साधना कर संतपद प्राप्त करनेवाले कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी (आयु ६४ वर्ष) !

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्‍यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) ने ११.१०.२०२१ को कतरास (झारखंड) के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें संत (समष्टि) पू. प्रदीप खेमकाजी तथा उनके परिवार के साथ भेंटवार्ता की । इस भेंटवार्ता में उनकी साधनायात्रा के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं … ।

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर : विशेष बात यह है कि कतरास (झारखंड) के पू. प्रदीप खेमकाजी, उनकी पत्नी पू. (श्रीमती) सुनिता खेमकाजी (सनातन की ८४ वीं संत) एवं पू. प्रदीप खेमकाजी की मां, पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी (सनातन की ८३ वी संत), ये तीनों एक ही परिवार के संत हैं ।

पू. प्रदीप खेमकाजी एक उद्योगपति हैं । उन्होंने साधना में संतपद प्राप्त किया है तथा उन्होंने अपने व्यवसाय में भी बहुत अच्छी प्रगति की है । उन्होंने ये दोनों बातें कैसे साध्य की, इस संबंध में उन्हीं के शब्दों में सुनेंगे ।

पू. प्रदीप खेमकाजी

१. ‘गुरुदेवजी की कृपा से साधना सहजता से हुई’, इस भाव में रहनेवाले पू. प्रदीप खेमकाजी !

पू. प्रदीप खेमकाजी : हमारा परिवार व्यवसाय करता था । प.पू. गुरुदेवजी (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी) कब हमारे जीवन में आए, हमसे साधना करवाई और हमें अपने चरणों में स्थान दे दिया, यह ध्यान में ही नहीं आया ।

१ अ. स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन सारणी लिखना एक दिन भी खंडित न होना

पू. खेमका : वर्ष २००० में हम सभी ने साधना आरंभ की । वर्ष २००३ में स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया आरंभ हुई । तब गुरुदेवजी ने बताया था, ‘एक सारणी लिखनी है । उसमें अपने स्वभावदोष लिखने हैं ।’ तब मन में ऐसे विचार थे कि वे हमारे लिए इतना कुछ कर रहे हैं, इसलिए मेरा रोम-रोम उनका ऋणी है । सबकुछ तो उन्होंने ही दिया है । वे हमपर इतनी कृपा बरसा रहे हैं और अब यदि उन्होंने सारणी लिखने के लिए कहा है, तो मैं उससे पीछे क्यों हटूं ? तब से मैंने प्रतिदिन सारणी लिखी । यहां तक की मेरे पिताजी की जब मृत्यु हुई, उस रात को भी मैंने सारणी लिखी ।

१ आ. लाखों जन्मों का पुण्य फलित होने से इस जन्म में गुरुदेवजी के श्रीचरणों में स्थान मिला, ऐसा भाव होना

पू. खेमका : लाखों जन्मों में जो छोटे-छोटे पुण्यकर्म किए होंगे, उन सभी के फलित होने से इस जन्म में प.पू. गुरुदेवजी ने मुझे उनके श्रीचरणों में स्थान दिया है । शास्त्रों में लिखा है कि ‘जब किसी का पुण्य फलित होता है, तब मानो उसे ईश्वर की ही प्राप्ति होती है ।’ प.पू. गुरुदेवजी ने इतनी सरल-सुलभ साधना बताई और उसके लिए ज्येष्ठ साधकों को हमारे पास भेजा, इसीलिए हम साधना सहजता से कर पाए । मुझे प्रत्येक क्षण यही अनुभूति होती है कि ‘वे साक्षात ईश्वर ही हैं ।’ उनके श्रीचरणों के प्रति भाव बढता गया और प्रतीत होने लगा कि व्यवहार ही साधना है ।

१ इ. ‘६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त करने के लिए कितने दिन लगेंगे’, यह गुरुदेवजी ने सूक्ष्म से बताया और उसके अनुसार सब होता गया ।

१ ई. पति-पत्नी का एक-दूसरे को पूर्ण सहयोग देने के कारण साधना में उन्नति होना

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमका

कु. तेजल : आप दोनों पति-पत्नी का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित होने के पश्चात संतपद भी लगभग एक साथ ही घोषित हुआ है । अब साधनायात्रा भी एक ही साथ हो रही है । वैसे देखा जाए तो समाज में पति-पत्नी में थोडी-बहुत खटपट होती ही रहती है, एक-दूसरे के विचारों से सहमत न होना इत्यादि सामान्य बात है । आप दोनों तो साधना में साथ-साथ ही आगे बढ रहे हैं । उसके लिए आप क्या प्रयत्न करते हैं ? एक-दूसरे की सहायता कैसे करते हैं ? इस संदर्भ में कुछ बताएं ।

