आश्विन शुक्ल १४ (१६ अक्टूबर)
कोजागरी पूर्णिमा की रात को लक्ष्मी तथा इंद्र की पूजा की जाती है । कोजागरी पूर्णिमा की कथा इस प्रकार है कि बीच रात्रि में लक्ष्मी पृथ्वी पर आकर जो जागृत है, उसे धन, अनाज तथा समृद्धि प्रदान करती है । श्रीमद्भागवत के कथनानुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजमंडल में रासोत्सव मनाया था ।
‘इस दिन नवान्न भोजन बनाते हैं । इस व्रत के रात्रिकाल में लक्ष्मी तथा ऐरावत पर बैठे इंद्र की पूजा की जाती है । पूजा के पश्चात देव व पितरों को कच्चा चिवडा (पोहे) एवं नारियल का जल समर्पित कर उसका प्राशन नैवेद्य के रूप में करते हैं; तदुपरांत उसे सभी में बांटते हैं । इस पूर्णिमा की श्वेत चांदनी में चंद्र को गाढे किए गए दूध (खीर) का नैवेद्य चढाते हैं । चंद्र के प्रकाश में एक प्रकार की आयुर्वेदिक शक्ति है । इसलिए यह दूध आरोग्यदायी है । इस रात जागरण करते हैं । अगले दिन सवेरे पूजा के उपरांत पारण (व्रत के उपरांत पहला भोजन करने की क्रिया) करते हैं ।’’
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’)