उत्तर भारत में प्रतिकूल परिस्थिति होते हुए भी अत्यंत लगन से धर्मप्रसार का कार्य करनेवाले, हिन्दुत्वनिष्ठों को प्रेमभाव से अपनानेवाले, विनम्र वृत्ति के हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळ के सदगुरुपद पर विराजमान होने की आनंदवार्ता २९.६.२०२२ एक भावसमारोह में घोषित की गई । इस समारोह का विस्तृत वृत्तांत यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।
इस प्रकार हुई आनंददायी घोषणा !
रामनाथी में संपन्न हुए एक भावसमारोह में पू. नीलेश सिंगबाळ ने वाराणसी आश्रम में हुए पृथक बुद्धिअगम्य परिवर्तन, साधकों को आनेवाली भिन्न-भिन्न प्रकार की अनुभूतियां आदि सूत्र अत्यंत भावपूर्ण पद्धति से बताईं । उनका भावपूर्ण वक्तव्य सुनकर हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने ‘साधकों को वाराणसी आश्रम के भावविश्व में ले जानेवाले’, इस प्रकार उनका विश्लेषण किया । राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने बताया, ‘‘वाराणसी आश्रम परिसर का यह प्राकृतिक परिवर्तन सुनने के पश्चात यह प्रतीत होता है कि वहां रामायण-महाभारत के समय का वातावरण निर्माण हुआ है । वास्तु में सगुण परिवर्तन होने के लिए वहां के अधिष्ठान का महत्त्व अधिक रहता है । पू. नीलेश सिंगबाळ वाराणसी आश्रम में रहते हैं । उनमें स्थित चैतन्य का प्रक्षेपण वास्तु में होकर आश्रम का परिसर, वहां का निसर्ग, आश्रम की वास्तु तथा साधकों में परिवर्तन हुआ है । वास्तु तथा साधकों में प्रतीत होनेवाले परिवर्तन द्वारा यह स्पष्ट हुआ है कि पू. नीलेश सिंगबाळ सद्गुरुपद पर विराजमान हुए हैं ।’’
यह आनंदवार्ता सुनकर सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ के हाथ अपनेआप जुड गए । उनके साथ सेवा करनेवाले साधकों के भी भावाश्रु अनावर हुए ।
सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ सद्गुरुपद पर विराजमान होने के पश्चात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ ने उनका सम्मान किया । तत्पश्चात उन्होंने सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ के चरणों पर सिर रखकर नमस्कार किया । तदनंतर नीलेश सिंगबाळ ने भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी अपनी धर्मपत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ के चरणों पर सिर रखकर नमस्कार किया । उस समय साधकों को उनमें स्थित उच्च भाव का दर्शन हुआ ! |
धर्मकार्य की तीव्र लगन रखनेवाले तथा सहजावस्था में रहनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळ (आयु ५५ वर्ष) सद्गुरु पद पर विराजमान !‘मूलतः गोवा स्थित पू. नीलेश सिंगबाळ ने वर्ष १९९६ में साधना आरंभ की । आज्ञापालन, स्वयं में परिवर्तन लाने की लगन तथा त्याग, इन गुणों के कारण उन्होंने वर्ष १९९९ से पूर्णकालीन साधना आरंभ की । वर्ष २००४ में सेवा हेतु वे उत्तर भारत के वाराणसी गए । वाराणसी की प्रतिकूल परिस्थिति में रहना कठिन होते हुए भी ईश्वर पर दृढ श्रद्धा के बल पर उन्होंने ‘यह कर्मभूमि अपनी प्रगति के लिए पोषक है’, ऐसा दृष्टिकोण रखते हुए सकारात्मक रहकर सेवा की । वाराणसी आश्रम में रहकर पूरी तरह से साधना के लिए वहां के आश्रम जीवन का लाभ उठाया । आरंभ में आश्रम में साधकसंख्या अल्प थी; इसलिए उस समय उन्होंने ‘दिखाई दिया वह कर्तव्य’ यह दृष्टिकोण रखकर वहां सभी प्रकार की सेवा आनंदपूर्वक तथा कृतज्ञता भाव में रहकर की । इससे उनकी ध्येयनिष्ठता तथा सेवाभावी वृत्ति स्पष्ट होती है । इन सभी के द्वारा उनके मन तथा बुद्धि का अर्पण होकर उनकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से