१. महत्त्व
कालमेघ वनस्पति संक्रामक रोगों के लिए अत्यंत उपयुक्त है । यह बहुत ही कडवी होती है । इसका उपयोग ज्वर और कृमियों के लिए किया जाता है । यह सारक (पेट को साफ करनेवाली) होने से कुछ स्थानों पर वर्षा ऋतु में और उसके उपरांत आनेवाली शरद ऋतु में सप्ताह में एक बार इसका काढा पीने की प्रथा है । इससे शरीर स्वस्थ रहता है ।
२. परिचय
इसका लैटिन नाम Andrographis paniculata है । इस वनस्पति को कोंकण क्षेत्र में ‘किरायते’ कहते हैं । कोंकण के लोग इन वनस्पति से सुपरिचित हैं । वर्षा ऋतु के आरंभ में इसमें बहुत पत्ते होते हैं । (छायाचित्र १) इस वनस्पति की आयु ९० से १०० दिन होती है । वर्षा के उपरांत पानी देने से यह वनस्पति हरी-भरी बनी रहती है, अन्यथा सूख जाती है । कई बार कोंकण क्षेत्र के अनेक स्थानों पर यह वनस्पति सूखी हुई स्थिति में दिखाई देती है । उसे वर्षा ऋतु के अंत में छोटे टेंट आते हैं, जिसमें (छायाचित्र २) बीज होता है ।
३. रोपण
कोंकण क्षेत्र में यह वनस्पति अधिकांश लोगों के घर पर होती है । पहली वर्षा होने पर इन वनस्पतियों के पौधे पहले ही गिरे हुए बीजों से बडी संख्या में उगते हैं । इन तैयार पौधों को भी लाकर लगाया जा सकता है । वर्षा समाप्त होते समय जो बीज तैयार होते हैं, उन्हें एकत्रित कर रखने से दूसरे वर्ष की वर्षा के आरंभ के समय उनका रोपण कर उनसे भी पौधे तैयार किए जा सकते हैं । पानी की उपलब्धता हो, तो घर के गमलों में कभी भी इन बीजों का रोपण किया जा सकता है ।
४. विकारों में होनेवाले उपयोग
४ अ. ज्वर : ‘किसी भी प्रकार के ज्वर में एक मुट्ठी कालमेघ और पौन (एक चौथाई) चम्मच सूंठ का चूर्ण २ गिलास पानी में डालकर उसे उबालकर एक गिलास काढा बनाएं । यह काढा आधा-आधा गिलास सवेरे-सायंकाल लें । (कोरोना काल में कई वैद्यों द्वारा इस वनस्पति के आधार पर कोरोना पर सफल उपचार किए गए जाने के उदाहरण हैं ।)
४ आ. आम्लपित्त : सूखे हुए कालमेघ का चूर्ण बनाकर रखें । गले में अथवा छाती में जलन हो रही हो, तो आधा चम्मच कालमेघ का चूर्ण आधा चम्मच चीनी के साथ चबाकर खाएं ।
४ इ. कोष्ठबद्धता (कब्ज), पित्त एवं उष्णता : एक मुट्ठी कालमेघ एक गिलास पानी में उबालें । आधा गिलास शेष रहने पर यह काढा सवेरे खाली पेट लें । प्रत्येक शरद ऋतु में सप्ताह में एक बार यह काढा पिएं ।
४ ई. पेट में कृमि होना, त्वचा विकार एवं रक्तशुद्धि हेतु : निरंतर ७ दिन एक मुट्ठी कालमेघ का गिलासभर पानी में आधा गिलास काढा बनाकर उसे सवेरे खाली पेट लें ।
५. विशेष सूचना
यह वनस्पति वात को बढाती है, इसलिए जब ज्वर न हो और वैद्यों द्वारा बताए बिना उसका काढा प्रतिदिन नहीं लेना चाहिए । वैद्यों द्वारा बिना बताए इस वनस्पति का ७ दिनों से अधिक निरंतर उपयोग न करें ।
६. रोपण के लिए कालमेघ के बीज
इस पद्धति से एकत्रित कर रखिए ! वर्षा ऋतु के उपरांत सूखने की स्थिति तक पहुंचे हुए कालमेघ के पौधे को जड से उखाड लें । जड के पास का भाग काटकर अलग रखें । वनस्पति का ऊपरी भाग प्लास्टिक की थैली में डालकर दोनों हाथों में रखकर उसे मलें । ऐसा करने से वनस्पति के बीज थैली में जमा होंगे । इन बीजों को थाली में लेकर उस पर हल्की फूंक मारें, जिससे उसमें जमा पत्तों का कचरा हट जाएगा । इस प्रकार से इन कचरा रहित बीजों को एकत्रित कर उन्हें कागद की पुडिया में बांधकर प्लास्टिक की थैली में भरकर रखें । इसमें बीज एकत्रित कर बीजों को एकत्रित की गई दिनांक लिखकर रखें । इनमें से कुछ बीज रोपण हेतु बनाई गई क्यारियों अथवा गमलों में डालें । कुछ बीज अगली वर्षा ऋतु में रोपण के लिए संजोकर रखें । (चुटकीभर बीजों से भी बडी संख्या में पौधे उग आते हैं ।)
७. सूखी हुई वनस्पति को ठीक से संग्रहित कर रखिए !
