कर्नाटक के बेंगलुरू में स्थित डॉ. विक्रम संपत एक लोकप्रिय इतिहासकार तथा लेखक हैं । वर्ष २०२१ में प्रसिद्ध ‘रॉयल हिस्टॉरिकल सोसाइटी’का ‘फेलो’के रूप में उनका चयन हुआ । इस सोसाइटी का ‘फेलो’ बनने का सम्मान इंग्लैंड में इतिहास के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देनेवाले तथा उच्च स्तर का शोधकार्य करनेवाले व्यक्तियों को दिया जाता है । उन्हें साहित्य एकादमी का पहला अंग्रेजी ‘युवा पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है । उनकी ‘माइ नेम इज गौहर जान : द लाईफ एंड टाइम्स ऑफ अ म्युजिशियन’ पुस्तक को न्यूयॉर्क के ‘ए.आर्.एस्.सी. इंटरनैशनल एवार्ड फॉर एक्सलंस इन हिस्टॉरिकल रिसर्च’ यह पुरस्कार मिला । यह पुस्तक का रूपांतरण लिलेट दुबे के ‘गौहर’ इस नाटक से किया गया है ।

विशेष स्तंभ
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज हेतु जिस प्रकार उनके सैनिकों एवं सेनापतियों का त्याग सर्वोच्च है, उस प्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक हिन्दू धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘सैनिक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । धर्मनिरपेक्षतावादी सरकरों, साथ ही प्रशासन एवं पुलिस के द्वारा होनेवाला उत्पीडन सहन करते हुए वे निस्वार्थ भावना से दिनरात संघर्ष कर रहे हैं । वर्तमान समय में राष्ट्रविरोधी शक्तियां धर्मनिरपेक्षतावादियों के समर्थन से बलवान होकर जहां हिन्दूविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं, वहां हमारे मन में ‘आगे जाकर हिन्दुओं का तथा इस राष्ट्र का क्या होगा ?’, इसकी चिंता होती है । ऐसी स्थिति में हमने यदि हिन्दुत्व के लिए तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु लडनेवाले इन सैनिकों के संघर्ष के उदाहरण पढे, तो निश्चित ही हमारे मन की चिंता दूर होकर उत्साह उत्पन्न होगा । इसीलिए हमने ऐसे सैनिकों की तथा हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु उनके संघर्ष की जानकारी करानेवाला ‘हिन्दुत्व के सैनिक’ स्तंभ आरंभ किया है । इस माध्यम से भारत में सुराज्य की स्थापना करने हेतु प्रयास करनेवालों की सभी को जानकारी मिलेगी तथा उस परिप्रेक्ष्य में कार्य करने की प्रेरणा भी मिलेगी ! – संपादक
१. डॉ. विक्रम संपत द्वारा किया गया शोधकार्य तथा उनके द्वारा स्थापन की गई संस्थाएं तथा अन्य जानकारी
वर्ष २०१५ में राष्ट्रपति भवन में के ‘निवासी लेखक’ (राईटर इन रेसिडेंस) इस परियोजना के लिए चयनित ४ लेखकों में डॉ. विक्रम संपत का समावेश था । उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के क्विंसलैंड विश्वविद्यालय से ‘इतिहास एवं संगीत’ इन विषयों में ‘डॉक्टरेट’की उपाधि प्राप्त की है । वे नई देहली के ‘नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी’ में वरिष्ठ शोध ‘फेलो’ थे । इसके साथ ही वे ‘एस्पेन ग्लोबल लिडरशिप नेटवर्क’, ‘इसनेहॉवर ग्लोबल फेलो’ (Eisenhower Global Fellow) तथा ‘Wissenschaftskolleg zu Berlin’ में भी ‘फेलो’ थे ।
