अभिव्यक्ति की तुलना में धार्मिकता महत्त्वपूर्ण !
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि ‘धार्मिक भावना, प्रतीक, श्रद्धाकेंद्रों का सम्मान करना आवश्यक है, वहां अभिव्यक्ति स्वतंत्रता लागू नहीं होती ।’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि ‘धार्मिक भावना, प्रतीक, श्रद्धाकेंद्रों का सम्मान करना आवश्यक है, वहां अभिव्यक्ति स्वतंत्रता लागू नहीं होती ।’
फौजदारी अपराधों में निर्दोष छूटने पर भी न्यायालय की प्रविष्टि और ‘गूगल’ जैसे ‘सर्च इंजिन’ पर उस व्यक्ति के सभी आरोपों की जानकारी प्राप्त होती है । इसलिए वह निर्दाेष होते हुए भी उसकी मानहानि होती है ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा अब तक १५ राष्ट्रीय और ६४ अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से ७ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय को ‘सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार’ प्राप्त हुए हैं ।
‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के जालस्थल (वेबसाइट) पर नियतकालिकों में प्रकाशित किए जानेवाले लेख जालस्थल की विविध ‘कैटेगरीज’ में विभाजित किए गए हैं । इनमें अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय / राज्यस्तरीय / स्थानीय समाचार, राष्ट्र-धर्म लेख, साधना, अनुभूति इत्यादि विविध ‘कैटेगरीज’ का समावेश है ।
हाल ही में सनातन संस्था के ठाणे जिले के एक साधक को एका महिला का दूरभाष आया । उन्होंने पूछा, ‘सनातन संस्था का कळवा (जिला ठाणे) में विद्यालय आरंभ हो रहा है, तो उसमें मुझे नौकरी मिल सकती है क्या ? आपका संपर्क क्रमांक मुझे राबोडी के एक हिन्दुत्वनिष्ठ द्वारा प्राप्त हुआ ।’
केवल सुन्दर दिखनेवाली रंगोलियोंकी अपेक्षा देवताओंके तत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां लाभदायक होती हैं । देवताओंकी उपासना हेतु तथा त्योहार, जन्मदिन आदि प्रसंगोंमें बनाई जानेवाली रंगोलियां इस लघुग्रन्थमें प्रस्तुत हैं ।
कर्म, भक्ति और ज्ञान के संगम गुरुकृपायोग की निर्मिति, चैतन्य का स्रोत बने गुरुकुल समान आश्रमों की निर्मिति, आध्यात्मिक प्रगति हेतु स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया, अब तक ११२ साधक संत बने तथा १ सहस्र ३२८ साधकों का संतपद की ओर मार्गक्रमण
‘२.११.२०२१ को ‘धनतेरस’ है । ‘धन’ अर्थात शुद्ध लक्ष्मी ! इस दिन मनुष्य के पोषण हेतु सहायता करनेवाले धन (संपत्ति) की पूजा की जाती है । सत्कार्य हेतु धन अर्पण करना, यही श्री लक्ष्मी की खरी पूजा है ।’
गोवत्स द्वादशी के दिन श्रीविष्णु की आपतत्त्वात्मक तरंगें कार्यरत होकर ब्रह्मांड में आती हैं । विष्णुलोक की ‘वासवदत्ता’ नामक कामधेनु इस दिन ब्रह्मांड तक इन तरंगों का वहन करने हेतु अविरत कार्य करती है ।
दीपावली के तीन दिनों पर अभ्यंगस्नान करते हैं । अभ्यंगस्नान के कारण रज-तम गुण एक लक्षांश अल्प होकर उसी मात्रा में सत्त्वगुण में वृद्धि होती है और उनका प्रभाव सदैव के स्नान की तुलना में अधिक होता है ।