छठ पूजा (१९ नवंबर)

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे सबसे बडा त्योहार मानते हैं । इसमें गंगा स्नान का महत्त्व सबसे अधिक है । यह व्रत स्त्री एवं पुरुष दोनों करते हैं । यह चार दिवसीय त्योहार है

तुलसी विवाह

कार्तिक शुक्ल द्वादशी पर तुलसी विवाह उपरान्त चातुर्मास में रखे गए सर्व व्रतों का उद्यापन करते हैं । जो पदार्थ वर्जित किए हों, वह ब्राह्मण को दान कर, फिर स्वयं सेवन करें ।

देवदीपावली

इस दिन अपने कुलदेवता तथा इष्टदेवतासहित, स्थान-देवता, वास्तुदेवता, ग्रामदेवता और गांव के अन्य मुख्य उपदेवता, महापुरुष, वेतोबा इत्यादि निम्नस्तरीय देवताओं की पूजा कर उनकी रुचि का प्रसाद पहुंचाने का कर्तव्य पूर्ण किया जाता है ।

करवा चौथ

विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना कर भगवान रजनीनाथ को (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं ।

आध्यात्मिक लाभ एवं चैतन्य देनेवाली मंगलमय दीपावली !

शरद ऋतु के आश्विन मास की पूर्णिमा तथा यह अमावस्या भी कल्याणकारी है । लक्ष्मीपूजन के दिन प्रातःकाल मंगलस्नान कर देवतापूजन, दोपहर में पार्वणश्राद्ध एवं ब्राह्मण-भोजन और संध्याकाल में (प्रदोषकाल में) फूल-पत्तों से सुशोभित मंडप में लक्ष्मी, श्रीविष्णु एवं कुबेर की पूजा की जाती है ।

Navaratri : नवरात्रि की सप्तमी तिथि का महत्व

नवरात्रि की सप्तमी तिथि को श्री दुर्गादेवी के असुर, भूत-प्रेत इत्यादि का नाश करनेवाले ‘कालरात्रि’ रूप की पूजा की जाती है।

Navaratri : देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि ।

श्री दुर्गादेवी नवरात्रि के नौ दिनों में संसार का तमोगुण घटाती हैं और सत्त्वगुण बढाती हैं ।

Navaratri : नवरात्रि में जागरण तथा उपवास करने का महत्त्व

उपवास करने से व्यक्ति का रजोगुण तथा तमोगुण घटता है तथा देह की सात्त्विकता बढती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण से शक्तितत्त्व को अधिक ग्रहण करने के लिए सक्षम बनता है ।

नवदुर्गा

किसी भी देवता के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी  ज्ञात होने पर उनके विषय में श्रद्धा वृद्धिंगत होने में सहायता होती है । यही बात ध्यान में रखकर नवरात्रि के निमित्त शक्तिपूजकों के लिए एवं शक्ति की सांप्रदायिक साधना करनेवालों के लिए इस लेख में देवी के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी दे रहे है ।

हिन्दुओ, शक्तिदायी विजयादशमी कैसे मनाओगे ?

इस दिन राजा, सामन्त एवं सरदार, अपने शस्त्रों-उपकरणों को स्वच्छ कर एवं पंक्ति में रखकर उनकी पूजा करते हैं । उसी प्रकार किसान एवं कारीगर अपने (कृषि हेतु उपयुक्त) उपकरणों एवं शस्त्रों की पूजा करते हैं । लेखनी व पुस्तक, विद्यार्थियों के शस्त्र ही हैं, इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं ।