पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी की सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा एवं उनका भक्तिभाव

जयपुर की ८३ वीं संत पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी का ८१ वां जन्मदिन ५ सितंबर को था । इस निमित्त उनकी भक्ति से संबंधित कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं !

‘ब्राह्मण’ नाम किसका है ? (ब्राह्मण किसे कहें ?)

वज्रसूचिकोपनिषद्में ‘ब्राह्मण नाम किसका है ?’ ऐसा प्रश्न उपस्थित कर अलग-अलग संभावनाएं बताकर उनका निराकरण किया है । अंतमें ‘ब्राह्मण’ नाम किसका है, यह स्पष्ट किया है । जिज्ञासुओंके लिये यह जानकारी आगे दी है ।

सनातन के ‘रासलीला’ ग्रंथ में राधा द्वारा श्रीकृष्ण को प्रार्थना के रूप में किया आत्मनिवेदन तथा श्रीकृष्ण द्वारा उत्तर के रूप में किया उनका मार्गदर्शन ! मार्गदर्शन पढने पर ईश्वर की कृपा से साधिका को सूझे सूत्र

परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने साधकों को ‘गुरुकृपायोग’ का साधनामार्ग बताकर ‘ईश्वरप्राप्ति’ का ध्येय दिया, जिससे साधक उनमें नहीं अटकते

नम्र, मृदूभाषी एवं साधकों की प्रेमपूर्वक चिंता करनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी !

हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी का निवास वाराणसी सेवाकेंद्र में है । वहां के साधकों को सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी से सीखने मिले सूत्र एवं उन्हें हुईं अनुभूतियां आगे दी गई हैं ।

पांच कोश और चार देहोंका संबंध

अध्यात्मशास्त्रमें अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय, ये पांच कोश बताये हैं । स्थूलदेह, सूक्ष्मदेह, कारणदेह औेर महाकारणदेह, ये चार देह बताये हैं ।

साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में आनेवाली बाधाएं और उनपर उपाययोजना !

अब आपातकाल प्रारंभ हो चुका है । तीसरा विश्वयुद्ध अत्यधिक विनाशकारी होनेवाला है । उसके लिए हमें तैयार रहना आवश्यक है । आपातकाल से पार होने के लिए साधना आवश्यक है । उस दृष्टि से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में आनेवाली बाधाएं और उसपर समाधान योजना समझ लेते हैं ।

आध्यात्मिक स्तर पर भगवद्गीता का लाभ न लेनेवाला हिन्दू समाज !

‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ वेदों के साथ ही सर्व धर्मग्रंथों का सार है । भगवद्गीता का प्रसार सभी स्तर पर होता है एवं अनेक हिन्दुओं के घर में यह ग्रंथ है; परंतु ऐसा होते हुए भी कलियुग में हिन्दू एवं हिन्दू धर्म की स्थिति अत्यंत विकट हो गई है ।

कलियुग के इस घोर आपातकाल में ग्रंथनिर्मिति कर धर्मसंस्थापना का अवतारी कार्य करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में जो ज्ञान विशद किया है, उसका प्रत्यक्ष आचरण कैसे किया जाए ? ईश्वरप्राप्ति के साथ ही धर्मसंस्थापना के कार्य में सहभागी होकर जीवन का उद्धार कैसे करें ?’ परात्पर गुरुदेवजी लिखित ग्रंथ एवं उनके समष्टि कार्य से यह साध्य हो रहा है । इससे उनके अवतारी कार्य की प्रतीति होती है ।

अपना उद्धार स्वयंको ही करना है !

कोई गुरु अथवा ईश्वर आकर हमसे हुई चूकोंका, पापोंका परिणाम नष्ट नहीं करेंगे, हमारा स्वभाव नहीं सुधारेंगे । हम भाग्यशाली हैं कि हमें ग्रंथोंसे, गुरुओंसे मार्गदर्शन मिला है । अब आगे हमें अपनी चित्तशुद्धि करनी है, हमें ही करनी है !

परिपूर्ण सेवा करनेवाले एवं पितृवत प्रेम करनेवाले श्री.अरविंद सहस्रबुद्धे एवं चिकाटी से व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवालीं श्रीमती वैशाली मुंगळे संतपद पर विराजमान !

पू. सहस्रबुद्धेजी के जीवन में साधना के कारण हुए परिवर्तन, उनके द्वारा स्थिरता से सर्व कठिन प्रसंगों का सामना करना, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति उनकी श्रद्धा आदि प्रसंग सुनकर उपस्थित लोगों का भाव जागृत हुआ ।