‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी हैं । जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से सप्तर्षि जो मार्गदर्शन कर रहे हैं, उसके अनुसार वे भारत के विभिन्न तीर्थस्थानों पर जाकर ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना हेतु प्रार्थना एवं यज्ञ-यागादि धार्मिक अनुष्ठान करती हैं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने गुरुकृपायोग के अनुसार साधना कर तीव्र गति से अपनी आध्यात्मिक उन्नति साध्य की । इस लेख में उनकी जन्मकुंडली में विद्यमान आध्यात्मिक विशेषताओं का ज्योतिषशास्त्रीय विश्लेषण किया गया है ।
१. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का व्यक्तित्व दर्शानेवाले घटक
१ अ. लग्नराशि (कुंडली में स्थित प्रथम स्थान की राशि) : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली के प्रथम स्थान में ‘कन्या’ राशि विद्यमान है । जब ऐसा होता है, तब उस व्यक्ति में समझदारी, वैचारिक परिपक्वता, विवेक, जिज्ञासा, सेवाभाव तथा माया से अलिप्तता, ये विशेषताएं होती हैं । कन्या राशि सत्त्वगुणी राशि होने से उससे व्यक्ति के चित्त पर जन्म से ही सात्त्विक संस्कार होते हैं ।
१ आ. जन्मराशि (कुंडली में स्थित चंद्रमा की राशि) : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली में चंद्रमा ‘वृषभ’ राशि में विद्यमान है । वृषभ राशि का चंद्रमा सहजता, निर्मलता, अन्यों से निकटता बनाने की कला, प्रेमभाव, सौंदर्य, कलानिपुणता तथा निसर्गप्रियता (प्रकृति-प्रेम) आदि विशेषताएं देता है । वृषभ राशि के लोग स्वयं आनंदित रहते हैं तथा अन्यों को भी आनंद देते हैं ।
२. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की जन्मकुंडली में दिखाई देनेवाली विशेषताएं
२ अ. कलानिपुणता प्रदान करनेवाले ‘स्वाति’ नक्षत्र के शुक्र : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली में शुक्र ग्रह ‘स्वाती’ नक्षत्र में है । शुक्र ग्रह कला, सौंदर्य एवं प्रेम-भाव से संबंधित है, जबकि ‘स्वाती’ नक्षत्र सुलक्षणा एवं सात्त्विक नक्षत्र है । यह योग कला में निपुणता प्रदान करता है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी बचपन में रंगोली, अक्षरलेखन, चित्रकला, भाषण, खेल, संगीत जैसे अनेक क्षेत्रों में अग्रणी थीं । बडी होकर सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना करते समय उन्होंने मान्यवरों से उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण भेंटवार्ता करना, भेंटवार्ता में अभंग जैसे पदों की रचना कर सभी को भावविभोर कर देना, साधना से संबंधित कार्यक्रमों का परिपूर्ण आयोजन करना, तीर्थस्थानों से लाई गई दुर्लभ वस्तुओं की आकर्षक प्रदर्शनी लगाना इत्यादि कलाओं से संबंधित सेवाएं कीं ।
२ आ. उनमें जन्म से ही प्रेमभाव होना : ‘प्रेमभाव’ श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का स्थायी भाव है । उनकी कुंडली में ‘गुरु’ एवं ‘शुक्र’ ग्रहों का योग है । यह योग उन्हें जन्म से ही प्रेमभाव की देन प्राप्त होने का दर्शक है । सामनेवाले व्यक्ति को ‘अधिक से अधिक प्रेम कैसे दिया जाए’, इसके लिए वे परिश्रम करती हैं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जब आध्यात्मिक यात्रा पर होती हैं, उस समय उनका निवास स्थानीय साधकों के घर पर होता है । उस अवधि में वे साधकों के परिजनों से समरस हो जाती हैं । किसी साधक के घर की परिस्थिति अच्छी न हो, तो उनके घर जाते समय वे दूध, सब्जी इत्यादि लेकर जाती हैं । सवेरे का कोई भोजन शेष रहा हो, तो पहले उसे परोसने के लिए कहती हैं । रात सोने से पूर्व वे परिवार के सभी सदस्यों के साथ अपनेपन से बातें करती हैं । उसके कारण दूसरे दिन उनसे विदा लेते समय उस परिवार के सदस्यों की आंखें नम हो जाती हैं । इस विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी कहती हैं, ‘हमें अन्यों के लिए अपने को समर्पित करना होता है । मैं उन्हें केवल प्रेम देती हूं, जिसका उन्हें पूरा जीवन स्मरण रहता है ।’
