हिन्दू राष्ट्र का उद्घोष !
विगत कुछ वर्षों में संपूर्ण विश्व में भारत का गौरव बढा है । सर्वसामान्य देशप्रेमी व्यक्ति से लेकर उच्चपदस्थ व्यक्तियों तक अनेक लोग भारत को महासत्ता बनाने का सपना संजोए हुए हैं; परंतु इस ‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में इस स्वप्न का वास्तविकता में उतरना असंभव है । भारत तभी महासत्ता अथवा विश्वगुरु बन सकेगा, जब भारत एक हिन्दू राष्ट्र बनेगा । इस्लामी अथवा ईसाई देशों की भांति हिन्दू राष्ट्र कोई संकीर्ण अवधारणा (संकल्पना) नहीं है, अपितु वह विश्वकल्याण का विचार करनेवाली, प्रत्येक नागरिक की लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति का विचार करनेवाली एक सत्त्वप्रधान व्यवस्था है ।
१. हिन्दू धर्म की एक व्यापक अवधारणा
मेरुतंत्र धर्मग्रंथ में ‘हीनं दूषयति इति हिन्दुः’, हिन्दू शब्द की यह परिभाषा दी गई है । इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति स्वयं में विद्यमान हीन अथवा कनिष्ठ रज-तम गुणों का नाश करता है वह ‘हिन्दू’ है ! इस प्रकार का सात्त्विक आचरण करनेवाला व्यक्ति केवल स्वयं तक सीमित संकीर्ण विचार नहीं करता, अपितु विश्वकल्याण का विचार करता है । इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं । ऋग्वेद में ‘कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् ।’ अर्थात ‘समस्त विश्व को आर्य अर्थात सुसंस्कृत बनाएंगे’, ऐसा कहा गया है । हमारे उपनिषदों में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा रखी गई है । इसका अर्थ ‘यह मेरा, यह मेरा नहीं’! जिनकी बुद्धि क्षुद्र होती है, उनके ऐसे विचार होते हैं । उदार चरित्रवाले लोगों को तो संपूर्ण पृथ्वी ही स्वयं के परिवार की भांति लगती है ।’ संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ में ‘संपूर्ण विश्व ही मेरा घर है’, ऐसा बताया, तथा ‘पसायदान’ नामक प्रार्थना में उन्होंने विश्वकल्याण के लिए दान मांगा । ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संकल्पना भी इसी आधार पर होने से यदि इसी को समझ लिया जाए, तो हिन्दू राष्ट्र के विषय में अकारण की जानेवाली आपत्तियों का अपनेआप ही खंडन होगा ।
२. हिन्दुओं पर बढते जा रहे अत्याचार
आज केंद्र में भले ही सत्तापरिवर्तन हुआ हो; परंतु हिन्दुओं पर हो रहे आघात रुके नहीं हैं । अनेक गैरमुसलमान युवतियां ‘लव जिहाद’ की शिकार हो रही हैं । दिनदहाडे कमलेश तिवारी, चंदन गुप्ता, हर्ष जैसे हिन्दुत्वनिष्ठों की हत्याएं हो रही हैं । तमिलनाडु की ‘लावण्या’ जैसी हिन्दू युवतियों और महिलाओं को ईसाई धर्मांतरण के दबाव के कारण अपने प्राण गंवाने पड रहे हैं । भारत और हिन्दुत्व को बदनाम करने के लिए ‘हिजाब’ एवं ‘किसान आंदोलन’ जैसे ‘टूलकिट’ का उपयोग किया जा रहा है । ‘थूक जिहाद’, ‘नार्काेटिक जिहाद’ जैसे जिहाद के नए-नए मार्ग तैयार हो रहे हैं । ‘कॉमेडी’ के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं की घिनौनी आलोचना की जा रही है । आज ३२ वर्ष बीत जाने पर भी जिहादी आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं का कश्मीर में पुनर्वास नहीं हो सकता है । अनुच्छेद ३७० निरस्त करने के कारण कश्मीरी हिन्दुओं का कश्मीर में वापस आने का मार्ग कुछ सरल हुआ हो; परंतु वह अभी भी सुरक्षित नहीं है, यही वास्तविकता है । हिन्दूबहुल भारत में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही एकमात्र विकल्प है ।
३. राष्ट्र पर मंडरा रहे संकट
आज भारत के ९ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं । पंजाब से अलग खालिस्तान की, तथा तमिलनाडु से भी द्रविडीस्तान की मांग हो रही है । केरल और बंगाल जैसे राज्यों में बडी मात्रा में हिन्दू धर्मविरोधी और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चल रही हैं । असम में लाखों की संख्या में बांग्लादेशी भारत में घुस गए हैं । ‘हलाल’ अर्थव्यवस्था के माध्यम से एक समानांतर इस्लामी अर्थव्यवस्था खडी करने का षड्यंत्र उजागर हुआ है । भारत का प्राण सनातन धर्म राजव्यवस्था से विलुप्त होने से ही आज यह स्थिति बन गई है । इन्हीं कारणों के समाधान के लिए हिन्दवी स्वराज्य के तर्ज पर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना आवश्यक है ।
४. भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक विकास भी आवश्यक
आज विकास की दृष्टि से देश आगे बढ रहा है; परंतु समाजव्यवस्था और राष्ट्ररचना आदर्श होने हेतु भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक विकास भी आवश्यक होता है । कोरोना काल में वैज्ञानिक प्रगति की मर्यादाएं सभी ने अनुभव कीं । इसलिए शाश्वत विकास साध्य करना हो, तो अध्यात्म एवं सनातन धर्म के आश्रय में आने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है । हमारे यहां धर्माधिष्ठित राज्यों के अनेक आदर्श उदाहरण मिलते हैं; इसलिए हिन्दू राष्ट्र कैसे होगा, इसकी झलक हमें इतिहास में देखने को मिलती है । भले ही भौतिक विकास हुआ, तब भी जिस समाज के लिए हम वह कर रहे हैं, उस समाज को उन्नत बनाने के लिए प्रयास होने चाहिए । आदर्श व्यक्तित्व साकार करने के लिए अर्थात आदर्श समाजरचना एवं भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक विकास साधने हेतु भारत में हिन्दू राष्ट्र साकार होना आवश्यक है । इस दृष्टि से सर्वांगीण विचारमंथन करने के लिए, दिशा देने के लिए और क्रियाशील बनने के लिए ही ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ का आयोजन किया गया है ।
५. अधिवेशन की फलोत्पत्ति
इस हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को जनमानस तक पहुंचाने में, हिन्दुत्वनिष्ठों और राष्ट्रप्रेमी संगठनों को हिन्दू राष्ट्र की दिशा में क्रियाशील बनाने में, साथ ही सनातन धर्मनिष्ठ हिन्दुओं का व्यापक संगठन खडा करने में विगत ९ वर्षाें से आयोजित किए जा रहे ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ का बडा योगदान है । कुछ वर्ष पूर्व तक अस्पृश्य बने रहे ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का आज सर्वत्र उद्घोष होता हुआ दिखाई दे रहा है । एक प्रकार से इसे ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ की फलोत्पत्ति कहनी पडेगी । आज भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने की दिशा में अग्रसर है । अतः भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित कर वास्तव में भारत महासत्ता बनने की ओर अर्थात विश्वगुरुपद की ओर अग्रसर हो’, यही अपेक्षा है !
– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति.
हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकतावास्तव में देखा जाए, तो पहले भारत एक स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र ही था । वर्ष १९४७ में धर्म के आधार पर देश का विभाजन होने के उपरांत पाकिस्तान एक भिन्न देश बन गया । वास्तव में उसी समय शेष हिन्दुस्थान अर्थात भारत ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित होना चाहिए था; परंतु वैसा नहीं हुआ । इसके विपरीत वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय सभी विरोधियों को कारागार में बंद कर तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द घुसा दिया । अभी तक इस ‘सेक्युलर’ शब्द की किसी प्रकार की आधिकारिक परिभाषा नहीं की गई है; परंतु इसी ‘सेक्युलर’वाद के नाम पर अब तक अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण और हिन्दुओं का दमन ही हो रहा है । यदि संविधान में संशोधन कर भारत को अन्यायकारी पद्धति से ‘सेक्युलर’ देश घोषित किया जा सकता है, तो पुनः इसी प्रकार से संविधान में संशोधन कर भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों नहीं घोषित किया जा सकता ? |