पूर्वकाल का परिवार की भांति एकत्र रहनेवाला समाज और आज का टुकडे-टुकडे हो चुका समाज !

‘पूर्वकाल में समाज में निहित सात्त्विकता, सामंजस्य, प्रेमभाव इत्यादि गुणों के कारण समाजव्यवस्था भलीभांति बनी रहे, इसके लिए कुछ करना नहीं पडता था । आज समाज में वे घटक निर्माण होने हेतु धर्मशिक्षा ही नहीं दी जाती। इस कारण कानून की सहायता लेकर समाजव्यवस्था भलीभांति बनाए रखने के दयनीय प्रयास किए जाते हैं।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘मंदिर में देवताओं के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन कराने के अतिरिक्त अन्य कुछ करते हैं क्या ? वे दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा देते, साधना सिखाते, तो हिन्दुओं की एवं भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होती ।’

प्रख्यात प्रवचनकार भारताचार्य सु.ग. शेवडे ने किया सनातन संस्था के रामनाथी, गोवा के आश्रम का अवलोकन !

भारताचार्य सु.ग. शेवडे (आयु ८९ वर्ष) ने १९ अक्टूबर २०२३ को यहां स्थित सनातन के आश्रम का अवलोकन किया । इस अवसर पर उन्होंने आश्रम में चल रहे राष्ट्र एवं धर्म से संबंधित कार्य की जानकारी ली ।

जीवन के आरंभिक काल से साधना करने का महत्त्व !

‘अनेक पति-पत्नी जीवन भर लडते-झगडते रहते हैं और आगे बुढापे में उन्हें समझ में आता है कि ‘ कष्ट का उपाय केवल साधना करना ही है ।’ उस समय ‘जीवनभर साधना क्यों नहीं की’ इसका पश्चाताप करने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प नहीं होता ।’

परीक्षा में मिले अंकों की तुलना में साधना के कारण निर्माण हुए सद्गुण महत्वपूर्ण !

‘परीक्षा में मिले अंकों से एक परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं। इसके विपरीत साधना से निर्माण हुए सद्गुणों से जीवन की परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं!’

पश्चिमी संस्कृति एवं दर्शन तथा हिन्दू संस्कृति एवं दर्शन !

‘पश्चिमी संस्कृति एवं दर्शन केवल भौतिक एवं सामाजिक विषयों का अध्ययन करते हैं । इसके विपरीत हिन्दू संस्कृति और दर्शन भौतिक एवं सामाजिक विषयों के साथ ही आध्यात्मिक विषयों का अध्ययन करते हैं तथा ईश्वरप्राप्ति इस ध्येय के विषय में मार्गदर्शन करते हैं ।’

माया संबंधी प्रेम करने के लाभ और हानि

प्रेम माया संबंधी हो तब भी, प्रेम करने पर अन्यों से प्रेम कैसे करना है, यह सीखने को मिलता है । परंतु अधिकांश लोग प्रेम में फंस जाते हैं, अर्थात माया में उलझते जाते हैं ।

विविध विचारधाराओं के संदर्भ में हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता !

हिन्दू धर्म के विचार पृथ्वी पर और मृत्यु के उपरांत जीवन सुखमय कैसे करें और अंत में ईश्वरप्राप्ति कैसे करें, इस संदर्भ में होते हैं ।

हिन्दू धर्म के कर्मकांड विज्ञान की तुलना में अनेक गुना परिपूर्ण हैं !

‘हिन्दू धर्म की जिन कृतियों की तथाकथित बुद्धिप्रमाणवादी कर्मकांड के रूप में आलोचना करते हैं, उन कृतियों का अध्ययन करने पर, जब यह ध्यान में आएगा कि वे विज्ञान की तुलना में अनेक गुना परिपूर्ण हैं, तब अध्ययनकर्ता नतमस्तक हो जाएंगे।’

प्रत्येक व्यक्ति के लिए साधना करना अनिवार्य ही है !

‘व्यक्ति की अपेक्षा परिवार, परिवार की अपेक्षा गांव, गांव की अपेक्षा राष्ट्र और राष्ट्र की अपेक्षा धर्म सर्वश्रेष्ठ है; क्योंकि केवल धर्म ही मोक्ष दे सकता है । अन्य सभी माया में फंसाते हैं ! इसलिए साधना करें !’