२ आ १. अन्यों से निकटता बनाने की कला : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी किसी अपरिचित व्यक्ति को भी बडी सहजता से अपना बना लेती हैं । एक बार उनके संपर्क में आया व्यक्ति स्थायी रूप से उनसे जुड जाता है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने अपने प्रेमभाव के कारण समाज के अनेक संतों को जोडकर रखा है । वे समय-समय पर संतों का तथा उनके परिजनों का कुशल पूछती हैं । प्रेमभाव के कारण श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बहुत बडा आध्यात्मिक जनसंग्रह बनाया है ।
२ इ. गुरुदेवजी के प्रति उत्कट भाव : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली में ‘बृहस्पति’ एवं ‘शुक्र’ ग्रहों का योग जन्म से ही गुरु के प्रति भाव दर्शाता है । वर्ष २०१३ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने कहा था, ‘पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तो भाव का सगुण रूप हैं !’ श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की आंखों से गुरुदेवजी के प्रति के उत्कट भाव के दर्शन होते हैं । ‘प्रत्येक कृति गुरुदेवजी को अपेक्षित ही होनी चाहिए’, यह उनका निदिध्यास होता है । वे अपनी भावपूर्ण वाणी से सभी को भावविभोर कर देती हैं । नाडी-पट्टिका के माध्यम से महर्षि उनकी बहुत प्रशंसा करते हैं । वे बार-बार कहते हैं, ‘‘तुम हमारी पुत्री हो । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने तुम्हें हमारे पास भेजा है । तुमसे एक भी चूक नहीं होती ।’ उनकी इतनी प्रशंसा होती है; परंतु तब भी उन्हें नहीं लगता कि ‘मैं कोई विशेष हूं ।’
२ ई. पूर्णकालीन साधना हेतु माया का त्याग करना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली के आठवें स्थान में शनि ग्रह तथा बारहवें स्थान में केतु ग्रह है । यह एक ‘संन्यासयोग’ है । यह योग वैराग्य एवं त्याग दर्शाता है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा उनके पति सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी, ये दोनों उच्च शिक्षित होते हुए भी युवावस्था में ही उन्होंने पूर्णकालीन साधना का निर्णय लिया । उस समय उनकी पुत्री कु. सायली (वर्तमान में श्रीमती सायली सिद्धेश करंदीकर) केवल ५ वर्ष की थी । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी का एक-दूसरे से आध्यात्मिक स्तर का संबंध है । दोनों के मन में भी एक-दूसरे के प्रति आदर भाव है ।
कृतज्ञता
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की जन्मकुंडली का विश्लेषण करने का अवसर मिला, इसके लिए कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– श्री. यशवंत कणगलेकर (ज्योतिष विशारद) एवं श्री. राज कर्वे (ज्योतिष विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की अलौकिक विशेषताएं
१. संगीत के माध्यम से साधना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘संगीत विशारद’ हैं । संगीत ईश्वरप्राप्ति का एक साधन है । आजकल अधिकांश कलाकार उनकी कला का उपयोग धन एवं प्रसिद्धि अर्जित करने हेतु करते हैं । वर्ष २००१ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के बताए अनुसार संगीत के माध्यम से साधना आरंभ की । गुरुकृपा से उन्हें संगीत के विषय में बहुत ही आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ । उन्होंने संगीत में विद्यमान चैतन्य अर्थात ईश्वरीय तत्त्व की अनुभूति ली । ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने संगीत के विभिन्न रागों के संबंध में प्रयोग कर स्वयं उनका अनुभव किया, उदा. मल्हार राग गाते समय मुंह में लार आना, दीप राग के स्वर गाते समय ठंड के दिनों में भी गर्मी का अनुभव होना इत्यादि । केवल इतना ही नहीं, अपितु उन्हें विभिन्न गंधर्व, किन्नर तथा स्वर-देवताओं के भी दर्शन हुए हैं ।’ – सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.
