दिव्य कार्य करें दिव्य विभूति । आइए देखें वे क्षणमोती !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने प्रत्येक कार्य पहले स्वयं किया तथा उनकी बारीकियों का अध्ययन किया है । कार्य सूत्रबद्ध होने के लिए कार्यपद्धतियां बनाईं तथा तत्पश्चात ही वह साधकों को सिखाया । इसलिए अनेक साधक विविध क्षेत्रों में कार्य करने हेतु तैयार हो गए हैं । दिव्य कार्य दिव्य विभूतियों के हाथों से ही होता है । इस दिव्य कार्य के छायाचित्र स्वरूप में कुछ क्षणमोती यहां दिए हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा अध्यात्म-क्षेत्र में किया गया कार्य !

अध्यात्मप्रसार के कार्य की व्यापकता बढने के उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २३.३.१९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । सनातन संस्था का उद्देश्य है वैज्ञानिक परिभाषा में हिन्दू धर्म के अध्यात्मशास्त्र का प्रसार कर धर्मशिक्षा देना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग की निर्मिति

कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि जिस किसी भी मार्ग से साधना करें, तब भी ईश्वरप्राप्ति हेतु गुरुकृपा के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है । शीघ्र गुरुप्राप्ति हेतु तथा गुरुकृपा निरंतर होने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘गुरुकृपायोग’ नामक सरल साधनामार्ग बताया है ।

सात्त्विकता एवं चैतन्यशक्ति से युक्त ‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथ !

छायाचित्रमय जीवनदर्शन ग्रंथ के ‘यू.ए.एस.’ परीक्षण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल ४८६ मीटर पाया गया !

श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के जन्मोत्सव के दिन पंढरपुर से रामनाथी आश्रम में लाई कुछ वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जाना तथा उसी दिन पंढरपुर के श्री विठ्ठल मंदिर के तहखाने में श्रीविष्णु बालाजी की मूर्ति मिलना

इस घटना के माध्यम से मानो साक्षात भगवान ही यह बता रहे हैं, ‘सनातन संस्था के साधकों को प्राप्त मोक्षगुरु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी प्रत्यक्ष श्रीमन्नारायणस्वरूप ही हैं । वे ही श्रीविष्णु के अवतार हैं ।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दुओं का संगठन करें !

प्रस्तुत ग्रंथ में हिन्दू राष्ट्र की मूलभूत संकल्पना, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा, हिन्दू-संगठन हेतु उपक्रम, धर्मरक्षा हेतु आवश्यक मार्गदर्शन एवं साधना के संदर्भ में दृष्टिकोण दिए हैं ।

मेरे द्वारा अनुभव किए गए, अत्यधिक गुणवान एवं अन्यों को अपने समान बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी !

प.पू. डॉक्टरजी मेरे जीवन में आए और मुझे जीवन का ध्येय समझ में आया तथा उनकी कृपा से मुझे वहां साधना एवं सेवा करने का अवसर मिला । मेरी साधना के प्रारंभिक काल में उन्होंने मुझे व्यवहार एवं साधना की प्रत्यक्ष सीख प्रदान कर तैयार किया ।