* शिव के लिए प्रतीक्षा : वाराणसी की ‘ज्ञानवापी’का सत्यदर्शन*
वर्ष २०२४ में ‘Waiting for Shiva : Unearthing the Truth of Kashi’s Gyanvapi’ यह उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई । वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन् ने ‘प्रधानमंत्री संग्रहालय तथा ग्रंथालय सभागार’ में इसका विमोचन किया । यह पुस्तक इतिहास, धर्म, पुरातत्व एवं कानून इनके दृष्टिकोण से हिन्दुओं द्वारा किए गए पुनर्संपादन के प्रयासों का विश्लेषण करती है । डॉ. संपत ने हिन्दुओं की शिवजी के प्रति भक्ति की तुलना मंदिर में ‘नंदीजी शिवजी के दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं’, इसके साथ की है । इस प्रकार वे भारत का गौरवशाली इतिहास लोगों के सामने ले आए ।
वर्तमान में वे ऑस्ट्रेलिया के ‘मोनाश विश्वविद्यालय में ‘एडजेंट सिनियर फेलो’ हैं । उन्होंने ‘आर्काइव ऑफ इंडियन म्युजिक’ तथा ‘फाऊंडेशन फॉर इंडियन हिस्टॉरिकल एंड कल्चर रिसर्च’ इन संस्थाओं की स्थापना की है, जो भारतीय इतिहास का नए सिरे से अध्ययन तथा शोध करते हैं । इसके साथ ही उन्होंने ‘अर्थ : ए कल्चर फेस्ट’ इस महोत्सव का आयोजन भी किया है । वे ‘बेंगलुरू साहित्य महोत्सव’ के संस्थापक भी हैं ।
२. डॉ. विक्रम संपत का महत्त्वपूर्ण लेखन
अ. डॉ. विक्रम संपत की प्रमुख पुस्तकें : ‘Splendours of Royal Mysore : The Untold Story of the Wodeyars’, ‘Voice of the Veena : S. Balachander’, ‘Women of the Records’, ‘Indian Classical Music and the Gramophone’. इनके दो भागों की ‘Savarkar : Echoes from a Forgotten Past’ आणि ‘Savarkar: A Contested Legacy’, साथ ही हाल ही की Bravehearts of Bharat: Vignettes from Indian History’ तथा ‘Waiting for Shiva : Unearthing the Truth of Kashi’s Gyanvapi’ ये पूरे देश में सबसे अधिक बिकी उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं ।
आ. गौहर जान का जीवनचरित्र लिखनेवाले तथा भारतीय परंपरा के रक्षक डॉ. विक्रम संपत : वर्ष २०१२ में डॉ. विक्रम संपत ने भारत की ‘पहली शास्त्रीय गायिका’ एवं ‘ग्रामोफोन रेकॉर्डिंग’ करनेवाली ‘पहली महिला गायिका’ गौहर जान का जीवनचरित्र प्रकाशित किया ।
डॉ. विक्रम संपत केवल इतिहासकार ही नहीं हैं, अपितु वे भारतीय परंपराओं के रक्षक भी हैं । उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं परंपरा के संबंध में अनेक लेख लिखे हैं । ‘My Name is Gauhar Jaan !’ इस पुस्तक में उन्होंने गौहर जान के जीवनसहित भारतीय संगीत की परंपरा को पुनर्जिवित करने की आवश्यकता’ प्रतिपादित की है । ‘Voice of the Veena : S. Balachander – A Biography’ इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने शास्त्रीय संगीत तथा वीणा वादन की परंपराओं के प्रति सांस्कृतिक आदर बढाया है । भारतीय कला, संगीत एवं परंपरा की रक्षा हेतु उन्होंने सांस्कृतिक चेतना बढाने तथा अध्ययन को प्रोत्साहन दिया है ।
इ. डिजिटल संगीत संग्रह : ‘गौहर जान’ इस पुस्तक के संबंध में शोधकार्य करते समय डॉ. संपत ने प्राचीन ग्रामोफोन रेकॉर्ड्स का डिजिटलाइजेशन करने हेतु तथा उसे जनता के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराने हेतु ‘मणिपाल विश्वविद्यालय’ के साथ मिलकर एक निजी तथा लाभांशरहित संस्था की स्थापना की । डॉ. संपत ने इस संग्रह को वर्ष २०१५ में ‘इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स’ संस्था को दान किया । वर्ष २०१३ से यह संग्रह ‘साऊंडक्लाऊड’ इस जालस्थल पर निःशुल्क उपलब्ध है । वर्ष २०२१ तक १५,००० रेकॉर्ड्स में से ७,००० रेकॉर्ड्स का डिजिटलाइजेशन पूरा हुआ है ।

३. राष्ट्र एवं हिन्दू धर्म के लिए योगदान
डॉ. विक्रम संपत भारत के प्रमुख इतिहासकार, लेखक तथा शोधकर्ता के रूप में देश का राष्ट्रीयत्व तथा हिन्दू परंपराओं के लिए अद्वितीय एवं असाधारण योगदान दे रहे हैं । इतिहास का निष्पक्षता से अध्ययन करना तथा लोगों के सामने इतिहास का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करना, साथ ही हिन्दू राजाओं के पराक्रम का सच्चा इतिहास बताना उनका प्रमुख कार्य है ।
४. वीर सावरकर का ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन
विक्रम संपत ने ‘Savarkar: Echoes from a Forgotten Past (1883-1924)’ तथा ‘Savarkar : A Contested Legacy (1924-1966)’ ये दो ग्रंथ लिखे हैं । इन ग्रंथों में वीर सावरकर का हिन्दुत्व, सिद्धांत, स्वतंत्रता संग्राम एवं सामाजिक समानता के कार्य का गहन अध्ययन है । ‘पाश्चात्त्य इतिहासकारों ने सावरकर के ‘हिन्दुत्व’ के सिद्धांत का गलत अर्थ निकाला है ।’, यह मत रखकर स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर के योगदान का वास्तविक अर्थ लोगों तक पहुंचाने का महान कार्य डॉ. संपत ने किया है ।
५. इतिहास का वास्तविक अर्थ लोगों तक पहुंचाने का कार्य
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात साम्यवादी विचारधारावाले कुछ इतिहासकारों ने देश का वास्तविक इतिहास बदलने का प्रयास किया था । डॉ. विक्रम संपत ने इतिहास की इस विकृति को सुधारने का महान कार्य किया है । उदाहरणार्थ साम्यवादी विचारधारावाले इतिहासकारों ने टिपू सुल्तान को ‘धर्मसहिष्णू, मंदिरों की सहायता करनेवाला, आदर्श राजा, मैसूर का शेर तथा भारत का स्वतंत्रता संग्राम लडनेवाला’ बोलकर उसका महिमामंडन कर झूठा इतिहास लिखने का प्रयास किया; परंतु डॉ. संपत ने टिपू सुल्तान का वास्तविक इतिहास तथा उसके द्वारा विध्वंस किए गए मंदिरों की जानकारी देखर वास्तविक इतिहास लोगों के सामने रखने का प्रयास किया है ।
‘भारत का इतिहास की ओर बिना किसी अंधविश्वास से, सत्य पर आधारित तथा भारतीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए’, इन विचारों को उनके लेखन से प्रेरणा मिली है । इसके कारण इतिहास की ओर पाश्चात्त्य अथवा साम्यवादी दृष्टिकोण से न देखकर भारतीय परंपरा तथा वास्तविक ऐतिहासिक जानकारी लोगों तक पहुंचने में सहायता मिली है ।
भारत के पराक्रम से युक्त शौर्य का इतिहास पूरे विश्व के सामने उजागर करनेवाले डॉ. विक्रम संपत !

