साधकों, ‘छवि बचाना’ के साथ ही अन्य स्वभावदोषों की बलि न चढ, अधिकाधिक लोगों से संपर्क करें !’ – सद्गुरु (सुश्री) स्वाती खाडयेजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था
उपक्रमों के उपलक्ष्य में समाज के लोगों से संपर्क करने पर ऐसा ध्यान में आया है कि वे हमारी प्रतीक्षा ही कर रहे हैं । इसके विपरीत साधक समाज में जाकर अर्पण मांगने एवं प्रायोजक ढूंढने की सेवा के प्रति उदासीन हैं । साधकों में ‘प्रतिमा संजोना’, अहं का यह पहलू प्रबल होने से वे समाज में जाकर अर्पण मांगने में हिचकिचाते हैं ।