होने लगी । वर्ष २०१२ में उन्होंने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । साधकों को साधना में सहायता करने के साथ-साथ उनमें धर्मकार्य की तीव्र लगन रहने के कारण उन्होंने हिन्दुओं को संगठित करने हेतु लगन से प्रयत्न किए । उनके मार्गदर्शन के कारण पूर्वाेत्तर भारत की हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य में अधिक वृद्धि होने लगी । तत्त्वनिष्ठता, सेवा में परिपूर्णता, प्रीति, अहंशून्यता आदि गुणों के कारण वर्ष २०१७ में वे संतपद पर विराजमान हुए । हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए हिन्दू संगठनों का संगठन करना तथा साधकों का मार्गदर्शन करना, उनका यह कार्य व्यापक मात्रा पर तथा अविरत रूप से आरंभ है । वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा को उनका आध्यात्मिक स्तर ७८ प्रतिशत था तथा आज के शुभ दिन ८१ प्रतिशत स्तर प्राप्त कर वे ‘समष्टि सद्गुरु’ के पद पर विराजमान हुए हैं । त्याग एवं समर्पण के आदर्श सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ का पूरा परिवार ही आदर्श है । उनकी माता श्रीमती सुधा सिंगबाळ संतपद पर विराजमान हैं । उनकी धर्मपत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ सभी साधकों की साधना के महान आधारस्तंभ हैं । पूरे भारत के सभी साधकों को वे साधना के विषय में मार्गदर्शन एवं सहायता करती हैं । उनका बेटा सोहम (आयु २४ वर्ष) सनातन के रामनाथी आश्रम में रहकर साधना कर रहा है । ६१ प्रतिशत से ८१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना’, यह प्रवास केवल १० वर्ष में करनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ के आगे की आध्यात्मिक उन्नति भी तीव्र गति से होगी’, इसका मुझे विश्वास है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी (२९.६.२०२२) |
सम्मान समारोह में परिवावालों ने बताई सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ की गुणविशेषताएं !
उच्च समष्टि भाव के कारण अल्प कालावधि में हुई सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ की उन्नति ! – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ की धर्मपत्नी)
अ. ‘सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ ने मुझे आरंभ से ही साधना में अधिकतम सहायता की है । गृहस्थ जीवन में भी उन्होंने मुझसे कोई अपेक्षा नहीं रखी । पहले गोवा राज्य में मैं प्रसारसेवा कर रही थी । उस समय भी उन्होंने मुझे सेवा में सहायता की । केवल उनके कारण ही मुझे साधना करना संभव हुआ ।
आ. प्रत्येक प्रसंग में वे स्थिर रहते हैं । घर में कभी कठिन प्रसंग निर्माण हुआ, तो उस परिस्थिति में भी वे अत्यंत स्थिर रहते हैं ।
इ. सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ उनके प्रसारक्षेत्र तथा वाराणसी आश्रम के साथ एकरूप हुए हैं । जब उनके साथ अन्य विषय में संभाषण करते हैं, उस समय भी वे उस विषय में १-२ पंक्ति बोलकर तुरंत साधना की ओर मुड जाते हैं । उनमें स्थित समष्टि भाव के कारण उन्होंने अल्प कालावधि में अधिक उन्नति की है ।
ई. आज इस भावसमारोह में भी शांति की अनुभूति हुई । इस समारोह में तपोलोक का वातावरण अनुभव कर रहे हैं । इस समारोह के लिए सूक्ष्म स्तर पर ऋषि-मुनियों की उपस्थिति प्रतीत हो रही है ।
मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में यह प्रार्थना करती हूं कि सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ के अनुसार उनके प्रसारक्षेत्र के साधकों की भी आध्यात्मिक उन्नति हो !
