‘राजयोगी (शाही) स्नान’ के अवसर पर निकलनेवाली साधुओं की सशस्त्र शोभायात्रा तथा श्रद्धालुओं की असीम भक्ति का दर्शन !

राजयोगी (शाही) स्नान के निमित्त निकलनेवाली साधु-सन्तों की शाही शोभयात्रा तो जैसे तप, ज्ञान, वैराग्य इत्यादि दैवी गुणों की ही शोभायात्रा है !

१. पर्वकाल में अखाडे के साधुओं का राजयोगी (शाही) स्नान

कुम्भ मेले में पर्व के दिन विविध अखाडों के साधु-सन्तों द्वारा निश्चित किए गए क्रमानुसार अपने अखाडे के सन्त तथा शिष्यों के साथ किए जानेवाले स्नान को ‘राजयोगी (शाही) स्नान’ कहते हैं ।

२.‘राजयोगी (शाही) स्नान’ के लिए निकलनेवाली अखाडे के साधु-सन्तों की सशस्त्र शोभायात्रा !

प्रातः लगभग चार बजे से कुम्भ मेले का ‘राजयोगी स्नान’ प्रारम्भ होता है । ‘राजयोगी (शाही) स्नान’ के लिए जाने हेतु अखाडे के साधु-सन्तों की सशस्त्र शोभायात्रा निकलती है, उस समय मार्ग के दोनों ओर विशाल जनसमुदाय एकत्रित होता है । स्थानीय श्रद्धालु शोभायात्रा से पूर्व मार्ग को रंगोलियों तथा पुष्पों की पंखुडियों से सजाते हैं । तत्पश्चात इस मार्ग से एक-एक अखाडा, अपने सन्त-महन्त एवं शिष्य, हाथी, ऊंट, घोडे ऐसे परिवारसहित ठाठ से तथा वाद्यों की धुन पर पवित्र तीर्थ की ओर जाते हैं । कुछ स्वामी हाथी पर, तो कुछ ट्रैक्टर-ट्रॉली के बनाए गए रथ पर विराजमान होते हैं । उनके अनुयायी उनके मस्तक पर छत्र पकडकर चलते हैं तथा श्रद्धालु उनपर पुष्प की वर्षा करते हैं । इस समय ढोल, ताशे, नगाडे इत्यादि वाद्यों के नाद तथा ‘हर हर शंकर, गौरी शंकर, हर हर महादेव ।’ एवं ‘जय गंगामैया की जय ।’ जयकारे गूंजते हैं । शरीर पर भस्म लगाए सहस्रों नग्न साधु गले में पुष्पों की मालाएं, हाथों में दमकती तलवारें अथवा अन्य शस्त्र तथा ध्वज पताकाएं लेते हैं । शरीर पर भस्म लगाने के कारण अमानवीय आकृति प्रतीत होते सहस्रों से अधिक नागा साधु ‘हर हर महादेऽऽव’, ‘हर हर गंगेऽऽ’, ऐसा जयघोष करते हैं, उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि हम कोई सजीव चित्र देख रहे हैं ।

३.‘राजयोगी (शाही) स्नान’ के पश्चात निकलनेवाली शोभायात्रा का पारम्परिक स्वागत !

‘राजयोगी स्नान’ के उपरान्त साधु-सन्तों की शोभायात्रा परिसर के देवालयों के दर्शन करते हुए अपने-अपने अखाडों में लौटती है । इस समय श्रद्धालु मार्ग के दोनों ओर खडे होकर ध्वज-कमान बनाकर साधु-सन्तों का पारम्परिक पद्धति से स्वागत कर उनके दर्शन करते हैं । ‘राजयोगी स्नान’ के पश्चात साधु-सन्तों का स्वागत करने की यह परम्परा गत अनेक वर्षाें से चली आ रही है ।