पेड-पौधों को अत्यधिक पानी डालना टालें !

‘केवल पानी देने का समय हो गया; इसलिए पेड-पौधों को प्रतिदिन पानी डाल दिया, ऐसा न करते हुए पेड-पौधों एवं मिट्टी का निरीक्षण कर आवश्यकता होने पर ही पानी दें ।

साधना में स्थूल स्तर की चूकें बताने का महत्त्व !

‘साधना में मन के स्तर पर होनेवाली अनुचित विचार-प्रक्रिया अधिक बाधक होती है । अंतर्मुखता के अभाव के कारण साधक को अपनी चूकें समझ में नहीं आतीं तथा वे चूकें मन के स्तर की चूकें होने के कारण अन्यों के ध्यान में भी नहीं आतीं ।

साधकों में व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति गंभीरता बढाने के लिए उत्तरदायी साधक सभी साधकों के व्यष्टि लेखन का ब्योरा लें !

‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।

साधको, ‘आध्यात्मिक कष्ट के कारण नहीं, अपितु स्वयं में विद्यमान स्वभावदोषों एवं अहं के पहलुओं के कारण चूकें हो रही हैं’, इसे ध्यान में लेकर उनके निर्मूलन के लिए प्रयास कीजिए !

‘अनेक साधकों को तीव्र अथवा मध्यम स्तर का आध्यात्मिक कष्ट है । ‘व्यष्टि अथवा समष्टि साधना में चूकें होने पर कुछ साधकों के मन में ‘मुझे हो रहे आध्यात्मिक कष्ट के कारण यह चूक हुई’, यह विचार आ रहा है, ऐसा ध्यान में आया है ।

खाद्यपदार्थाें के संदर्भ में विवेक जागृत रखें !

पोषणमूल्यहीन, चिपचिपे, तेल से भरे तथा ‘प्रिजर्वेटिव पदार्थाें का उपयोग किए गए तथा स्वास्थ बिगाडनेवाले पदार्थ खाने की अपेक्षा पौष्टिक, सात्त्विक तथा प्राकृतिक पदार्थ खाने चाहिए । चॉकलेट आदि पदार्थ कभी कभी खाना ठीक है; किंतु नियमित सेवन न करें ।’

व्यायाम कौन सा करें ?

‘व्यायाम करते समय शरीर के मेटाबॉलिस्म में (चयापचय क्रिया) (ऊर्जा निर्मिति की क्रिया) वृद्धि होनी चाहिए । सर्व जोडों में हलचल होनी चाहिए तथा शरीर के स्नायु खिंचे जाने चाहिए ।

शांति से नींद आने लिए ब्राह्मी चूर्ण

चार चम्मच ब्राह्मी चूर्ण ४ कटोरी नारियल तेल में लगभग एक मिनट तक उबालें । ठंडा होने के पश्चात यह तेल छानकर बोतल में डालकर १० ग्राम भीमसेनी कर्पूर का चूर्ण बनाकर डालें तथा बोतल का ढक्कन बंद कर लें । प्रतिदिन रात्रि सोते समय उसमें से १-२ चम्मच तेल सिर पर डालें ।

प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !

आयुर्वेद के अनुसार उचित समय पर खाना, जितना पचन (हजम) हो, उतना ही खाना, शरीर के लिए अहितकारक पदार्थ टालना, आदि आहार के नियमों का पालन करने से वातादि दोषों के कार्य में संतुलन होकर स्वास्थ्य प्राप्त होता है; किंतु अधिकतर भोजन संबंधी नियम पालन करना संभव नहीं होता ।