२. अहं-निर्मूलन हेतु लगन से प्रयास कर आदर्श स्थापित करना
इस संदर्भ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी कहती हैं, ‘आरंभ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मेरा अहं सर्वसामान्य व्यक्ति के जितना अर्थात ३० प्रतिशत है, ऐसा बताया । अहं अल्प होने हेतु उन्होंने मुझे रसोईघर में सेवा करने के लिए कहा । मैंने तत्परता से यह परिवर्तन स्वीकार कर लिया । ‘हमें जो बताया जाता है, उसका आज्ञापालन हम अच्छे से कैसे कर सकते हैं’, इसकी ओर मैंने ध्यान दिया । सेवा में मुझसे होनेवाली चूकें मैं अन्य साधकों को बताती थी । मैंने प्रत्येक साधक को ‘मैं आपसे और कैसे सीख सकती हूं ? साधना में आप मेरी सहायता करें’, ऐसा बोलकर प्रयास किए । ये प्रयास करते समय अहं अल्प करने हेतु मुझे रसोईघर में भेजा गया है, मैं यही भूल गई थी । ‘ईश्वरप्राप्ति’ के मूल ध्येय का भान होने से ही आनंद मिलता गया । २ महीने उपरांत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मेरा अहं १० प्रतिशत होने की बात कही ।’
वर्ष २००३ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने ‘अहं-निर्मूलन के लिए साधना’ नामक ग्रंथ का संकलन किया ।
३. गुरुकृपा से अद्वितीय सूक्ष्म ज्ञान की प्राप्ति होना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कुंडली में ‘बृहस्पति’ एवं ‘नेपच्यून’ का योग है, साथ में उनके सामने चंद्रमा हैं । यह योग ‘अंतःस्फूर्ति एवं सूक्ष्म ज्ञान की प्राप्ति’ के परिणाम दर्शाता है । गुरुकृपा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को वर्ष २००३ से सूक्ष्म का ज्ञान मिलने लगा । किसी भी विषय में पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों को वे तुरंत संगणक पर टंकण करती थीं । यह एक अभूतपूर्व घटना थी । यह ज्ञान पृथ्वी के अन्य किसी भी ग्रंथ में उपलब्ध नहीं है । १२ वर्ष तक ज्ञानप्राप्ति की सेवा कर उसके द्वारा उन्होंने संपूर्ण मानवजाति को एक अनमोल ज्ञानभंडार उपलब्ध कराया ।
४. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का आध्यात्मिक भ्रमण
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की ज्ञानप्राप्ति की साधना का चरण पूर्ण होने के उपरांत वर्ष २०१२ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने उन्हें अध्यात्मप्रसार हेतु भ्रमण करने के लिए कहा । इस अवधि में उन्होंने अनेक सुविख्यात वैज्ञानिकों से मिलकर ‘आध्यात्मिक कारणों से वस्तु एवं व्यक्ति में आनेवाले सकारात्मक एवं नकारात्मक परिवर्तन’ के विषय पर बातें कीं, साथ ही उन्होंने अध्यात्म के अनेक अधिकारी संतों से मिलकर उन्हें अपना बनाया । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थानों में जाकर उस तीर्थस्थानों की जानकारी प्राप्त करना, चित्रीकरण करना, जतन करनेयोग्य वहां की दुर्लभ वस्तुएं प्राप्त करना, वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा आध्यात्मिक शोध आदि कार्य किया ।
५. सप्तर्षि की आज्ञा के अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का दैवी भ्रमण जारी !
वर्ष २०१४ से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का दैवी भ्रमण जारी है । इसे ‘दैवी भ्रमण’ कहने का कारण यह है कि जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से प्रत्यक्ष सप्तर्षि ही इस भ्रमण का संचालन कर रहे हैं । सप्तर्षि की आज्ञा के अनुसार रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत एवं पुराणों में जिन-जिन प्रमुख स्थानों का उल्लेख आता है, उनमें से अधिकांश तीर्थस्थानों पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी गई हैं । उनकी कुंडली के तृतीय (यात्रा) स्थान में रवि, बृहस्पति एवं नेपच्यून ग्रह हैं, साथ ही नवम (भाग्य) स्थान में चंद्रमा है । ये योग तीर्थस्थानों का भ्रमण करवाते हैं ।
तीर्थस्थानों पर जाकर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना हेतु प्रार्थना, यज्ञ, अनुष्ठान एवं पूजा-अर्चना करती हैं । उसके कारण ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना के कार्य में बाधा बनी सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों का बल क्षीण हो रहा है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जिन-जिन स्थानों पर जाती हैं, उनके चरणस्पर्श से उन स्थानों की शुद्धि होती है ।
६. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ जागृत होना
सप्तर्षि ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ विद्यमान होने की बात कही है । उनकी कुंडली में स्थित शुक्र, बृहस्पति एवं नेपच्यून ग्रहों के योग ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ के दर्शक हैं । काल के अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ जागृत हुआ है ।
सप्तर्षि ने नाडी-पट्टिका में लिखा है, ‘‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, ये तीनों अवतारी गुरु हैं तथा वे ‘धर्मसंस्थापना’ करनेवाले हैं ।’’ (सभी सूत्रों की तिथि ५.५.२०२३)
– श्री. यशवंत कणगलेकर एवं श्री. राज कर्वे