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१. नवरात्रिकी कालावधिमें उपासना करनेके लाभ
१. नवरात्रिकी कालावधिमें व्यष्टि अर्थात व्यक्तिगत स्तरपर व्रतके रूपमें उपासना करनेसे व्यक्तिको २० प्रतिशत लाभ होता है । तथा
२. सामूहिक स्तरपर अर्थात समष्टि स्तरपर उत्सवके रूपमें उपासना करनेसे व्यक्तिको ३० प्रतिशत लाभ होता है ।
३. केवल उपासनाके कृत्यके स्तरपर निपटानेकी दृष्टिसे व्रत करनेसे व्यक्तिको १० प्रतिशत लाभ होता है ।
४. लगन एवं भावसहित उपासना करनेसे ४० प्रतिशत लाभ होता है । नवरात्रिके प्रथम दिन घटकी स्थापना की जाती है । कुछ परिवारों में घटस्थापनाके साथ मालाबंधन भी करते हैं ।
२. नवरात्रिकी कालावधिमें उपवास करनेका महत्त्व
नवरात्रिके नौ दिनोंमें अधिकांश उपासक उपवास करते हैं । किसी कारण नौ दिन उपवास करना संभव न हो, तो प्रथम दिन एवं अष्टमीके दिन उपवास अवश्य करते हैं । उपवास करनेसे व्यक्तिके देहमें रज-तमकी मात्रा घटती है और देहकी सात्त्विकतामें वृद्धि होती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण में कार्यरत शक्तितत्त्वको अधिक मात्रामें ग्रहण करनेके लिए सक्षम बनता है ।
नवरात्रिमें प्रत्येक दिन उपासक भोजनमें विविध व्यंजन बनाकर देवीको नैवेद्य अर्पित करते हैं । बंगाल प्रांतमें प्रसादके रूपमें चावल एवं मूंगकी दालकी खिचडीका विशेष महत्त्व है । मीठे व्यंजन भी बनाए जाते हैं । इनमें विभिन्न प्रकारका शिरा, खीर-पूरी इत्यादिका समावेश होता है । महाराष्ट्रमें चनेकी दाल पकाकर उसे पीसकर उसमें गुड मिलाया जाता है । इसे `पूरण’ कहते हैं। इस पूरणको भरकर मीठी रोटियां विशेष रूपसे बनाई जाती हैं । चावलके साथ खानेके लिए अरहर अर्थात तुवरकी दाल भी बनाते हैं ।
नवरात्रिमें देवीको अर्पित नैवेद्यमें पुरणकी मीठी रोटी एवं अरहर अर्थात तुवरकी दालके समावेशका कारण चनेकी दाल एवं गुडका मिश्रण भरकर बनाई गई मीठी रोटी एवं तुवरकी दाल, इन दो व्यंजनोंमें विद्यमान रजोगुणमें ब्रह्मांडमें विद्यमान शक्तिरूपी तेज-तरंगें अल्पावधिमें आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है । इससे ये व्यंजन देवीतत्त्वसे संचारित होते हैं । इस नैवेद्यको प्रसादके रूपमें ग्रहण करनेसे व्यक्तिको शक्तिरूपी तेज-तरंगोंका लाभ मिलता है और उसके स्थूल एवं सूक्ष्म देहोंकी शुद्धि होती है ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार धार्मिक उत्सव एवं व्रत’