आनंदप्राप्ति के लिए साधना करना ही आवश्यक ! – वैभव आफळे, समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति
‘‘प्रारब्धभोग भोगना तथा ईश्वरप्राप्ति करना ही मनुष्यजीवन का लक्ष्य है, उसे साध्य करने के लिए साधना करना ही आवश्यक है ।
‘‘प्रारब्धभोग भोगना तथा ईश्वरप्राप्ति करना ही मनुष्यजीवन का लक्ष्य है, उसे साध्य करने के लिए साधना करना ही आवश्यक है ।
ग्रंथ पढकर अथवा गुरुओंसे सीखकर धार्मिक कृतियोंका ज्ञान हुवा तो भी उनका कार्य शेष रहता है । जपका मंत्र, संख्या आदि जाना तो भी आगे प्रत्यक्ष जप करना और उसका फल पाना शेष रहता है तथा जप पुन: पुन: प्रतिदिन करना होता है ।
‘बहुत से साधक नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ नहीं पढते, यह ध्यान में आया है । ऐसे साधक ध्यान दें कि ‘उनमें सीखने की वृत्ति का अभाव है’ और उसे बढाने के लिए प्रयत्न करें ।
हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के ध्येय हेतु अखंड कार्यरत, अलौकिक कार्यक्षमता, सभी का आधारस्तंभ एवं महर्षिजी द्वारा ‘श्री महालक्ष्मी का अवतार’ कहकर गौरवान्वित श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का मार्गशीर्ष शुक्ल १४ को ५२ वां जन्मदिवस है ।
सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी थी, उस स्थान पर कार्यरत वयोवृद्ध व्यवस्थापक ने बताया, ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सीतामाता के समान दिख रही हैं !’
जैसे-जैसे जीव की साधना बढती है, वैसे-वैसे देह में विद्यमान पंचमहाभूतों में जागृति आती है । उपासनामार्ग के अनुसार अथवा साधना के स्तर के अनुसार संबंधित तत्त्व का स्तर बढता है । उस समय देह पर उसके दृश्य परिणाम दिखाई देते हैं ।
ऋषि-मुनियों समान तपस्या, सर्वज्ञता, लीलासामर्थ्य इत्यादि गुण विशेषताओं से युक्त अद्वितीय व्यक्तित्व अर्थात कुछ वर्ष पूर्व इस भूतल को अपने अस्तित्व से पावन करनेवाले योगतज्ञ दादाजी !
आगे चलकर, प्रगतिके लिये व्यक्तिगत प्रयास अत्यावश्यक हैं । मोक्षप्राप्तिके लिये प्रयास केवल अकेलेको ही करने पडते हैं और मोक्षप्राप्ति केवल अकेलेको ही होती है ।
विनम्रता, निरपेक्ष प्रीति जैसे अनेक दैवी गुणों से युक्त एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अनन्य भाव रखनेवाले, रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम निवासी सनातन के ७ वें संत पू. पद्माकर होनपजी (आयु ७४ वर्ष) ने ३० अक्टूबर २०२२ को दोपहर ४.२७ बजे लंबी बीमारी के चलते देहत्याग किया ।
‘प्रसार के अधिकांश साधक पारिवारिक दायित्व संभालते हुए धर्मप्रसार की सेवा करते हैं । जिस समय वे घर में रहते हैं, उस समय कुछ साधक सेवा के संदर्भ में उन्हें भ्रमणभाष पर संपर्क करते हैं तथा सेवा के संदर्भ में बातें करते हैं ।