‘वास्तव में देखा जाए, तो ‘साधकों के हाथों से रथ बनना’ ही एक बडी अनुभूति है । हम में से किसी को भी रथ बनाने के संदर्भ में बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था । महर्षिजी एवं सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कृपा एवं पू. कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन के कारण ही यह संभव हुआ । उसी प्रकार श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने भी समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन कर इस सेवा के संदर्भ में आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा दिशादर्शन किया ।
१. श्रीमती जान्हवी रमेश शिंदे : इन्होंने श्रीविष्णुतत्त्व आकृष्ट करनेवाले तथा आनंद के स्पंदनों को प्रक्षेपित करनेवाले रथ का प्रारूप तैयार किया ।
२. श्री. गौतम गडेकर एवं सुश्री (कु.) अंजली क्षीरसागर (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत) : इन्होंने रथनिर्मिति की सेवा में रत साधकों का समन्वय किया ।
३. श्री. दत्तात्रेय लोहार : ये कोल्हापुर जिले में अपना ‘गुरुकृपा एंटरप्राइजेस’ प्रतिष्ठान चलाते हैं । उन्होंने इस रथ हेतु ‘ब्रेक’ की व्यवस्था, ‘स्टेयरिंग’, पहियों का ‘बॉल बेयरिंग’ इत्यादि बनाकर दिया । उसी प्रकार से उन्होंने निस्तारणयोग्य सामग्री से लकडी के खंभों को वृत्ताकार बनाने हेतु यंत्र भी तैयार किया ।
४. श्री. रामानंद परब (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत) एवं श्री. राजू सुतार : इन्होंने रथ पर स्थित शिखर, कलश, साथ ही रथ में लगी पीतल की परत; इनसे संबंधित सभी सेवाएं संपन्न की । इन दोनों ने अन्य साधकों की सहायता से रथ को रंगाने का काम किया । अंत के ४ दिन तो वे सोए भी नहीं । उन्होंने अखंड ४ दिन जागरण कर रथ का रंगकाम पूर्ण किया । इस प्रकार से अनेक साधकों के योगदान एवं सहायता के कारण श्री गुरुदेवजी हेतु यह दिव्य रथ बनकर तैयार हुआ !
कृतज्ञता : ‘हमारी बिल्कुल क्षमता न होते हुए भी सप्तर्षि, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की कृपा तथा पू. कवटेकर गुरुजी के अमूल्य मार्गदर्शन के कारण यह दिव्य रथ बनकर तैयार हुआ ।’ इसके लिए रथनिर्मिति की सेवा में सम्मिलित हम सभी साधक इन सभी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं !’
– रथनिर्मिति की सेवा में सम्मिलित सभी साधक
(सभी सूत्रों की तिथि : १६.५.२०२३)
श्री. प्रकाश सुतार, श्री. रामदास कोकाटे, श्री. मंजुनाथ दोडमणी, श्री. विनोद सुतार एवं श्री. गंगाराम मयेकर : इन्होंने प्रत्यक्ष रूप से रथ बनाने हेतु आवश्यक बढई काम की सेवा अत्यंत भावपूर्ण तथा समर्पित भाव से की ।