पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी की सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति दृढ श्रद्धा एवं उनका भक्तिभाव

जयपुर की ८३ वीं संत पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी का ८१ वां जन्मदिन ५ सितंबर को था । इस निमित्त उनकी भक्ति से संबंधित कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

हर क्षण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को अनुभव करना

पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी

मैं बचपन में भी कर्मकांड करती थी, जैसे गीता और रामायण पढना, प्रतिदिन मंदिर जाना । मुझे अच्छा लगता था । फिर नामजप करते-करते सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी (परम पूज्य गुरुदेवजी) पर मेरी इतनी श्रद्धा हो गई कि मैंने बेटे प्रदीप से पूछा, ‘‘प्रदीप, मैं कैसे आगे जाऊं ? मुझे क्या करना चाहिए ? तुम बताओ ।’’ वह बोला, ‘‘मां, आप हर पल, हर क्षण गुरुदेवजी को साथ रखिए ।’’ तो फिर मेरा यही हो गया । मैं हर क्षण उनसे बात करने लगी । ब्रश करते समय कहती, ‘परम पूज्य गुरुदेवजी, ये दांत आपने ही दिए हैं । इन दांतों की सफाई आपकी कृपा से ही कर रही हूं ।’ आगे हर कृति के साथ प्रार्थना होने लगी, आपकी कृपा से ही  मैं स्नान कर रही हूं । आपकी कृपा से ही रात को सोते समय मैं यह प्रार्थना आपके चरणों में कर सो रही हूं । आपकी कृपा से ही मैं यह सब कर रही हूं ।’ अब परम पूज्यजी ही मेरे जीवन में सब कुछ हैं ।

– श्रीमती गीतादेवी खेमका, जयपुर, राजस्थान.

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी पर दृढ श्रद्धा

पिताजी की मृत्यु हुई तो मां साक्षिभाव से उस स्थिति का सामना कर पाई । परम पूज्य से पिताजी की मृत्यु से ठीक ४-५ दिन पहले फोन पर बात हुई थी । तो स्पीकर फोन से बाबूजी भी सुन रहे थे और हम सब भाई-बहन उन्हें घेरकर खडे थे ।

गुरुदेवजी ने सबसे कहा कि ‘‘आपको उनकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है । मैं इनके लिए प्रार्थना कर रहा हूं । आप भी करिए ।’’ उस समय इतनी भावजागृति हुई कि वे स्वयं ईश्वर हैं और वे बोल रहे हैं कि मैं प्रार्थना कर रहा हूं । तो फिर अब चिंता क्यों ?

तो मां को तत्काल लगा कि अब परम पूज्यजी ने बोल दिया है, अब बस और कुछ नहीं । तो उनकी मृत्यु के समय घर में ऐसा लग रहा था कि यहां कुछ हुआ ही नहीं है । सामान्यतः ऐसी स्थिति हृदयविदारक होती है; परंतु यहां पूरी शांति थी, जैसे परम पूज्यजी का पूरा अस्तित्व वहीं है ।

– पू. प्रदीप खेमकाजी, धनबाद, झारखंड.