साधकों की साधना होने के लिए प्रयास करनेवाले सद्गुरु पिता ! – श्री. सोहम सिंगबाळ (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ का बेटा)
अ. मेरी बाल्यावस्था में ही सद्गुरु पिताजी धर्मप्रसार की सेवा हेतु वाराणसी चले गए । मुझे यह प्रतीत होता है कि वे मुझे गुरुचरणों में ही छोडकर गए हैं । क्योंकि उन्हें कभी भी मेरी चिंता नहीं होती थी । मेरी साधना के लिए वे आरंभ से ही पूरक रहे ।
आ. सद्गुरु पिताजी को वाराणसी आश्रम तथा पूर्वाेत्तर भारत के साधक अत्यधिक प्रिय हैं । वर्ष २०१५ में पीठदर्द के कारण उन्हें कुछ माह गोवा में रहकर उपचार लेना पडा । उस समय भी वे केवल शरीर से गोवा में थे; किंतु उनके मन में निरंतर वाराणसी के साधकों के ही विचार रहते थे । उन्हें अपने घर की अपेक्षा वाराणसी आश्रम के साधक तथा उनकी साधना अच्छी होने के लिए प्रयास की लगन ही अधिक रहती है । वाराणसी में भी वे लगन से तथा भावपूर्ण सेवा करते हैं ।
इ. उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पीठदर्द के कारण उपचार हेतु २-३ माह व्यय करने पडे’; किंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने उन्हें बताया कि इन दो-तीन माह में उनकी २-३ वर्षाें की साधना हुई है । क्योंकि अपनी अस्वस्थता के समय भी उन्होंने इतनी लगन से प्रयास किए थे !
ई. मां-पिताजी के समर्पण के कारण घर में मुझे ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ की प्रचीति आई । पहले मैं घर में रहता था, उस समय ‘ईश्वर ही मेरी चिंता कर रहे हैं’, मैंने सदैव इसकी अनुभूति ली है ।
उ. सद्गुरु पिताजी गोवा आए, किंतु सेवाओं की व्यस्तता के कारण उनकी मां के साथ, अर्थात मेरी दादी के साथ उनका अत्यल्प संवाद हो पाता था । किंतु उनका जितना भी सान्निध्य प्राप्त होता है, उससे दादी के भी ध्यान में आता है कि उनकी आंतरिक साधना कितनी है ? साथ ही उनमें स्थित गुरुसेवा के प्रति स्थित भाव तथा लगन भी दादी को प्रतीत होती है । (२९.६.२०२२)
अध्यात्म में उन्नत अपनी धर्मपत्नी द्वारा सीखने की स्थिति में रहनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ !
‘मां के प्रति (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ के प्रति) सद्गुरु पिताजी का अधिक भाव है । कुछ साल पूर्व परात्पर गुरुदेवजी ने उन्हें मां से सीखने के लिए बताया । उस समय मां का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत था । उस समय से निरंतर वे मां से सीखने की स्थिति में रहते हैं । आगे मां ने संतपद प्राप्त किया तत्पश्चात वे सद्गुरुपद पर विराजमान हुईं तथा सप्तर्षि द्वारा मां का अवतारत्व स्पष्ट हुआ । इस प्रकार विभिन्न स्तरों पर मां के प्रति पिताजी का भाव वैसा ही है । वे मेरी मां के साथ भ्रमणभाष पर संवाद करते समय अथवा प्रत्यक्ष संवाद करते समय भी उसी भाव से करते हैं । अब वे मां के साथ संवाद करते समय इतनी भावपूर्ण रीति से करते हैं जैसे साक्षात ईश्वर के साथ ही संवाद कर रहे हों !
– श्री. सोहम नीलेश सिंगबाळ
सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ का मनोगत सद्गुरु एवं संतों का मार्गदर्शन प्राप्त कर प्रयास करने से ही साधना में प्रगति होती है !
१. सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे के कारण उत्तर भारत के धर्मप्रसार कार्य का आध्यात्मीकरण हुआ ! : सेवा हेतु जिस समय मैं उत्तर भारत में गया था, उस समय मुझे वाराणसी आश्रम में रहने का अवसर प्राप्त हुआ । उस समय ‘मुझमें दायित्व लेकर सेवा करने की पात्रता थी, इसलिए मुझे वहां भेजा गया; ऐसा नहीं; अपितु ‘मैं वहां जाकर सीखूं’, इसलिए उत्तर भारत में धर्मप्रसार का कार्य करने के लिए बताया गया । सद्गुरु डॉ. पिंगळे काका धर्मप्रसार के कार्य करने के लिए उत्तर भारत में आए । तत्पश्चात उत्तर भारत का अध्यात्मीकरण आरंभ हुआ । आध्यात्मिक स्तर पर हमारे प्रयास आरंभ हुए । उनके द्वारा मुझे अधिक सीखने को मिला । मुझमें साधना का ब्यौरा न देने का दोष था । सद्गुरु काका ने उसके प्रति सतर्क किया; इसलिए उस पर प्रयास करना संभव हो पाया ।
२. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ द्वारा साधना के अमूल्य मार्गदर्शन : ‘मैं परिपूर्ण नहीं हूं । मुझे प्रयास करने हैं’, ऐसा भाव मन में रहता है । साधना की दृष्टि से समय-समय पर मैं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ से मार्गदर्शन प्राप्त करता हूं । मुझे उनके प्रति कृतज्ञता है । ऐसा प्रतीत होता है कि यदि उनके द्वारा मुझे साधना का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होता, तो मेरी साधना की स्थिति कैसी रहती ?’ सद्गुरु एवं संतों के मार्गदर्शन के पश्चात ही साधना में उन्नति होती है ।
३. साधकों की लगन के कारण प्रसारकार्य में वृद्धि होने के कारण उन सभी के प्रति कृतज्ञता ! : गुरुदेवजी ने कितने अच्छे साधन दिए हैं ! हमारे सर्व साधक अमूल्य रत्न हैं ! सर्व साधकों की लगन के कारण ही वहां के प्रसार कार्य में वृद्धि हुई है । अपने बल पर मुझ अकेले के लिए कुछ करना कठिन था । ‘अकेला कुछ कर सकता हूं’, ऐसी स्थिति भी नहीं है । अतएव सर्व साधकों के प्रति मुझे अधिक कृतज्ञता प्रतीत होती है ।
परात्पर गुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !
दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के समय सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ के संदर्भ में आई बुद्धिअगम्य अनुभूति
१. चैतन्य प्रतीत होना तथा शांति की अनुभूति आना
‘इस वर्ष संपन्न हुए अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के समय पू. नीलेश सिंगबाळ के सान्निध्य में अधिक चैतन्य प्रतीत हो रहा था । मन को शांति प्रतीत हो रही थी । उनकी ओर देखने के पश्चात वे किसी ऋषि के समान ही दिख रहे थे ।’ – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (२९.६.२०२२)
२. पू. नीलेश सिंगबाळ की वस्तु हाथ में लेने के पश्चात उसमें हल्कापन प्रतीत होकर मन निर्विचार होना
‘दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के लिए पिताजी (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ) वाराणसी से गोवा आए, उस समय से यह प्रतीत हो रहा है कि उनमें अधिक परिवर्तन हुआ है । उनकी किसी भी वस्तु को हाथ में लेने के पश्चात उसमें हल्कापन प्रतीत हो रहा है तथा मन निर्विचार हो रहा है, आदि अनुभूतियां आईं । साथ ही ऐसा भी प्रतीत हुआ कि वे तेजस्वी दिखाई दे रहे हैं, उनके मुख पर प्रकाश में वृद्धि हुई है । – श्री. सोहम सिंगबाळ (२९.६.२०२२)
३. मुख के आसपास प्रभामंडल तथा प्रकाश प्रतीत होना
‘इस वर्ष साधना संबंधी शिविर की कालावधि में सद्गुरु नीलेश दादा के साथ सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ । उनके सान्निध्य में हल्कापन प्रतीत हो रहा था । शिविर में उनका मार्गदर्शन आरंभ था, उस समय उनके मुख पर प्रकाश प्रतीत हो रहा था, साथ ही कुछ समय उनके मुख पर प्रभामंडल भी दिखाई दे रहा था ।
३ अ. सद्गुरु नीलेश सिंगबाळ को साधकों के साथ संभाषण करते देखकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का स्मरण होना
सद्गुरु नीलेशदादा का संभाषण करना, साधकों की ओर देखना इसमें परात्पर गुरुदेवजी का स्मरण होता है । उनके सान्निध्य में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ मिलनेवाली एकरूपता प्रतीत होती है । (क्रमश:)
– पू. (श्रीमती) संगीता जाधव, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था (२९.६.२०२२)