सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति, और कहां धर्म और मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए वे भी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ रहे हैं !’
‘कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति, और कहां धर्म और मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए वे भी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ रहे हैं !’
‘पुलिस तथा सेना में ही नहीं, प्रशासन में सभी को भर्ती करते समय हिन्दू राष्ट्र में ‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेम’ को सबसे बडा घटक माना जाएगा !’
‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना !’
‘अनिष्ट से संसार की रक्षा करनेवाले, तथा मानव की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति सहित मोक्ष प्रदान करनेवाला तत्त्व है धर्म ! अधिकांश विदेशी भाषाओं में ‘धर्म’ शब्द का समानार्थी शब्द भी नहीं ! इस कारण उनके लिए धर्माचरण करना कठिन होता है ।’
‘सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, “आश्रम में कौन रह सकता है ?” इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’