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देवी को कुमकुमार्चन करने की दो पद्धतियां, कुमकुमार्चन करने से होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाले चित्र आदि का उल्लेख इस लेख में किया गया है । सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी लाभ दर्शानेवाले चित्रों के कारण यह विषय पाठकों के लिए समझना सुलभ होगा ।
१. पद्धतियां
१ अ. पद्धति १
‘देवी का नामजप करते हुए एक चुटकी भर कुमकुम (रोली), देवी के चरणों से आरंभ कर देवी के सिरतक चढाएं अथवा देवी का नामजप करते हुए उन्हें कुमकुम से आच्छादित करें ।’
– ब्रह्मतत्त्व (श्रीमती पाटील के माध्यम से, २२.२.२००४, रात्रि ९.३०)
१ आ. पद्धति २
कुछ स्थानों पर देवी को कुमकुमार्चन करते समय कुमकुम केवल चरणों पर अर्पित किया जाता है ।
२. शास्त्र
‘मूल कार्यरत शक्तितत्त्व की निर्मिति लाल रंग के प्रकाश से हुई है, इस कारण शक्तितत्त्व के दर्शक के रूप में देवी की पूजा कुमकुम से करते हैं । कुमकुम से प्रक्षेपित गंध-तरंगों की सुगंध की ओर ब्रह्मांडांतर्गत शक्तितत्त्व की तरंगें अल्प कालावधि में आकृष्ट होती हैं, इसलिए मूर्ति में सगुण तत्त्व को जागृत करने हेतु लाल रंग के दर्शक तथा देवीतत्त्व को प्रसन्न करनेवाली गंध-तरंगों के प्रतीक के रूप में कुमकुम-उपचार को देवीपूजनमें अग्रगण्य स्थान दिया गया है । मूल शक्तितत्त्व के बीज का गंध भी कुमकुम से फैलनेवाली सुगंध से साधर्म्य दर्शाता है, इसलिए देवी को जागृत करने हेतु कुमकुम के प्रभावी माध्यम का प्रयोग किया जाता है ।’ – एक विद्वान ((पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, २०.१०.२००५, रात्रि ९.५३)
कुमकुम में शक्ति तत्व आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है; इसलिए देवी की मूर्ति को कुमकुमार्चन करने के उपरांत वह जागृत होती है । जागृत मूर्ति का शक्ति तत्त्व कुमकुम में आता है । तदुपरांत जब हम वह कुमकुम लगाते हैं, तो उसकी शक्ति हमें मिलती है ।
३. कुमकुमार्चन के फलस्वरूप हुई अनुभूति
देवी के श्रृंगार में प्रयुक्त कुमकुम को मस्तक पर लगाने से प्रार्थना एवं नामजप अच्छा होना तथा उत्साह प्रतीत होना
‘२७.१.२००४ को हम देवालय में कुमकुमार्चन हेतु गए थे । हमारे द्वारा दिए गए कुमकुम से पुजारी ने दोनों मूर्तियों का अर्चन किया तथा उसके उपरांत प्रार्थना कर वह कुमकुम हमें दिया । कुमकुम लेते हुए मैंने देवी से प्रार्थना की, ‘हे सातेरीदेवी, इस कुमकुम से हमें शक्ति मिले, हमसे प्रार्थना एवं नामजप उत्तम हो ।’ तब से मैं जब भी अपने माथे पर कुमकुम लगाती हूं, मेरा नामजप आरंभ हो जाता है और एक अनोखे उत्साह की प्रतीति होती है ।’ – श्रीमती रक्षंदा राजेश गांवकर, फोंडा, गोवा.
संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र’