उडुपी (कर्नाटक) के एक और महाविद्यालय में हिजाब पर प्रतिबंध

कर्नाटक के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा कि किसी भी शिक्षा संस्था में शिक्षा को धर्म से दूर रखना चाहिए । यहां पढनेवाले विद्यार्थी हिजाब अथवा भगवा उपरना पहनकर न आएं । वे उनके धर्म का पालन करने के लिए विद्यालय में न आएं । विद्यालय ज्ञानमंदिर है तथा यहां शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से आना चाहिए ।

क्या बुद्धि शिक्षा का विधि विधान निश्चय कर सकती है ?

आजकल मनोराज्य का अधिक बोल-बाला है । मनुष्य का अंतर्मन समझता है कि उसका ही विचार ठीक है । मनुष्य अपनी वासनाओं के विषयों (रूप, रस, गंध, श्रवण और स्पर्श) एवं ज्ञान का मनोनुकूल भोग चाहता है। ऐसी स्थिति में विविध निर्णयों या क्रिया-कलापों के विषय में वाद-विवादों का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।

मानवी बुद्धि एवं पारमार्थिक तथ्य !

तीनों कालों में जिस वस्तु का निषेध (मनाही) नहीं होता है, वह पारमार्थिक कहलाती है । ‘पारमार्थिक’ शब्द का मतलब होता है परमार्थ (परम अर्थ) संबंधी । परम अर्थ का मतलब होता है नाम, रूप आदि से परे, अर्थात संसार के परे ।

अनेक विषयों के बारे में बुद्धि की अनभिज्ञता !

विस्मयकारी घटनाओं को समझ पाना कठिन जगत के विस्मयकारी (आश्चर्यजनक) अनेक कार्यों तथ्यों या निष्कर्षो को मनुष्य की बुद्धि के लिए समझ पाना संभव नहीं है उदाहरण के लिए जैसे शक्तिपात का होना, चमत्कारों का दिखाई देना, सिद्धियों का प्राप्त होना इत्यादि ।

एनसीईआरटी ने विद्यालयीन पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्रीय पुरुषों के चरित्र का भारी मात्रा में विकृतीकरण किया !

विविध माध्यमों द्वारा एनसीईआरटी द्वारा शिक्षा का विकृतीकरण अनेक बार उजागर होते हुए भी उसे विसर्जित क्यों नहीं किया गया ?

मानवी बुद्धि एवं उसके निर्णयों की योग्य-अयोग्यता !

मानसिक वासनाओं से घिरी होने के कारण मनुष्य की बुद्धि संशयात्मक रहती है । इस कारण किसी निश्चय पर पहुंचना कठिन होता है । प्रारब्ध कर्मों का प्रभाव भी बुद्धि को ठीक-ठीक निर्णय करने में कठिनाई उत्पन्न करता है ।

मानव बुद्धि की सीमाएं

आधुनिक वैज्ञानिक बताते हैं कि मस्तिष्क (Brain) का एक छोटा भाग ही काम में आता है, शेष बहुत बडा भाग जीवन भर बेकार ही पडा रहता है । भारतीय संस्कृति इस बडे भाग का उपयोग करने के लिए बताती है ।

मानव बुद्धि की सीमाएं

आधुनिक वैज्ञानिक बताते हैं कि मस्तिष्क (Brain) का एक छोटा भाग ही काम में आता है, शेष बहुत बडा भाग जीवन भर बेकार ही पडा रहता है । भारतीय संस्कृति इस बडे भाग का उपयोग करने बताती है ।

शिक्षाप्रणाली निश्चित करते समय मनुष्य के जीवन से संबंधित ध्येय का व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक !

आधुनिक शिक्षा में केवल इसी बात का ध्यान रखा गया है कि मनुष्य की नैसर्गिक आवश्यकताएं क्या हैं, इन्हीं की पूर्ति का आधार बनाकर तदनुरूप शिक्षा का कार्यान्वयन हुआ है । शिक्षा में व्यापक दृष्टिकोण का होना अत्यंत आवश्यक है ।

सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?

आधुनिक शिक्षा प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान पर ही आधारित होकर अपने ज्ञान को सीमित कर लेती है । अंतःकरण की वृत्तियां भी ज्ञान का प्रतिपादक होती हैं । ज्ञान, चार प्रकार का होता है – प्रत्यक्ष परोक्ष, अपरोक्ष और साक्षात अपरोक्ष ।