पू. खेमका : प.पू. गुरुदेवजी की असीम कृपा के कारण ही मुझे कुछ अलग से प्रयत्न करने की आवश्यकता ही नहीं पडी । वर्ष २००० से २०१० तक, १० वर्षों में मुझे एक भी औषधि लेने की कभी आवश्यकता ही नहीं पडी । उससे पहले मुझे २-३ माह पश्चात थोडा-बहुत बुखार आता था, सर्दी होती थी; किंतु आश्चर्य की बात यह है कि जब से मैंने साधना आरंभ की, तब से कभी सर्दी-खांसी अथवा बुखार नहीं आया । व्यवसाय में पत्नी का प्रत्यक्ष सहभाग नहीं है; परंतु अन्य सभी बातों में जो सहकार्य अपेक्षित रहता है, उससे अधिक प.पू. गुरुदेवजी ने मुझसे करवा लिया । सामान्यत: पति-पत्नी में थोडी-बहुत खटपट चलती ही रहती है; परंतु हमारे बीच ऐसा नहीं होता । हम एक-दूसरे का कहा १०० प्रतिशत स्वीकार लेते हैं । हम दोनों की साधनायात्रा एक ही समयपर आरंभ हुई । प.पू. गुरुदेवजी ने जैसे हम पर एक ही समय पर कृपावर्षाव किया ।

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमका : यह उनका आशीर्वाद ही था । जब हमारा आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हुआ, तब उन्होंने हम दोनों को प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट) दिया था कि तुम दोनों सप्तपदी (विवाह के समय की विधि) एक ही समय पर चले, वैसे ही साधना में भी एक साथ चल रहे हो ।

१ उ. गुरुदेवजी की असीम कृपा से जीवन में आए ४ वर्षों के कठिन काल में भी साधना पर कोई परिणाम न होना

(१) पू. प्रदीप खेमकाजी, (२) पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी, (३) पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी, (४) श्री. राहुल प्रदीप खेमका, (५) चि. श्रीहरि राहुल खेमका, (६) श्रीमती रिषु राहुल खेमका

पू. (श्रीमती) सुनीता खेमका : हमारे जीवन में अत्यंत कठिन और मन के विरुद्ध प्रसंग आया । तब परिस्थिति पूर्ण रूप से प्रतिकूल थी । वे ४ वर्ष हमारे लिए अत्यंत कठिन थे; किंतु गुरुदेवजी की कृपा से उसका परिणाम हमारी साधना पर नहीं हुआ । उस समय हमारे परिवार के ही एक सदस्य ने पूछा, ‘‘आपके जीवन में तो गुरु हैं, फिर ऐसा कठिन प्रसंग क्यों आया ?’’ तब प.पू. गुरुदेवजी ने ही अत्यंत सुंदर उत्तर सुझाया । ‘द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ थे; फिर भी पांडवों का अपना प्रारब्ध भुगतना ही पडा ! उसी प्रकार श्रीकृष्ण (गुरुदेवजी) हमारे साथ हैं; किंतु हमारा जो प्रारब्ध है, वह तो हमें ही भुगतना होगा न ! इसीलिए यह प्रतिकूल परिस्थिति हमारे जीवन में आई है ।’ हमारे ध्यान में आया कि जिस समय जिस उत्तर की आवश्यकता होती है, प.पू. गुरुदेवजी उस समय उसी के अनुरूप उत्तर सुझाते हैं । अन्यथा अपनी बुद्धि से इतना उचित उत्तर देना असंभव था ।

कु. तेजल : हमें गुरुदेवजी ने सभी बातें बताई हैं, अर्थात सिखाई हैं । प्रत्येक व्यक्ति को अपना प्रारब्ध भुगतना ही पडता है । आप साधना करते-करते अपने प्रारब्ध भोग भी साथ-साथ भुगत रहे थे ।

पू. खेमकाजी : दुपहिया वाहन के दोनों पहिए एक ही समय पर घूमते हैं । उसमें एक पहिया प्रारब्ध का है, तो दूसरा गुरुकृपा का ! वह काल केवल १-२ दिनों का नहीं था, अपितु वर्ष २०११-२०१५ तक, अर्थात ४ वर्ष का कठिन समय था । यह बात किसी को भी पता नहीं है कि हमारे जीवन में इतनी सारी समस्याएं आईं थीं ।

१ ऊ. संतपद प्राप्त होने के पश्चात अंतर्मुखता बढना और इस विचार में वृद्धि होना कि ‘साधना एवं गुरुकार्य करने के लिए और क्या करना चाहिए ?

पू. खेमकाजी : वर्ष २०११ में ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर हुआ और वर्ष २०१८ में समष्टि में संतपद भी घोषित हो गया । तब मेरी अंतर्मुखता में वृद्धि हुई ।

(क्रमशः) 

जैसे दुपहिया गाडी के २ पहिए एक ही समय पर चलते हैं; उसमें एक पहिया प्रारब्ध का और दूसरा गुरुदेवजी की कृपा का है ! – पू. प्रदीप खेमकाजी

संत दर्शन

‘संत कबीर कहते हैं कि दिन भर में संतों का दर्शन अनेक बार लेना चाहिए । प्रतिदिन न ले पाएं तो सप्ताह, पक्ष अथवा महीने में एक बार तो अवश्य लेना चाहिए ।’