बीज निकाली हुई कालमेघ वनस्पति और उसकी जडों को पानी में अलग-अलग धोकर उसके उपरांत उन्हें एकत्रित कर छाया में सुखाकर रखिए । इस सूखी हुई वनस्पति का उपयोग काढा बनाने तथा उसका चूर्ण बनाने के लिए होता है । घर पर ही चूर्ण बनाना हो, तो उसे मिक्सर में बनाया जा सकता है । मिक्सर में चूर्ण बनाने से पूर्व वनस्पति को कुछ समय तक धूप में सुखाएं, जिससे यह चूर्ण बहुत सहजता से बनता है । उसके उपरांत इस सूखी हुई वनस्पति अथवा उसके चूर्ण को प्लास्टिक की थैली में ठीक से बांधकर (पैक कर) रखिए । इस वनस्पति को बाहर की हवा न लगने पर ठीक से सुखाई गई वनस्पति का २ वर्षाें तक उपयोग किया जा सकता है ।
८. कालमेघ के बीज और सूखी हुई वनस्पति को स्थानीय स्तर पर बांट लीजिए !
जिन साधकों के पास यह वनस्पति उपलब्ध है, वे स्वयं के लिए आवश्यक वनस्पति अपने पास रखकर शेष वनस्पति अन्य साधकों को दे सकते हैं । साधक कालमेघ के बीज आपस में बांटकर घर पर ही उसका रोपण कर सकते हैं ।
(टिप्पणी – जिस प्रदेश में कालमेघ वनस्पति मिलती है, उसी प्रदेश में उसका रोपण करें । जहां यह वनस्पति प्राकृतिक रूप से नहीं मिलती, वहां इस वनस्पति का रोपण करने की आवश्यकता नहीं है । ऐसे क्षेत्रों में इस वनस्पति की भांति नीम के पत्तों का उपयोग किया जा सकता है ।)
-, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.११.२०२१)
सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियानसनातन का ‘घर-घर रोपण अभियान’ ईश्वरीय नियोजन ही है, इसकी साधिका को हुई अनुभूति कार्तिकी एकादशी से लेकर सनातन ने ‘घर-घर रोपण’ अभियान आरंभ किया है । इस अभियान के अंतर्गत सर्वत्र के साधकों को ‘प्राकृतिक कृषि’ तंत्र का महत्त्व विशद कर उसके अनुसार रोपण कैसे करना चाहिए, इसका मार्गदर्शन किया जा रहा है । १४.११.२०२१ को दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में इस विषय में विस्तृत लेख प्रकाशित किया गया था । उसके केवल ५ दिन उपरांत ही अर्थात २०.११.२०२१ के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में समाचार प्रकाशित हुआ कि मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए समिति का गठन किया जाएगा ।’ ‘ये दोनों घटनाएं केवल एक संयोग नहीं हैं, अपितु देश में कृषि के क्षेत्र में क्रांति आने के ईश्वरीय संकेत ही हैं’, यह विचार मन में आया । इस घटना के कारण संस्था द्वारा चलाया जा रहा ‘घर-घर रोपण’ अभियान ईश्वरीय नियोजन है, यह रेखांकित हुआ । काल के अनुरूप आवश्यक इस अभियान में सभी साधकों को सम्मिलित होने का अवसर देने के लिए श्रीगुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! |
घर में प्राकृतिक पद्धति से रोपण किस प्रकार करें, इस विषय में विस्तृत जानकारी हेतु निम्न लिंक देखें !https://www.sanatan.org/hindi/a/34832.html (सीधे इस लिंक पर जाने के लिए साथ में दिया ‘QR कोड’ (टिप्पणी) ‘स्कैन’ करें !) |