६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘ॐ निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

पूर्व काल में सभी साधना करते थे, इसलिए दूसरों से कैसे बात करें , यह उन्हें सिखाना नहीं पडता था । बचपन से ही यह आत्मसात रहता था ; परंतु अब प्रत्येक को यह सिखना पडता है ! – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

प्रीति, भाव एवं गुरु पर अटल श्रद्धा से युक्त एसएसआरएफ के फ्रांस की साधिका श्रीमती योया सिरियाक वाले (आयु ४१ वर्ष) समष्टि संतपद पर विराजमान !

पू. (श्रीमती) योया वालेजी का सम्मान उनके संत भाई पू. देयान ग्लेश्चिचजी ने किया एवं कु. अनास्तासिया वाले का सत्कार उसके मामा, अर्थात पू. देयान ग्लेश्चिचजी ने ही किया ।

लगन से सेवा कर श्री गुरु का मन जीतनेवाली कु. दीपाली मतकर (आयु ३३ वर्ष) सनातन के ११२ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

समष्टि साधना की तीव्र लगन, साधकों की आध्यात्मिक प्रगति की लगन रख निरंतर साधना में उनकी मां समान सहायता करना एवं श्रीकृष्ण के प्रति गोपीभाव आदि गुण कु. दीपाली मतकर में हैं ।

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता ।

बांसुरीवादन से संतपद प्राप्त करनेवाले पुणे के विख्यात बांसुरीवादक पू. पंडित केशव गिंडेजी की रामनाथी (गोवा) स्थित सनातन आश्रम को सदिच्छा भेंट !

आश्रम के स्वागतकक्ष में लगे सनातन-निर्मित भगवान श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही पू. पंडित गिंडेजी ने कहा, ‘‘चित्र में श्रीकृष्ण जीवित हैं । ऐसा लगता है, वे हमसे बात कर रहे हैं !’’ परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने बताया, ‘‘श्रीकृष्ण के इस चित्र में ३१ प्रतिशत श्रीकृष्णतत्त्व है ।’’

‘यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना सुनिश्चित होना

१३ वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में जन्मे संत ज्ञानेश्वर महाराज स्वयं उच्च स्तर के संत थे और उनके माता-पिता एवं भाई-बहन भी संत थे । वर्तमान कलियुग में ऐसा ही एक उदाहरण है ‘सनातन संस्था’ और ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का !

प.पू. भक्तराज महाराजजी का लीलासामर्थ्य और उनके शिष्य डॉ. जयंत आठवलेजी की त्रिकालदर्शिता !

‘भविष्य में प.पू. बाबा के भजनों का अर्थ कोई तो बताएगा’, यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को वर्ष २०१३ में ही ज्ञात था’, यह उनकी त्रिकालदर्शिता ही है !

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) की आवाज में ध्वनिमुद्रित किया ‘निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट एवं विशेष अनुभूतियां

मन निर्विचार करने के लिए स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि के भले ही कितने भी प्रयत्न किए, तब भी मन कार्यरत रहता है । इसके साथ ही किसी देवता का नामजप अखंड करने से भी मन कार्यरत रहता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता अनुभव की; परंतु अगली पीढियों ने वर्ष २०१८ तक अल्प मात्रा में उसे अनुभव किया और वर्ष २०२३ तक वे उसे अनुभव नहीं करेंगी । इससे आगे की पीढियां हिन्दू राष्ट्र में सात्त्विकता पुनः अनुभव करेंगी !