Navaratri : घटस्थापना

घटस्थापना का अर्थ है नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।

Navaratri : हिन्दुओं का प्रमुख पर्व नवरात्रोत्सव

नवरात्रि के नौ रात्रियों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है ।

शारदीय नवरात्रि : धर्मशिक्षा

पूरे भारत में अत्यंत उत्साह एवं भक्तिमय वातावरण में नवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है । माता जगदंबा की कृपा पाने हेतु श्रद्धापूर्वक उपवासादि आराधना की जाती है ।

देवी की मूर्ति पर कुमकुमार्चन कैसे करें ?

देवी को कुमकुमार्चन करने की दो पद्धतियां, कुमकुमार्चन करने से होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाले चित्र आदि का उल्लेख इस लेख में किया गया है । सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी लाभ दर्शानेवाले चित्रों के कारण यह विषय पाठकों के लिए समझना सुलभ होगा ।

नवरात्रीके विविध विधी

जगत्‌का पालन करनेवाली जगत्पालिनी, जगदोद्धारिणी मां शक्तिकी उपासना हिंदु धर्ममें वर्ष में दो बार नवरात्रिके रूपमें, विशेष रूपसे की जाती है ।

श्री दुर्गादेवीतत्त्व आकर्षित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां

विशेषकर मंगलवार एवं शुक्रवारके दिन देवीपूजनसे पूर्व तथा नवरात्रिकी कालावधिमें घर अथवा देवालयोंमें देवीतत्त्व आकृष्ट  एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाएं । आगे श्री दुर्गादेवीतत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली कुछ रंगोलियां दी हैं ।

नवरात्रिकी कालावधिमें उपवास करनेका महत्त्व

उपवास करनेसे व्यक्तिके देहमें रज-तमकी मात्रा घटती है और देहकी सात्त्विकतामें वृद्धि होती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण में कार्यरत शक्तितत्त्वको अधिक मात्रामें ग्रहण करनेके लिए सक्षम बनता है ।

देवी की मूर्ति गिरने पर तथा भग्न होने पर क्या करें ?

‘मूर्ति नीचे गिर गई; परंतु भग्न नहीं हुई, तो प्रायश्‍चित नहीं लेना पडता । ऐसे में केवल उस देवता की क्षमा मांगें तथा तिलहोम, पंचामृत पूजा, दुग्धाभिषेक इत्यादि विधि अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति के मार्गदर्शन में करें ।

नवरात्रिमें आधुनिक गरबा : संस्कृतिका जतन नहीं; बल्कि पतन !

हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनाने के धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारण को भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं ।

नवरात्रि : बाजारीकरण एवं संभाव्य धोखे !

हिन्दुओं के उत्सवों में आजकल अपप्रवृत्तियों ने प्रवेश कर लिया है । उत्सवों का बाजारीकरण होने से हिन्दू उत्सव मनाने का मूल उद्देश्य एवं उसका मूल शास्त्र भूल रहे हैं । हिन्दुओं की भावी पीढी तो उत्सवों में जो अपप्रवृत्तियां प्रवेश हो गईं हैं, उन्हें ही उत्सव समझने लगी हैं । यह स्थिति अत्यंत बिकट है ।