात्मकता से उसका साथ देता है । किसी भी प्रकार के संकटों अथवा शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से वह व्यक्ति बडी सहजता से बाहर निकल जाता है