डॉ. विक्रम संपत ने भारतीय राष्ट्रप्रेम, हिन्दुत्व तथा सांस्कृतिक परंपरा के पुनरावलोकन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । सावरकर पर आधारित अध्ययन से ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’की संकल्पना को प्रोत्साहन मिला । टिपू सुल्तान के वास्तविक अध्ययन से ‘इतिहास के शुद्धिकरण’ का प्रयास हुआ । सांस्कृतिक एवं संगीत की परंपरा के अध्ययन से ‘भारतीय कला के प्रति सम्मान’ बढाने का कार्य हुआ । पाश्चात्त्य एवं साम्यवादी विचारधारा के कारण इतिहास में हुई चूकों के विरुद्ध उन्होंने जोरदार वादविवाद, साथ ही खंडन कर हिन्दू धर्म के संवर्धन का विचार किया । उसके कारण डॉ. विक्रम संपत राष्ट्र एवं हिन्दू धर्म के लिए अतुलनीय योगदान देनेवाले महत्त्वपूर्ण इतिहासकार हैं ।
उन्होंने आधुनिक काल में अत्यंत प्रामाणिकता के साथ भारत का गौरवशाली इतिहास लिखा तथा पूरे विश्व के सामने भारत के पराक्रम से युक्त शौर्य का इतिहास उजागर किया, जिसके कारण देश का इतिहास यथावत पद्धति से अगली पीढी तक पहुंचाने का महान कार्य हो रहा है । इस माध्यम से उन्होंने भारत के इतिहास को नवचैतन्य प्रदान किया है । इसके लिए प्रत्येक भारतीय को डॉ. विक्रम संपत द्वारा लिखे पुस्तकों का अध्ययन करना तथा सरकार के द्वारा उसे विद्यालयीन पाठ्यक्रम में अंतर्भूत करना समय की मांग है ।
६. पाश्चात्त्य एवं साम्यवादी विचारधारावाली संकल्पनाओं के विरुद्ध युक्तिवाद
पाश्चात्त्य इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को उनके दृष्टिकोण से रखा है; इसके कारण डॉ. विक्रम संपत ने उनकी असत्य भूमिका पर प्रश्नचिन्ह खडा कर भारतीय परंपराओं के पुनरावलोकन का आग्रह रखा । उन्होंने हैदराबाद के निजाम एवं ब्रिटिश प्रशासन के संबंध में भी गहन अध्ययन किया है, जिसके कारण भारतीयों का शोषण तथा हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का पुनर्मूल्यांकन हुआ है । इसके कारण भारतीय परंपरा के महत्त्वपूर्ण अध्ययन के लिए तथा सच्ची ऐतिहासिक जानकारी मिलने हेतु आवश्यक नए विचारों को प्रेरणा मिली है ।
७. ‘बौल’ समुदाय पर आधारित चित्रकथा
वर्ष २०२२ में डॉ. संपत ने संगीतकार रिकी केज तथा शोधकर्ता राजीव शर्मा के साथ बंगाल की विस्मृत ‘बौल’ परंपरा पर आधारित ‘Who is Baul ?’, इस छोटी फिल्म की निर्मिति की । इसका निर्देशन साईराम सागीराजू ने किया था ।
८. भारत के वीर योद्धा
वर्ष २०२२ में प्रकाशित संपत के ‘Bravehearts of Bharat: Vignettes from Indian History’ इस पुस्तक में उन्होंने विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध सफलतापूर्ण लडाई लडनेवाले १५ पुरुष वीरों तथा महिला वीरांगनाओं के शौर्य का इतिहास विशद किया है । अब तक भारत के इतिहास में उनकी पहचान छिपाई गई थी । ‘अज्ञात संस्कृति के योद्धा’ इस संकल्पना से चयनित १५ व्यक्तियों के जीवनचरित्रों का यह संग्रह है । इस माध्यम से उन्होंने समाज के सामने सच्चा इतिहास रखने का प्रयास किया है ।