सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव हेतु दिव्य रथ बनाते समय साधकों द्वारा भावपूर्ण पद्धति से किए गए परिश्रम की छायाचित्रमय क्षणिकाएं

ऐसे बना दिव्य रथ !

७० प्रतिशत श्रीविष्णुतत्त्व आकृष्ट करनेवाला दिव्य रथ

सप्तर्षिें द्वारा समय-समय पर बताए अनुसार तथा पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन में सनातन आश्रम के साधकों ने भावपूर्ण पद्धति से श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी के लिए दिव्य रथ बनाने की सेवा संपन्न की । इस दिव्य रथ को साकार करते समय अनेक शुभचिंतकों ने भी स्वयंप्रेरणा से सहायता की । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने भी समय-समय पर मार्गदर्शन किया ।

श्री. राजू सुतार, श्री. रामानंद परब को रथ की प्रतिकृति की सूक्ष्मताएं समझाते पू. कवटेकर गुरुजी
रथ हेतु छोटे स्तंभ पर की गई कलाकारी का अवलोकन करतीं श्रीमती जान्हवी शिंदे ! बाईं ओर से श्री. प्रकाश सुतार, श्री. सुनील नाईक एवं श्री. दत्तात्रेय लोहार
गोलाई यंत्र की सहायता से नापों के अनुसार रथ के स्तंभों पर स्थित कलाकारी करते कारीगर ! यह यंत्र श्री. दत्तात्रेय लोहार ने बनाया ।
पहिया लगाते श्री. मंजुनाथ दोडमणी, श्री. रामदास कोकाटे ! लकडी के पहिए घिस न जाएं; इसके लिए उन पर लोहे की पट्टी लगाई गई !

श्री गरुडदेवता की मूर्ति बनानेवाले श्री. चैतन्य आचार्य !

बढई काम कर श्री गरुडदेवता की मूर्ति तैयार करते श्री. चैतन्य आचार्य

‘रथ के अगले भाग में सबसे नीचे श्री गरुड की मूर्ति लगाई गई है । कुमटा (कर्नाटक) के शुभचिंतक श्री. चैतन्य आचार्य ने सेवा स्वरूप यह मूर्ति बनाकर दी । उन्होंने केवल ८ ही दिन में हाथ से यह मूर्ति बनाकर दी ।

सप्तर्षिें की आज्ञा से रथ के सामनेवाले भाग में विष्णुवाहन गरुड की दास्यभाव में आसनस्थ मूर्ति लगाई गई है । श्री गरुडदेवता ने समुद्रमंथन के समय भी देवताओं की सहायता की थी ! अब भी वे श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी के रथ पर विराजमान हैं !

उडनेवाले गरुड के पंख जैसे दिखेंगे, उस प्रकार का रंगकाम करने से पहले लकडी की नसें (grains) एक-दूसरे से मिली हुई दिखाई दे रही थीं । गरुड के दोनों पैरों की उंगलियों के नाखूनों पर श्वेत लकडियों की नसें (grains) आई थीं । उसके कारण वो सचमुच ही उंगलियों के नाखून लग रहे थे ।’

– श्री. प्रकाश सुतार, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.