सनातन के आश्रम में कौन रह सकता है ?
‘सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, “आश्रम में कौन रह सकता है ?” इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’
‘सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, “आश्रम में कौन रह सकता है ?” इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’
स्वतंत्रता के उपरांत भारत में लोकतंत्र के ७४ वर्षों का इतिहास देखें, तो लगता है, ‘अब राष्ट्र और धर्म के उत्कर्ष के लिए किसी भी भ्रष्ट और दुराचारी राजनीतिक दल का राज्य नहीं चाहिए, केवल रामराज्य ही चाहिए !
भाषा जितनी अधिक शुद्ध होती है, उतनी ही चैतन्यमय होती है । इस नियम के अनुसार सनातन के साहित्य में शुद्ध हिन्दी का उपयोग किया जाता है । संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का उपयोग किए जाने के कारण पाठकों को भाषा कठिन प्रतीत हो सकती है ।
अनेक राजनेताओं को जब उनके राजनीतिक दल प्रत्याशी नेता नहीं बनाते, तब वे उस राजनीतिक दल को छोडकर प्रत्याशी बनानेवाले अन्य राजनीतिक दल में चले जाते हैं । जिन नेताओं में पक्ष के प्रति निष्ठा नहीं है, उनमें देश के प्रति कितनी निष्ठा होगी ? और ऐसे स्वार्थी राजनेता जनता का भी क्या भला करेंगे ?
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संकल्प अनुसार कुछ वर्षाें में ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना होनेवाली है । अनेकों के मन में यह प्रश्न उठता है कि ‘यह राष्ट्र कौन चलाएगा ?’ इसके लिए ईश्वर ने उच्च लोकों से दैवीय बालकों को पृथ्वी पर भेजा है ।
विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के धर्मसंस्थापना के कार्य को ज्ञानशक्ति का समर्थन मिलने के लिए ईश्वर सनातन संस्था की ओर ज्ञानशक्ति का प्रवाह भेज रहे हैं । इस प्रवाह में ज्ञानशक्ति से ओतप्रोत चैतन्यदायी सूक्ष्म विचार ब्रह्मांड की रिक्ति से पृथ्वी की दिशा में प्रक्षेपित हो रहा है ।
बीमार होने पर उपचार करने की अपेक्षा ‘बीमार ही न हो’, इसके लिए प्रयास करना महत्त्वपूर्ण है’ Prevention is Better Than Cure, ऐसी एक कहावत है । उसे केवल कहने की अपेक्षा बडे होने पर दुर्गुण न हों, इसलिए बचपन से ही सात्त्विक संस्कार करना आवश्यक है ।
आध्यात्मिक स्तर घोषित करने का महत्त्व, आध्यात्मिक स्तर घोषित नहीं किया गया, तो जीव में अप्रकट रूप में शक्ति का कार्यरत रहना, आध्यात्मिक स्तर घोषित करने पर आकाशतत्त्व के कारण शक्ति की जागृति होना
दैवी बालक ग्रंथवाचन, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का वाचन अथवा ‘परात्पर गुरुदेवजी के तेजस्वी विचार’ केवल पढते नहीं; अपितु तुरंत कृत्य करते हैं । वे केवल ग्रंथ अथवा दैनिक वाचन करते नहीं; अपितु उनका आचरण करते हैं । सही अर्थ में इसी को सीखना’ कहते हैं ।
‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २० वर्ष पूर्व हिन्दू राष्ट्र के विषय में बताय था, अब उसकी केवल समाज को नहीं, अपितु संतों को भी प्रतीति होने लगी है’’, ऐसा प्रतिपादन श्री क्षेत्र द्वारापुर, धारवाड (कर्नाटक) के ‘श्री परमात्मा महासंस्थानम्’ के संस्थापक श्री परमात्माजी महाराज ने किया ।