देवी की आंचल भराई कैसे करें ?
साडी और चोली वस्त्र-नारियल से देवी का आंचल भरना, यह देवी के दर्शन के समय किया जानेवाला एक प्रमुख उपचार है । यह शास्त्र समझकर, इसे भावपूर्ण करने से, उसका आध्यात्मिक लाभ अधिक प्रमाण में श्रद्धालु को मिलता है ।
साडी और चोली वस्त्र-नारियल से देवी का आंचल भरना, यह देवी के दर्शन के समय किया जानेवाला एक प्रमुख उपचार है । यह शास्त्र समझकर, इसे भावपूर्ण करने से, उसका आध्यात्मिक लाभ अधिक प्रमाण में श्रद्धालु को मिलता है ।
गरबा में मुसलमान युवक ही छिप कर क्यों आ रहे हैं ? मुसलमान युवती तथा महिलाएं क्याें नहीं आतीं ? क्या निरपेक्षतावादी तथा पुरो(अधो)गामी इसका उत्तर देंगे ?
देवी को कुमकुमार्चन करने की दो पद्धतियां, कुमकुमार्चन करने से होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाले चित्र आदि का उल्लेख इस लेख में किया गया है । सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी लाभ दर्शानेवाले चित्रों के कारण यह विषय पाठकों के लिए समझना सुलभ होगा ।
जगत्का पालन करनेवाली जगत्पालिनी, जगदोद्धारिणी मां शक्तिकी उपासना हिंदु धर्ममें वर्ष में दो बार नवरात्रिके रूपमें, विशेष रूपसे की जाती है ।
विशेषकर मंगलवार एवं शुक्रवारके दिन देवीपूजनसे पूर्व तथा नवरात्रिकी कालावधिमें घर अथवा देवालयोंमें देवीतत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाएं । आगे श्री दुर्गादेवीतत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली कुछ रंगोलियां दी हैं ।
उपवास करनेसे व्यक्तिके देहमें रज-तमकी मात्रा घटती है और देहकी सात्त्विकतामें वृद्धि होती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण में कार्यरत शक्तितत्त्वको अधिक मात्रामें ग्रहण करनेके लिए सक्षम बनता है ।
‘मूर्ति नीचे गिर गई; परंतु भग्न नहीं हुई, तो प्रायश्चित नहीं लेना पडता । ऐसे में केवल उस देवता की क्षमा मांगें तथा तिलहोम, पंचामृत पूजा, दुग्धाभिषेक इत्यादि विधि अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति के मार्गदर्शन में करें ।
हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनाने के धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारण को भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं ।
हिन्दुओं के उत्सवों में आजकल अपप्रवृत्तियों ने प्रवेश कर लिया है । उत्सवों का बाजारीकरण होने से हिन्दू उत्सव मनाने का मूल उद्देश्य एवं उसका मूल शास्त्र भूल रहे हैं । हिन्दुओं की भावी पीढी तो उत्सवों में जो अपप्रवृत्तियां प्रवेश हो गईं हैं, उन्हें ही उत्सव समझने लगी हैं । यह स्थिति अत्यंत बिकट है ।
किसी में देवी की शक्ति सहन करने की क्षमता न हो, तो प्रथम शांतादुर्गा, फिर दुर्गा का और अंत में महिषासुरर्मिदनी का आवाहन करते हैं । इससे देवी की शक्ति सहन करने की क्षमता धीरे-धीरे बढने लगती है एवं महिषासुरर्मिदनी की शक्ति सहनीय हो जाती है ।