आपातकाल में सभी मनुष्य जीवित रहें; इसके लिए और सृष्टि के कल्याण हेतु क्रियाशील एकमेव द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

आपातकाल में रक्षा होने हेतु व्यक्ति स्वयं के बलबूते पर चाहे कितनी भी तैयारी कर ले, तब भी भूकंप, सुनामी जैसी महाभीषण आपदाओं से बचने हेतु संपूर्ण भार भगवान पर ही सौंपना पडता है । व्यक्ति ने साधना कर भगवान की कृपा पाई, तो वे किसी भी संकट में उसकी रक्षा करते ही हैं ।

आपातकाल की भीषणता के विषय में समय-समय पर सूचित कर उसके संदर्भ में उपाय निकालनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

भविष्यवेत्ता केवल भविष्यवाणी करते हैं, तो गुरु कृपावत्सल होते हैं । उसके कारण ही द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने आपातकाल की आहट पहचानकर साधकों को उस विषय में केवल सूचित ही नहीं किया, अपितु आनेवाले समय में साधकों को सुविधाजनक हो; इसके लिए प्रत्यक्ष उपाय भी आरंभ किए ।

साधकों की आपातकाल में रक्षा होने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर कार्यरत कृपावत्सल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘दुर्भाग्य का भयावतार’, ‘जिसे नरक कहते हैं, क्या वह यही है ?’, जैसे शीर्षकों द्वारा वर्तमान समाज की स्थिति कितनी भयावह है, यह समझ में आता है ।

विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि काल महिमा के अनुसार वह निश्चित ही होगा; परंतु इस कार्य में जो तन- मन-धन का त्याग करके सम्मिलित होगा, उसकी साधना होगी और वह जन्म मृत्यु के फेरे से मुक्त होगा !’

अल्प आयु में अत्यधिक प्रगल्भ विचारोंवाली फोंडा (गोवा) की ६६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. श्रिया राजंदेकर (आयु १० वर्ष) !

‘प्रत्येक को उनके कर्माें का फल और प्रारब्ध भोगकर कब प्रगति करनी है ?’, यह बात भगवान द्वारा निश्चित की गई है । हम उसमें कुछ नहीं कर सकते । हमें उनकी ओर साक्षीभाव से देखना होगा ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद ईश्वर की प्राप्ति कैसे करें, यह अध्यात्मशास्त्र बताता है । इसके विपरीत ‘ईश्वर हैं ही नहीं’, ऐसा कुछ विज्ञानवादी अर्थात बुद्धिप्रमाणवादी चीख-चीखकर कहते हैं !

विवाह समारोह में क्या नहीं करना चाहिए एवं विवाह समारोह कैसा होना चाहिए ?

पूर्वकाल में हिन्दुओं के विवाह समारोह धार्मिक रूप से संपन्न होते थे । वर-वधू को देवालय के चैतन्य का लाभ प्राप्त होने की दृष्टि से विवाहसंस्कार देवालय में करने की भी परंपरा थी । वर्तमान में हिन्दुओं को लगता है कि विवाह समारोह एक मौजमस्ती का कार्यक्रम है ।

नववर्षारंभ दिन का संदेश

हिन्दुओ, चैत्र प्रतिपदा इस ‘युगादि तिथि’ को नववर्ष के प्रारंभ के रूप में मान्यता मिलने के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक प्रयासों की पराकाष्ठा कीजिए और भारत में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित कीजिए !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

बुद्धिप्रमाणवादियों को यह अहंकार होता है, ‘मानव ने विभिन्न यंत्रों का आविष्कार किया ।’ उन्हें यह ध्यान में नहीं आता कि ईश्वर ने जीवाणु, पशु, पक्षी ७० से ८० वर्ष चलनेवाला एक यंत्र अर्थात मानव शरीर जैसी अरबों वस्तुएं बनाई हैं । क्या उनमें से एक भी वैज्ञानिक बना पाए हैं ?