एकमात्र हिन्दू धर्म ही मानवजाति का तारणहार है !

मानव का जन्म क्यों हुआ ? जन्म के पूर्व वह कहां था ? मृत्यु के उपरांत वह कहां जाएगा ? इत्यादि विषयों की थोड़ी-बहुत भी जानकारी न रखनेवाले पश्चिमी तथा साम्यवादी क्या कभी मानवजाति की समस्याएं  दूर कर पाएंगे ?

हिन्दू धर्म एवं पश्चिमी विचारधारा !

हिन्दू धर्म मन को मारने की, नष्ट करने की, मनोलय करने की शिक्षा देता है; जबकि पश्चिमी विचारधारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर मनमानी करने की शिक्षा देती है !’

भारत की दुर्दशा का एक कारण है, राज्यकर्ताओं द्वारा जनता को साधना न सिखाना !

‘स्वतंत्रता से लेकर आज तक के सभी राज्यकर्ताओं ने केवल बौद्धिक शिक्षा के माध्यम से वैद्य,अभियंता, वकील तैयार किए; पर उन्हें साधना सिखाकर ‘संत’ बनने की शिक्षा नहीं दी । इस कारण आज देशद्रोह से लेकर रिश्वत तक सभी प्रकार की समस्याओं का यह देश सामना कर रहा है ।’

अध्यात्म का प्रसार करते समय यह स्मरण रखें !

‘ईश्वर का अस्तित्व न माननेवाले क्या कभी ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करने का विचार कर सकते हैं ? साधक अध्यात्म प्रसार करते समय ऐसे लोगों से बात करने में समय व्यर्थ न करें !’

साधना न करनेवाले मानव पशुवत !

‘साधना न करनेवाले पशुओं की भांति हैं। पशुओं का शरीर होते हुए भी वे साधना नहीं करते। उसी प्रकार अधिकांश मानव शरीर होते हुए भी साधना नहीं करते !’

भक्तियोग का महत्त्व !

‘ज्ञानयोग के अनुसार साधना करने पर वह प्रमुख रूप से बुद्धि से होती है । कर्मयोग के अनुसार साधना करने पर, वह शरीर और बुद्धि से होती है; जबकि भक्तियोग के अनुसार साधना करने पर, वह मन, बुद्धि और शरीर से होती है।’

गुरु का महत्त्व !

‘माता-पिता अथवा शिक्षक बचपन में बच्चों को अ, आ, इ, ई… नहीं सिखाते, तो बच्चे आगे कुछ पढ नहीं पाते । इसी प्रकार अध्यात्म में गुरु हमें जो सिखाते हैं, वह आगे हमारी आध्यात्मिक प्रगति हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है ।’

हिन्दुओ ! ध्यान रखो, अजेय समाज और उनका राष्ट्र ही विजयादशमी मनाने के पात्र हैं !

हिन्दुओ, ध्यान रखो, जो समाज अजेय है, उसका राष्ट्र ही विजयादशमी मनाने हेतु पात्र है ! इसीलिए विजयादशमी के उपलक्ष्य में हिन्दू समाज को अजेय बनाने का संकल्प करो !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘बाहरी मेकअप से अन्यों को आकर्षित किया जा सकता है, जबकि भीतरी मेकअप अर्थात स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन कर ईश्वर को आकर्षित किया जा सकता है ।’