अब केवल रामराज्य ही चाहिए !
‘स्वतंत्रता के उपरांत भारत में लोकतंत्र के ७४ वर्षों का इतिहास देखें, तो लगता है, ‘अब राष्ट्र और धर्म के उत्कर्ष के लिए किसी भी भ्रष्ट और दुराचारी राजनीतिक दल का राज्य नहीं चाहिए, केवल रामराज्य ही चाहिए !’
राष्ट्र की दुर्दशा करनेवाली सर्वदलीय सरकारें !
‘भ्रष्टचार, बलात्कार, राष्ट्रद्रोह, धर्मद्रोह बढने का मूल कारण है, समाज को सात्त्विक बनानेवाली साधना न सिखाना । जिन्हें यह भी नहीं समझ में आता, ऐसे सर्व दल राज्य करने के योग्य हैं क्या ? केवल हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र में ही रामराज्य की अनुभूति होगी ।’
हिन्दू राष्ट्र में राज्यकर्ता अच्छे ही होंगे !
‘स्वतंत्रता से लेकर अभी तक चुनकर आए राजनीतिक दल ‘अच्छे हैं’, इसलिए नहीं चुने गए । इसके विपरीत वह अन्य दलों की तुलना में कम बुरे हैं, इसलिए चुने गए हैं ! (अंग्रेजी में एक वाक्य है ‘The Lesser of two evils’ जिसका अर्थ है, ‘उपलब्ध दो अनुचित विकल्पों में से न्यूनतम हानि करनेवाला विकल्प चुनना ।’) हिन्दू राष्ट्र में ऐसा प्रसंग ही निर्माण नहीं होगा; क्योंकि राज्यकर्ता अच्छे ही होंगे ।’
भारत की दुर्दशा पर ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ ही एकमात्र उपाय है !
‘कहां इंग्लैंड से आए मुट्ठीभर अंग्रेज संपूर्ण भारत पर कुछ ही वर्षों में राज्य करने लगे और कहां स्वतंत्रता के उपरांत ७४ वर्ष की अवधि में विभाजित भारत पर भी राज्य न कर पानेवाले, प्रतिदिन हिंसाचार के समाचारों से युक्त अभी तक के शासनकर्त्ताओं का राज्य ! इसका एक ही उपाय है और वह है हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले